क्या आपको पता है कि भारत की जनसंख्याी कितनी है? या फिर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार की कितनी है? यदि आप कहते हैं कि देश की जनसंख्या 140 करोड़ है तो यह पूरी तरह मनगढ़ंत आँकड़ा है। 13 साल पहले हुई जनगणना के आधार पर यदि अनुमान लगाया जाएगा तो इसे मनगढ़ंत नहीं कहा जाएगा तो और क्या! तो सवाल है कि जब जनगणना के आँकड़े ही नहीं हैं तो फिर इसका पता कैसे चलेगा कि कितने लोग भूखा पेट सो रहे हैं या फिर कितने लोग नौकरी कर रहे हैं और कितने बेरोजगार हैं? कितने लोगों को गरीबी से बाहर निकाल दिया या फिर कितने को गरीबी में धकेल दिया, क्या इसका कभी पता चल पाएगा? कितनी जनसंख्या पर कितने अस्पताल, डॉक्टर या नर्स हैं, क्या इसका पता चल पाएगा?
यदि आपके पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं तो फिर कल्पना कीजिए कि सरकार से पूछने पर आपको जवाब क्या मिलेगा! एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में संसद में 35 सवालों में स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम, पर्यावरण, कृषि, वित्त, लिंग, कानून और न्याय पर डेटा की मांग की गई थी। सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र यानी भारत के लोगों की ओर से सरकार से सवाल कर रहे हैं। इन 35 सवालों में से कम से कम 17 का उत्तर न देने का सबसे आम कारण बताया गया 'ऐसा कोई डेटा नहीं रखा जाता है।' जाहिर है जब जनगणना के आँकड़े ही नहीं हैं तो आँकड़ों से जुड़े सवालों का जवाब यही दिया जाएगा या फिर आधा सच या झूठ बताया जाएगा!
तो सवाल है कि विपक्ष क्या कर रहा है?
विपक्ष जनगणना के साथ ही जाति जनगणना कराने के लिए भी मोर्चा खोला हुआ है। कांग्रेस ने सोमवार को जनगणना में देरी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाया और कहा कि जाति गणना के माध्यम से ही शिक्षा और रोजगार में पूरा और सार्थक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि अपने राजनीतिक परिवर्तन और आर्थिक उथल-पुथल के बीच श्रीलंका ने अभी घोषणा की है कि उसकी ताज़ा जनसंख्या और आवास जनगणना सोमवार से शुरू होगी।
कांग्रेस नेता ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'भारत के बारे में क्या? दशकीय जनगणना 2021 में होनी थी। अभी भी इसके होने का कोई संकेत नहीं है।' उन्होंने कहा कि 10 करोड़ से अधिक भारतीयों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 या पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत लाभ से वंचित किया जा रहा है क्योंकि अभी भी 2011 की जनगणना का उपयोग किया जा रहा है।
जयराम रमेश ने कहा, 'अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की विस्तृत गणना 1951 से हर दस साल में होती रही है। अब ज़रूरत है कि ओबीसी और अन्य जातियों की भी इसी तरह विस्तृत गणना की जाए।'
जनगणना में देरी क्यों?
पिछली जनगणना 2011 में हुई थी और अगली जनगणना 2021 में होनी थी। लेकिन 2024 ख़त्म होने को आया और अभी तक इसको लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है। देरी के लिए नरेंद्र मोदी सरकार का बहाना कोविड-19 महामारी रहा। लेकिन इस बहाने पर लगातार सवाल उठते रहे। तर्क दिया जा रहा है कि अगर जनगणना प्राथमिकता होती तो वे 2021 में महामारी के ख़त्म होने के तुरंत बाद इसे शुरू कर देते। इस तरह की कवायद को 2019-20 में कोविड-19 के आने से पहले पूरा हो जाना चाहिए था।
अब माना जा रहा है कि यदि अभी तुरंत भी जनगणना का काम शुरू कर दिया जाए तो आंकड़े 2026 या उसके भी बाद 2027 तक ही आ सकते हैं।
ये कैसा विकास?
भारत के विकास का दावा किया जा रहा है। पर कैपिटा इनकम बढ़ने की बात कही जा रही है। लेकिन यह तय कैसे हो रहा है। अनुमान पर आधारित आँकड़ों के आधार पर? जब वास्तविक जनसंख्या ही पता नहीं होगी तो पर कैपिटा इनकम का कैसे पता चलेगा। क्या विकास को सिर्फ जीडीपी से ही मापा जा सकता है? एक समय ऐसा आता है जब विकास को आउटपुट से ज़्यादा परिणामों से मापा जाना चाहिए। क्या सामाजिक-आर्थिक समानताएँ और स्वतंत्रताएँ बढ़ रही हैं या घट रही हैं? एक दूरदर्शी जनगणना नीति निर्माताओं को उन लोगों को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है जिनके लिए वे नीति बना रहे हैं। यदि नीति निर्माताओं को जनसंख्या, लोगों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति, उनकी डेमोग्राफ़ी की ही जानकारी नहीं होगी तो वे किस तरह की नीतियाँ बनाएँगे?
यह जानने का क्या मतलब है कि कोई व्यक्ति कार्यरत है या नहीं, उसका वेतन क्या है, और क्या वह कृषि, विनिर्माण या सेवा क्षेत्र में काम करता है, बिना यह समझे कि उसकी क्रय शक्ति बढ़ रही है, स्थिर है या घट रही है? क्या वे पर्याप्त स्वास्थ्य और जीवन बीमा के साथ खुद को और अपने परिवार को आराम से कवर करने में सक्षम हैं?
शहरीकरण को विकास का एक उपाय माना जाता है। लेकिन क्या यह विकास का एक उपाय है, यदि शहरों में रहने वाले लोग अधिक ऋणी, अधिक बीमार और बीमारी और आत्महत्या के प्रति अधिक संवेदनशील हैं?
द डिप्लोमैट की रिपोर्ट के अनुसार येल स्कूल में कानून की प्रोफ़ेसर एमी कैप्सिंस्की के अनुसार, 'डेटा सिर्फ़ लोकतांत्रिक सरकारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि यह उन्हें बनाने वाली चीज़ भी है। डेटा का इस्तेमाल सिर्फ़ लोकतंत्रों द्वारा ही नहीं किया जाता, बल्कि यह लोकतंत्र को आकार देने और बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यानी 'हम लोग' जिन्हें शासन करना चाहिए।"
तो सवाल वही है कि मोदी सरकार जनगणना में देरी क्यों कर रही है? क्या वह 2026 में होने वाले चुनावी परिसीमन का इंतज़ार कर रही है? क्या इसका महिला आरक्षण विधेयक से कुछ लेना देना है जिसमें महिलाओं के लिए ज़्यादातर सीटें उन जगहों पर रखने की कोशिश की जाए जिन्हें भाजपा अपना चुनावी गढ़ मानती हो? या फिर अब विपक्ष की जाति जनगणना की मांग ने भी सरकार को मजबूर कर दिया और इस वजह से देरी हो रही है? कारण चाहे जो भी हों, लेकिन जनगणना में देरी का नुक़सान कितना है, इसका आकलन भी इतना आसान नहीं है।