अडानी समूह के कथित घोटाले के नए तथ्य संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) और द गार्जियन की रिपोर्ट से गुरुवार को सामने आए हैं, उसमें मार्केट रेगुलेटर सेबी की 2014 की जांच का भी जिक्र है, जिसे दबा दिया गया। हालांकि अडानी समूह ने उस रिपोर्ट का खंडन करते हुए उसे पुराना मामला बताया है। लेकिन इस संबंध में राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) का 2014 में सेबी को लिखा गया पत्र सामने आया है, उससे पता चलता है कि सेबी ने अडानी समूह के खिलाफ शेयर मार्केट में वित्तीय लेन-देन की गड़बड़ी की जांच की थी।
इस संबंध में 31 जनवरी 2014 को डीआरआई के डीजी ने सेबी के चेयरमैन यू.के. सिन्हा को एक पत्र लिखा। इस पत्र में सेबी चेयरमैन को बताया गया कि डीआरआई अडानी समूह के खिलाफ डीआरआई भी बिजली और अन्य बुनियादी ढांचे के प्लांट और मशीनरी के आयात में अधिक मूल्यांकन के तौर-तरीकों की जांच कर रहा है। डीजी ने लिखा कि इस पत्र के साथ सारा विवरण देने वाले दो नोट संलग्न हैं। एक सीडी भी है।
डीआरआई के 2014 के इस पत्र को सत्य हिन्दी ने भी देखा है। इस पत्र में संक्षेप में तमाम आरोपों को लिखा गया है। पत्र में डीआरआई के डीजी ने संक्षेप में लिखा है - यह मुद्दा संयुक्त अरब अमीरात स्थित अंतर्राष्ट्रीय कंपनी से अडानी समूह की विभिन्न संस्थाओं द्वारा उपकरणों और मशीनरी के आयात के अत्यधिक मूल्यांकन से संबंधित है।
नोट में विस्तार से बताए गए ओवर-वैल्यूएशन के तौर-तरीकों का इस्तेमाल करके अडानी समूह ने विदेशों में लगभग 6278 करोड़ रुपये भेजे। तमाम जांचों से यह भी पता चला है कि निकाले गए धन का एक बड़ा हिस्सा दुबई से मॉरीशस में ट्रांसफर किया गया था और उस धन का एक हिस्सा अडानी समूह में निवेश किया गया और फिर विनिवेश के रूप में भारत के शेयर बाजारों में पहुंचा दिया गया है। सेबी चूंकि शेयर बाजार में अडानी समूह की कंपनियों के लेनदेन की जांच कर रही है। इसलिए 2323 करोड़ रुपये (एक नोट से संबंधित) की हेराफेरी से संबंधित साक्ष्य वाली एक सीडी इसके साथ संलग्न है।
डीआरआई के डीजी ने सेबी चेयरमैन को यह भी लिखा था कि मामलों की जांच इस निदेशालय की मुंबई जोनल यूनिट द्वारा की जा रही है। यदि अन्य दस्तावेजों की आवश्यकता हो तो कृपया अतिरिक्त महानिदेशक मुंबई जोनल यूनिट से प्राप्त करें। इस संबंध में डीआरआई ने मुंबई जोनल यूनिट को सूचित कर दिया है।
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डीआरआई के इस पत्र में दुबई की कंपनी का जिक्र आया है। फंड मारीशस की कंपनी में ट्रांसफर किए गए हैं और बाद में वही पैसा भारतीय शेयर मार्केट में निवेश कर दिया गया। यही बात ओसीसीआरपी और द गार्जियन ने अपनी रिपोर्ट में कही है। उन्होंने आरोप लगाया है कि दुबई में अडानी के परिवार के विनोद अडानी इस ऑपरेशन को अंजाम दे रहे थे। अडानी परिवार के दो सहयोगी अलग से शेल कंपनी चला रहे थे। वित्तीय ट्रांजैक्शन उनसे भी किया गया। फिर यह पैसा मारीशस की शेल कंपनियों में भेजा गया। यानी डीआरआई के इस पत्र से और ओसीसीआरपी के तमाम तथ्य मेल खाते हैं।
इस पत्र से साफ है कि डीआरआई ने सेबी को एक सीडी भी भेजी, जिसमें तमाम सबूत थे। एक तरह डीआरआई ने सेबी की उस जांच में मदद करना चाही जो वो अडानी समूह के कथित वित्तीय घोटाले के खिलाफ उस समय कर रही थी। लेकिन 2014 में केंद्र की सत्ता में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर आ गए और फिर उसके बाद सेबी की जांच का कुछ अता-पता नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि अडानी को पीएम मोदी का संरक्षण प्राप्त है और अडानी के भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार की आंखें बंद हैं।
ओसीसीआरपी ने गुरुवार को अडानी समूह के कथित वित्तीय घोटाले की जो जांच रिपोर्ट प्रकाशित की है, यह पत्र उन तथ्यों की पुष्टि करता है। हालांकि अपने खंडन में अडानी समूह ने इसे वर्षों पुराना मामला बताते हुए क्लीन चिट मिलने की बात कही है। लेकिन सेबी और डीआरआई की ओर से ऐसा बयान कभी देखा नहीं गया। यानी अगर सेबी और डीआरआई ने अडानी समूह को क्लीन चिट दी है तो गुरुवार 31 अगस्त को खंडन करते समय अडानी समूह को वो जानकारी तथ्यों के साथ देना चाहिए थी।
यहां यह बताना जरूरी है कि ओसीसीआरपी और द गार्जियन की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह ने उसका खंडन कर दिया। उसने पूरी रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया। अडानी समूह ने यह भी कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट को ही फिर से तराश कर पेश कर दिया गया है। बहरहाल, डीआरआई का 2014 का पत्र कुछ और ही कहानी बता रहा है।