सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) लागू होने के बाद इसे लेकर सबसे ज्यादा सवाल मुसलमानों के संदर्भ में किए जा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सीएए के बाद सरकार जब एनारसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) लाएगी तब इस सीएए का प्रभाव नजर आएगा, जिसके जरिए मुसलमानों को भारतीय नागरिकता नहीं मिल पाएगी। इन सारे सवालों को जवाब अमित शाह ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में दिया है। यह लंबा चौड़ा इंटरव्यू गुरुवार सुबह एएनआई ने जारी किया। इंटरव्यू की कुछ खास बातों को सत्य हिन्दी पर भी प्रकाशित किया जा रहा है।
अमित शाह के इस इंटरव्यू में सबसे महत्वपूर्ण बयान है- "राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का सीएए से कोई लेना-देना नहीं है। अल्पसंख्यकों या किसी अन्य व्यक्ति को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि सीएए में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। सीएए सिर्फ अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई और पारसी शरणार्थियों को अधिकार और नागरिकता देने के लिए है।" उन्होंने कहा कि 41 बार कह चुका हूं कि सीएए मुसलमानों के खिलाफ नहीं है।
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हालांकि इससे पहले 2019 में, अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि सीएए के बाद एनआरसी आएगा। इसके बाद ही इसका जबरदस्त विरोध हुआ था। उसी समय से मुसलमानों में इसे लेकर तमाम सवाल थे। लेकिन अब अमित शाह ने यह कहकर स्थिति साफ की है कि लागू किए गए सीएए कानून का एनआरसी से लेना देना नहीं है। हालांकि अमित शाह ने यह नहीं कहा कि एनआरसी अब नहीं आएगा। यह बात अभी भी रहस्य है। इस इंटरव्यू में उन्होंने सिर्फ यही कहा कि सीएए का एनआरसी से कोई लेना देना नहीं है। इससे भविष्य में एनआरसी नहीं लाने की बात खत्म नहीं हुई है। संशय बरकरार है।
मुसलमान इसमें क्यों नहीं शामिल
अमित शाह से इंटरव्यू में पूछा गया कि इस अधिनियम में पारसियों और ईसाइयों तक को नागरिकता लेने की बात कही गई है, लेकिन मुसलमानों को नहीं। इस पर शाह ने कहा- "वो (क्षेत्र) मुस्लिम आबादी के कारण आज भारत का हिस्सा नहीं है। यह व्यवस्था उनके लिए की गई है। मेरा मानना है कि यह हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि हम उन लोगों को आश्रय दें जो अखंड भारत का हिस्सा थे और धार्मिक उत्पीड़न सहे थे।" बता दें कि अखंड भारत का आशय उस बात से जब अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, नेपाल, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका और तिब्बत तक भारत की सीमाएं फैली हुई थीं।
गृह मंत्री ने कहा कि "विभाजन के समय पाकिस्तान की आबादी में हिंदू 23 प्रतिशत थे। अब यह गिरकर 3.7 प्रतिशत हो गए हैं। वे कहां गए? इतने सारे लोग यहां नहीं आए। जबरन धर्म परिवर्तन हुआ, उन्हें अपमानित किया गया, दोयम दर्जे का नागरिक माना गया। वे कहां जाएंगे? क्या हमारी संसद और राजनीतिक दलों को इस पर निर्णय नहीं लेना चाहिए।" उन्होंने कहा कि 1951 में बांग्लादेश की आबादी में हिंदू 22 प्रतिशत थे। 2011 में, यह घटकर 10 प्रतिशत रह गए। वे कहां गए? अफगानिस्तान में 1992 में लगभग 2 लाख सिख और हिंदू थे। अब, 500 बचे हैं। क्या उन्हें अपनी (धार्मिक) मान्यताओं के अनुसार जीने का अधिकार नहीं है? जब भारत एक था, वे हमारे थे।
प्रताड़ित मुस्लिमों को भी जगहः अमित शाह से सवाल किया गया कि शिया, बलूच और अहमदिया मुसलमान भी तो इन देशों में सताए जाते हैं, उनके लिए क्या भारत में जगह नहीं है। इस पर अमित शाह ने कहा, "दुनिया भर में इन्हें भी मुस्लिम माना जाता है। लेकिन भारत में बाहर के मुस्लिम भी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। संविधान में एक प्रावधान है। वे आवेदन कर सकते हैं। भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेगी। उन्होंने कहा कि सीएए तीन देशों के सताए हुए अल्पसंख्यकों के लिए एक "विशेष अधिनियम" है, जो बिना किसी वैध दस्तावेज के सीमा पार कर गए हैं। हम उन लोगों के लिए समाधान ढूंढेंगे जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं। लेकिन मेरे अनुमान के अनुसार, उनमें से 85 प्रतिशत से अधिक के पास दस्तावेज़ हैं।
विपक्ष शासित राज्यों में क्या होगा
सीएए लागू होने के बाद केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि वो अपने राज्य में इस कानून को लागू नहीं करेंगे, इस सवाल पर शाह ने कहा, "हमारे संविधान का अनुच्छेद 11 संसद को नागरिकता के संबंध में नियम बनाने की सभी शक्तियां देता है। यह केंद्र का विषय है, राज्य का नहीं। मुझे लगता है कि चुनाव के बाद हर कोई सहयोग करेगा। वे तुष्टीकरण की राजनीति के लिए गलत सूचना फैला रहे हैं।"
सीएए के तहत नागरिकता देने की प्रक्रिया
अमित शाह ने बताया कि भारत सरकार के पोर्टल पर आवेदन के बाद भारत सरकार आपको उपलब्ध समय के अनुसार इंटरव्यू के लिए बुलाएगी। सरकार आपको दस्तावेज़ के ऑडिट के लिए बुलाएगी और आमने-सामने इंटरव्यू किया जाएगा। आवेदन आने के बाद थोड़ा समय जरूर लगेगा