अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पैनल पर एक याचिका के जरिए सवाल उठाया गया है। मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट नया जांच पैनल नियुक्त करे। इंडिया टुडे और अन्य मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पैनल के सदस्यों और अडानी समूह में हितों का टकराव है। अडानी समूह के खिलाफ मार्केट रेगुलेटर सेबी की जांच के दौरान भी हितों के टकराव का मामला उठा था। हितों के टकराव का अर्थ यह है कि पैनल के सदस्य किसी न किसी रूप में अतीत में या वर्तमान में अडानी समूह से जुड़े रहे हों।
सुप्रीम कोर्ट एक्सपर्ट जांच पैनल में उद्योगपति ओपी भट्ट, जस्टिस जेपी देवधर, बैंकर केवी कामथ, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि और वकील सोमशेखर सुंदरेसन शामिल हैं। इसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एएम सप्रे हैं।
इंडिया टुडे के मुताबिक याचिका में कहा गया है कि पैनल के सदस्य उद्योगपति ओपी भट्ट ग्रीनको ग्रुप के चेयरमैन हैं और गौतम अडानी के साथ मिलकर काम करते हैं। इसी तरह बैंकर केवी कामथ एक बैंक धोखाधड़ी मामले का सामना कर रहे हैं। कामथ आईसीआईसीआई बैंक के चेयरमैन भी रह चुके हैं। ए़डवोकेट सोमशेखरन विभिन्न अदालतों में अडानी समूह की ओर से पेश हो चुके हैं। इस तरह मौजूदा पैनल देश के लोगों में इस मामले में विश्वास जगा पाने में नाकाम रहेगा।
याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि एक नया पैनल इस मामले की जांच करे। नए पैनल में वित्त, कानून और शेयर मार्केट के जानकार लोग रखे जाएं। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट 13 अक्टूबर को इस याचिका को सुन सकता है।
इंडिया टुडे के मुताबिक हितों के टकराव की बात सेबी जांच के मामले में भी उठी थी। सुप्रीम कोर्ट में पिछले हफ्ते दायर हलफनामे में आरोप लगाया गया था कि सेबी के एक सदस्य के अडानी समूह के साथ पारिवारिक संबंध हैं। ऐसे में सेबी की जांच तटस्थ नहीं हो सकती। यह हितों के टकराव का साफ मामला है।
याचिकाकर्ता अनामिका जयसवाल ने अपने हलफनामे में कहा था- "सेबी जांच और अडानी समूह में हितों का स्पष्ट टकराव है क्योंकि सेबी के सिरिल श्रॉफ की बेटी की शादी अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अदानी के बेटे करण अदानी से हुई है।
क्या है हिंडनबर्ग रिपोर्ट में
हिंडनबर्ग रिसर्च ने जनवरी 2023 में एक रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि इसकी दो साल की जांच में अडानी समूह को स्टॉक हेराफेरी और अकाउंटिंग धोखाधड़ी में लिप्त पाया गया। हिंडनबर्ग ने अडानी समूह द्वारा सरकारी बैंकों से लिए गए लोन पर सवाल उठाते हुए कहा कि अडानी समूह ने लोन के लिए सरकारी बैंकों के शेयरों तक को गिरवी रखा। अडानी के दुबई स्थित भाई को भी निशाना बनाया गया था। अडानी समूह ने आरोपों को खारिज कर दिया। अडानी समूह ने कहा कि हिंडनबर्ग द्वारा उठाए गए 88 सवालों में से 65 मामले तो अडानी पोर्टफोलियो कंपनियों से संबंधित हैं, जिन्होंने अपने-अपने पोर्टफोलियो का विधिवत खुलासा पहले से ही किया हुआ है। बाकी 23 सवालों में से 18 सार्वजनिक शेयरधारकों और थर्ड पार्टी (जो अडानी पोर्टफोलियो की कंपनियां नहीं हैं) से संबंधित हैं, जबकि शेष 5 सवाल काल्पनिक तथ्यों पर हैं, उनमें एक पैटर्न दिख रहा है और सभी आरोप निराधार हैं।
इस रिपोर्ट के आने के बाद अडानी समूह को केवल दो ट्रेडिंग सत्र में शेयर बाजार में 50 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का नुकसान हुआ था। इसके बाद गौतम अडानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में तीसरे नंबर से नीचे लुढ़कते रहे।
हिंडनबर्ग का जवाब
अडानी समूह की सफाई पर हिंडनबर्ग रिसर्च ने जवाब दिया कि धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद या एक सधी हुई प्रतिक्रिया से झुठलाया नहीं किया जा सकता है। अडानी समूह ने मूल रूप से उठाए गए हर प्रमुख आरोप को नजरअंदाज कर दिया है। हिंडनबर्ग ने कहा, अडानी के '413 पेज' के जवाब में हमारी रिपोर्ट से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित कुल 30 पेज ही थे।...हमने नोट किया है कि हमारी रिपोर्ट के मुख्य आरोपों में फर्जी कंपनियों के साथ कई संदिग्ध लेन-देन पर केंद्रित थी - उन सवालों के जवाब पूरी तरह से अनसुलझे रह गए हैं।
“
हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह को यूएसए में इस मामले में मुकदमा करने की चुनौती दी थी। अडानी समूह ने अभी तक उस चुनौती को स्वीकार नहीं किया है। उसने कहा था कि अडानी समूह ने मूल मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश की और इसके बजाय उसने राष्ट्रवादी कहानी को हवा दी।
बहरहाल, विपक्ष ने अडानी समूह पर लगे आरोपों पर सरकार को घेरने की कोशिश की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अडानी समूह के हितों को प्रधानमंत्री मोदी से जोड़ते हुए सीधा हमला बोला। उन्होंने संसद के अंदर और बहार अडानी समूह और मोदी से उसके संबंधों पर सवाल पूछे। राहुल गांधी ने संसद में अडानी के खिलाफ जो बोला, उसे संसदीय कार्यवाही से हटा दिया गया।
इसी दौरान वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर उनके एक पुराने बयान को आधार बनाकर मुकदमे की कार्यवाही सूरत कोर्ट में फिर से शुरू हो गई। सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषी करार दे दिया। दोषी करार देते ही आनन-फानन में राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता निलंबित कर दी गई। राहुल कई महीने संसद से बाहर रहे। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, सुप्रीम कोर्ट ने सूरत कोर्ट के फैसले को सही नहीं बताया। इसके बाद राहुल की लोकसभा सदस्यता बहाल कर दी गई।