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पैंगोंग त्सो से वापसी : कौन जीता भारत या चीन?

पैंगोंग त्सो से वापसी : कौन जीता भारत या चीन?

क्या चीन के साथ मौजूदा संकट में भारत की हार हुई है? क्या वह अपने कब्जे के बड़े हिस्से को खाली करने पर राजी हो गया है? क्या जिन इलाक़ों पर कोई विवाद नहीं था, भारत उसे भी छोड़ने पर राजी हो गया है?

क्या चीन के साथ मौजूदा संकट में भारत की हार हुई है? क्या वह अपने कब्जे के बड़े हिस्से को खाली करने पर राजी हो गया है? क्या जिन इलाक़ों पर कोई विवाद नहीं था, भारत उसे भी छोड़ने पर राजी हो गया है?

दरअसल, यह सवाल भारत के रक्षा विशेषज्ञ और सेना के रिटायर अफ़सर पूछ रहे हैं। इनमें से वे अफ़सर भी हैं, जिन्होंने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मोर्चा संभाला है और उस इलाक़े को बखूबी जानते हैं। 

चीन की जीत?

रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि भारत उन इलाकों को भी खाली करने पर राजी हो गया है, जिस पर कोई विवाद नहीं था। उनके मुताबिक़, पैंगोंग त्सो के फिंगर 4 से फिंगर 8 के बीच के इलाक़े पर भारत और चीन में विवाद था। भारत का दावा फिंगर 8 तक था, लेकिन चीन का कहना था कि उसका इलाक़ा फिंगर 4 तक ही है। 

चेलानी के मुताबिक़, भारत जिस बफ़र ज़ोन पर राजी हो गया है, उसके तहत वह फिंगर 2 से फिंगर 3 के बीच के इलाक़े तक अपने सैनिक रखेगा, उसके पहले के इलाक़े को बफ़र जो़न के लिए छोड़ देगा।

बफ़र ज़ोन का मतलब यह हुआ कि वह इलाक़ा चीन और भारत के कब्जे वाले इलाक़ों के बीच में होगा और उस इलाक़े में किसी देश के सैनिक नहीं होंगे। 

चेलानी ने ट्वीट कर कहा कि यह तो चीन की जीत है। 

उन्होंने भारत को होने वाले नुक़सान बताते हुए कहा कि कैलाश रेंज खाली करने से चीन को यह मौका मिल जाएगा कि वह वहाँ तक अपने ट्रक और भारी वाहन ला सकेगा क्योंकि वह समतल है। यानी चीन वहाँ तक अपने सैनिक साजो-सरंजाम आसानी से ले जा सकेगा। चीन अपने टैंक वहाँ आराम से लगा सकता है। 

चेलानी ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने ख़ुद इसकी पुष्टि की है कि वह कैलाश रेंज की चोटी को खाली कर देगा, जबकि यही वह इलाक़ा है, जिस पर कब्जा रह कर भारत चीन पर दबाव बना सकता था।

पहले की स्थिति बहाल होगी?

चेलानी ने यह भी याद दिलाया कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने बयान में यह नहीं कहा है कि वह अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल करेगा यानी उस समय तक जिसकी सेना जहाँ थी, वहाँ तक लौट जाएगी। 

बता दें कि चीन से चल रही लंबी बातचीत में इसी पर जिच बनी हुई थी। चीन ज़ोर दे रहा था कि दोनों सेनाएं अपने सैनिक समान रूप से वापस बुलाएं। लेकिन भारत ज़ोर देकर कह रहा था कि पहले 'स्टैटस को आन्टे' बहाल हो, यानी पहले की स्थिति बहाल हो, सैनिकों की वापस की बाद उसके बाद होगी। इस पर चीन राजी नहीं हो रहा था। 

चेलानी का सवाल अहम इसलिए है कि यदि पीएलए 'स्टैटस को आन्टे' नहीं बहाल करता है तो उसकी सेना पीछे हट कर पहले की पोजीशन से आग रहेगी और भारत की सेना पहले जहां थी, उससे भी पीछे आ जाएगी। ज़ाहिर है, यह भारतीय सेना के लिए घाटे का सौदा होगा। चेलानी इसलिए ही इस सहमति को चीन की जीत बता रहे हैं। 

