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भूख सूचकांक में भारत की स्थिति नेपाल-म्यांमार से बदतर

भूख सूचकांक में भारत की स्थिति नेपाल-म्यांमार से बदतर

वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान से भी बदतर है।  107 देशों की सूची में भारत 94 वें स्थान पर है। दूसरी ओर, बांग्लादेश 75 वें, म्यांमार 78 वें और पाकिस्तान 88 वें स्थान पर हैं।

ऐसे समय जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की राह पर ले चलने का दावा करते हैं, हंगर इनडेक्स यानी भूख सूचकांक में भारत की स्थिति बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान से भी बदतर है। यह शायद अटपटा लगे, पर सच है कि वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में भारत 94 वें स्थान पर है। दूसरी ओर, बांग्लादेश 75 वें, म्यांमार 78 वें और पाकिस्तान 88 वें स्थान पर हैं।

भारत इस सूची में 'गंभीर' स्थिति में है। नेपाल 73 वें और श्रीलंका 64 वें स्थान पर हैं और भारत से बेहतर स्थिति में हैं। ये देश ‘मध्यम' श्रेणी में आते हैं। 

भारत की स्थिति वाकई बुरी है और लगभग 14 प्रतिशत लोग कुपोषण के शिकार हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी। इसके अलावा ऐसे बच्चों की दर 37.4 थी, कुपोषण के कारण जिनका विकास नहीं हो पाता है।

मोदी राज में बदतर हाल

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के पहले यानी 2014 के हंगर इनडेक्स में 76 देशों की सूची में भारत 55 वें स्थान पर था। उस समय कहा गया था कि भारत की स्थिति इस मामले में बीते साल की तुलना में सुधरी है। उस समय भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश से बेहतर स्थिति में था। लेकिन उस समय भी वह नेपाल और श्रीलंका से बदतर हालत में था। 

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पर सरकार को निशाने पर लिया है। उन्होंने शनिवार को अपने ट्वीट में लिखा, 'भारत का ग़रीब भूखा है क्योंकि सरकार सिर्फ़ अपने कुछ ख़ास ‘मित्रों' की जेबें भरने में लगी है।'

शिशु मृत्यु दर बढ़ी

हंगर इऩडेक्स की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस दौरान भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी दर्ज की गयी। इसके अलाा समय से पहले जन्म और कम वजन के कारण बच्चों की मृत्यु दर विशेष रूप से गरीब राज्यों और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी है। विशेषज्ञों ने कहा है कि कार्यक्रमों की खराब क्रियान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी की कमी और कुपोषण से निपटने के लिए दृष्टिकोण में समन्वय का अभाव अक्सर खराब पोषण सूचकांकों का कारण होते हैं।

अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के वरिष्ठ शोधकर्ता पूर्णिमा मेनन ने एनडीटीवी से कहा, 'राष्ट्रीय औसत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से बहुत अधिक प्रभावित होता है… जिन राज्यों में वास्तव में कुपोषण अधिक है और वे देश की आबादी में खासा योगदान करते हैं।'

एनडीटीवी के मुताबिक़, न्यूट्रीशन रिसर्च की प्रमुख श्वेता खंडेलवाल ने कहा कि देश में पोषण के लिए कई कार्यक्रम और नीतियाँ हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत काफी निराशाजनक है। उन्होंने कहा कि पौष्टिक, सुरक्षित और सस्ता आहार तक पहुंच को बढ़ावा देना, मातृ और बाल पोषण में सुधार लाने के लिए निवेश करना, बच्चे का वजन कम होने पर शुरुआती समय में पता लगाने और उपचार के साथ ही कमजोर बच्चों के लिए पौष्टिक और सुरक्षित भोजन महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

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