मेघालय हाई कोर्ट के जस्टिस सुदीप रंजन सेन ने अपने एक विवादास्पद फ़ैसले में कहा है कि विभाजन के समय ही भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना था। वे नागरिकता विवाद के एक मामले में अमोन राना की याचिका की सुनवाई कर रहे थे। इस याचिका में मूल निवासी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफ़िकेट की माँग की गई थी।उन्होंने अपने निर्णय में लिखा, ‘पाकिस्तान ने अपने-आपको इस्लामी राष्ट्र घोषित कर दिया। देश का बँटवारा ही धर्म के आधार पर हुआ था, लिहाज़ा भारत को भी हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए था। पर यह धर्मनिरपेक्ष देश बना रहा।’
आरएसएस प्रचार का उद्धरण
वे यहीं नहीं रुकते हैं। उन्होंने मेघालय के राज्यपाल और राष्टीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके तथागत राय की किताब का उद्धरण भी दिया। जस्टिस सेन ने मूल विवाद को निबटाते हुए भारत के इतिहास भूगोल और विभाजन के दौर का ज़िक्र किया। उन्होंने वही कहा जो राजनीति का दक्षिणपंथी धड़ा अमूमन जन-समर्थन जुटाने के लिए कहता है । निश्चय ही यह एक अनावश्यक विवाद को विस्तार देगा । ठीक ऐसे समय में जब देश आम चुनाव के लिए बहसतलब है, इस तरह का मसाला पहले से धार्मिक आधार पर लगातार बँटते समाज को और बाँटने का ही काम करेगा।
न्यायपालिका से उम्मीद की जाती है कि वह संविधान की रोशनी में विवादों की पड़ताल कर निर्णय दे, पर जस्टिस सुदीप रंजन सेन की टिप्पणी संविधान की उस प्रस्तावना को ही नकार देती है जिसने भारत को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया है।
जस्टिस सेन शिलंग में पैदा हुए और वहीं पले बढ़े। वे जनवरी 2014 में मेघालय हाई कोर्ट जज के तौर पर नियुक्त हुए थे। उनकी टिप्पणी से पाँच राज्यों में धराशायी हुई बीजेपी के समर्थकों को ऑक्सिजन मिलती देखी जा सकती है। उन्होंने इसे सोशल मीडिया पर वायरल करना शुरू कर दिया है।
जस्टिस सेन की टिप्पणी पर राजनैतिक विश्लेषक आशुतोष ने कहा, ‘यह न्यायपालिका की मर्यादा के ख़िलाफ़ है कि वह फ़ैसले सुनाने की जगह ऐसे असंवैधानिक हस्तक्षेप करे।’जस्टिस सेन ने असिसटेंट सालीसीटर जनरल ए पाल से कहा 'इस जजमेंट की कॉपी प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और क़ानून मंत्री को भेज दें ताकि इससे जुड़े ज़रूरी क़दम उठाए जा सकें।'उन्होंने अपने फ़ैसले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा भी की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को जल्द ही एक ऐसा क़ानून बनाना चाहिए जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हिंदुओं और सिखों को भारत में स्थायी तौर पर रहने की छूट मिले ताकि वे यहां शांति से जीवन जी सकें। पर इसमें उन्होंने मुसलमानों को शामिल नहीं किया। लेकिन, फ़ैसले के अंत में वे कहते हैं, ‘मैं मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं हूँ।’इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया जताते हुए जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने ट्वीट किया, 'जस्टिस एसआर सेन का निर्णय ईश्वर की शांति की तरह है जो हर तरह की समझ से परे है।'
एडवोकेट ग़ुलाम वारिस ने तुरन्त महाभियोग लाकर जस्टिस सेन को पद से हटाने की माँग की है। उन्होंने ट्वीट किया, यह फ़ैसला भयानक संविधान के ख़िलाफ़ है और जस्टिस सेन पर तुरंत महाभियोग चलाया जाना चाहिए।