ब्रह्मा चेलानी इस ओर भी संकेत करते है कि चीनी सेना ने सिर्फ़ पैंगोंग त्सो के उत्तरी व दक्षिणी इलाक़ों को खाली करने की बात कही है। पर उसका अतिक्रमण सात जगहों पर हुआ है, जिसमें डेपसांग भी शामिल है। चीन ने डेपसांग खाली करने की कोई बात नहीं कही है।

सवाल यह है कि क्या डेपसांग पर चीनी कब्जा बरक़रार रहेगा, इसी तरह दूसरे सेक्टरों में उसक सैनिक जहाँ हैं, वहीं रहेंगे। यदि ऐसा होता है तो भारतीय सरज़मीं पर चीन का कब्जा बरक़रार रहेगा। 

झूठ बोल रही है सरकार?

रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ल ने तो दोनों देशों के सैनिकों को वापस बुलाने के मुद्दे पर सरकार पर साफ झूठ बोलने का आरोप लगाया है। 

उन्होंने कहा है कि पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट से कुछ हथियारों के वापस लाने की बात कही जा रही है, इन्फैन्ट्री यानी तोपखाने की पोजीशन पर कुछ नहीं कहा गया है। उनके कहने का मतलब यह है कि चीन अपनी तोपों को वहाँ से नहीं हटाएगा। 

शुक्ल ने यह भी कहा है कि चीन को पैंगोंग त्सो के किनारे फिंगर चार तक गश्त लगाने की छूट मिल गई है। इसका मतलब यह हुआ कि वास्तविक नियंत्रण रेखा को फिंगर चार तक समेट दिया गया है। अब तक फिंगर 8 तक वास्तविक नियंत्रण रेखा थी। 

वास्तविक नियंत्रण रेखा

वास्तविक नियंत्रण रेखा का मतलब ही यह है कि जिसकी सेना जहाँ तक, उसकी सीमा वहाँ तक। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की सीमा घट कर फिंगर 4 तक आ गई, जबकि वह अब तक फिंगर 8 तक थी। हालांकि चीन फिंगर 4 से फिंगर 8 तक को अपना कब्जा इलाका था, पर उस पर कब्जा भारत का था। इस तरह यह कहा जा सकता है कि चीन ने युद्ध लड़े बग़ैर फिंगर चार तक कब्जा कर लिया और भारत युद्ध लड़े बग़ैर ही वह इलाका छोड़ रहा है। 

अजय शुक्ला का मानना है कि दोनों देशों के सैनिकों को वापस बुलाने की सहमति आँखों में धूल झोंकने के समान है। चीनी सेना ने डेपसांग की कोई चर्चा ही नहीं की है, यानी उस पर उसका कब्ज बरक़रार रहेगा। चीन की घुसपैठ का मक़सद ही पूर्वी लद्दाख में अपनी पकड़ मजबूत बनाना था।

अजय शुक्ला ने भी कहा है कि अब चीनी सैनिक फिंगर 4 से फिंगर 8 तक गश्त लगा सकेंगे। दूसरी ओर भारतीय सैनिक फिंगर 2 से फिंगर 3 के बीच के इलाक़े में ही गश्त कर सकेंगे।

शुक्ला ने यह भी कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बहुत ही सावधानी से इस बात का जवाब नहीं दिया कि क्या वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल हो गई है। उन्होंने सिर्फ यह कहा कि वह स्थिति काफी हद तक बहाल हो जाएगी। 

अच्छा समझौता!

