महिला सशक्तीकरण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और महिला सुरक्षा जैसे नारों का दम भरने वाली बीजेपी सरकार में आख़िर ऐसा क्या हुआ कि ग्लोबल जेंडर गैप की ताज़ा रिपोर्ट में भारत नीचे की ओर फिसल गया? वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 में भारत 146 देशों में से 129वें स्थान पर है। यह पिछले वर्ष की तुलना में दो स्थान नीचे फिसल गया है।
स्थिति ऐसी है कि भारत इंडेक्स में बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्रीलंका से भी नीचे है। पड़ोसी देशों में सिर्फ़ पाकिस्तान की स्थिति ही भारत से ख़राब है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत के पड़ोसी देशों- बांग्लादेश को 99वें, चीन को 106वें, नेपाल को 117वें, श्रीलंका को 122वें, भूटान को 124वें और पाकिस्तान को 145वें स्थान पर रखा गया है।
आइसलैंड (93.5%) फिर से पहले स्थान पर है। वह डेढ़ दशक से सूचकांक में अग्रणी है। शीर्ष 10 में शेष नौ अर्थव्यवस्थाओं में से आठ ने अपने अंतर का 80% से अधिक हिस्सा पाट लिया है।
ताज़ा सूचकांक में भारत के दो पायदान नीचे आने पर रिपोर्ट में वह वजह भी बताई गई है कि यह नीचे क्यों गिरा। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मामूली गिरावट मुख्य रूप से शिक्षा की स्थिति और राजनीतिक सशक्तीकरण में गिरावट की वजह से है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'हालाँकि, प्राथमिक, माध्यमिक और तीसरे स्तर के शिक्षा नामांकन में महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक है, इसमें मामूली वृद्धि हुई है। लेकिन पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर के बीच का अंतर 17.2 प्रतिशत अंक अधिक है। इससे भारत इस इंडिकेटर पर 124वें स्थान पर है।'
राजनीतिक सशक्तीकरण इंडिकेटर में भी भारत पिछड़ा है। यानी एक तरह से कहा जा सकता है कि राजनीतिक फ़ैसले लेने में महिलाओं की भागीदारी उतनी नहीं है। टीओआई के मुताबिक़, भारत राष्ट्राध्यक्ष इंडिकेटर में 40.7% अंक के साथ शीर्ष 10 में है। लेकिन संघीय स्तर पर मंत्रिस्तरीय पदों पर 6.9% अंक और संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए देश के अंक 17.2% अपेक्षाकृत कम हैं।
पिछले साल भारत इस सूचकांक में 127 वें स्थान पर था, जो 2022 में 135 से 1.4 प्रतिशत अंकों और आठ स्थानों का सुधार हुआ था। यह भारत के समानता स्तर की ओर आंशिक सुधार को दिखाया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान आंकड़ों के आधार पर पूर्ण समानता तक पहुंचने में 134 साल लगेंगे। रिपोर्ट में बताया गया है कि जेंडर गैप इंडेक्स से पता चलता है कि हालांकि किसी भी देश ने पूर्ण लैंगिक समानता हासिल नहीं की है, इस संस्करण में शामिल 97% अर्थव्यवस्थाओं ने अपने अंतर को 60% से अधिक कम कर दिया है, जबकि 2006 में यह 85% था।