'द हिन्दू अख़बार' के चीन संवाददाता और भारत-चीन संबंधों पर क़िताब लिख चुके अनंत कृष्णन ने ब्रह्मा चेलानी और अजय शुक्ला के उलट यह माना है कि यह समझौता ठीक ही हुआ है, इससे बेहतर समझौते की उम्मीद करना ग़लत होता। उन्होंने कहा, "यह उम्मीद करना कि भारत फ़िंगर 8 तक गश्त कर सके और चीन पूरी तरह पीछे हट जाये, यह ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद करने वाली बात होगी, क्योंकि अप्रैल 2020 में भी यह स्थिति नहीं थी। भारत के जवान फ़िंगर 3 पर स्थित अपने बेस में रहें और चीनी सैनिक फ़िंगर 8 के पूर्व में रहें, अगर यह समझौता ज़मीर पर उतर पाया तो मेरी नज़र में यह वाक़ई एक यथोचित समझौता होगा।"

विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ संपादक प्रवीण स्वामी ने भी इस समझौते को भारत की जीत बताया है। 

उन्होंने कहा कि "चीन अपनी सेना की टुकडि़यों को नॉर्थ बैंक में फ़िंगर 8 के पूरब की दिशा में रखेगा। इसी तरह भारत भी अपनी सेना की टुकडि़यों को फ़िंगर 3 के पास अपने स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा। इसी तरह की कार्रवाई साउथ बैंक इलाक़े में भी दोनों पक्षों द्वारा की जाएगी। ये क़दम आपसी समझौते के तहत बढ़ाए जाएंगे और जो भी निर्माण आदि दोनों पक्षों द्वारा अप्रैल 2020 से नॉर्थ और साउथ बैंक पर किया गया है, उन्‍हें हटा दिया जाएगा और पुरानी स्थिति बना दी जाएगी।"

क्या कहना है चीनी मीडिया का?

चीन के सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने कहा कि दोनों देशों की सेनाओं के कोर कमान्डरों के बीच हुई नौवीं दौर की बातचीत काफी सकारात्मक रही और दोनों देशों ने सहमति दिखाई।

'ग्लोबल टाइम्स' ने आक्रामक रुख अपनाते हुए कहा कि भारतीय सेना ने काफी दबाव बनाया था ताकि चीन उसके मुताबिक समझौता कर ले। 'ग्लोबल टाइम्स' के आक्रामक रवैए का हाल यह है कि उसने भारत पर पूरी ज़िम्मेदारी डालते हुए कहा कि उसने अगस्त 2020 में पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट पर भड़काने वाला काम किया। 

लेकिन इस सरकारी अख़बार ने मोटे तौर पर सैनिकों की सहमति पर खुशी जताते हुए कहा है कि इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने में मदद मिलेगी। 

राहुल : सैनिकों की शहादत का अपमान

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है कि जब तक पहले की स्थिति बहाल नहीं हो जाती, शांति स्थापित नहीं हो सकती। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि सरकार देश के सैनिकों की शहादत का अपमान कर रही है अपना इलाक़ा हाथ से जाने दे रही है। 

'राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ कर रही है सरकार'

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों से बात करते हुए सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सरकार 'राष्ट्रीय सुरक्षा’ व भारत की ‘भूभागीय अखंडता’ से षडयंत्रकारी खिलवाड़ कर रही है। 

सुरजेवाला ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ को लेकर दिए गए संसद में रक्षामंत्री के बयान से यह साबित हो जाता है।

 - Satya Hindi

क्या कहना है सरकार का?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में एक बयान में यह दावा किया कि पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी तट से सैनिक हटा लिए जाएंगे। उन्होंने कहा, "मुझे सदन को यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि हमारे दृढ़ इरादे और टिकाऊ बातचीत के फलस्वरूप चीन के साथ पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी तट पर सेना के पीछे हटने का समझौता हो गया है।"

याद दिला दें कि मई 2020 में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सरज़मीन में घुस आए थे, वहाँ से वापस लौटने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि वे अपनी सीमा के अंदर ही हैं।

इसके बाद भारत ने भी अपने सैनिकों को वहाँ तैनात कर दिया। दोनों देशों ने सैनिक साजो-सरंजाम भी वहाँ पहुँचा दिए। उसके बाद तनाव बढ़ता गया और युद्ध की नौबत आ गई। 

गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच 15 जून, 2020 को झड़प हुई, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। चीन ने यह माना कि उसके सैनिक भी मारे गए, पर उसने उनकी संख्या नहीं बताई। 

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