यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की पहली वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इससे जुड़े एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इस प्रस्ताव में 'व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति' लाने और रूस से यूक्रेन में शत्रुता ख़त्म करने और तत्काल सेना वापस लेने की मांग की गई। लेकिन जब इस प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो भारत इससे अबस्टेन कर गया यानी दूर हो गया। इसका मतलब है कि भारत ने न तो इस प्रस्ताव का विरोध किया और न ही समर्थन। ऐसा ही चीन ने भी किया। कुल 32 देश वोटिंग से दूर रहे।
193 सदस्यीय यूएनजीए में मतदान के दौरान 141 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। जबकि 7 ने प्रस्ताव का विरोध किया।
संयुक्त राष्ट्र में यह प्रस्ताव तब लाया गया जब रूस यूक्रेन युद्ध के एक साल होने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन यूक्रेन पहुँच गए थे। इस पर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और परमाणु हमले की चेतावनी भी दे दी।
बहरहाल, भारत ने राजनयिक माध्यमों से शांति की वकालत करते हुए यूएनजीए में पेश किए गए प्रस्तावों में रूस के ख़िलाफ़ मतदान से काफी हद तक दूर रहा है। मौजूदा प्रस्ताव में जितनी जल्दी हो सके 'संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धांतों के अनुरूप यूक्रेन में एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति' तक पहुँचने की ज़रूरत पर बल दिया गया है। इसमें राजनयिक प्रयासों के लिए समर्थन को दोगुना करने के लिए सदस्य राज्यों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों का भी आह्वान किया गया है।
इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। प्रस्ताव में इस मांग को दोहराया गया कि रूस तुरंत, पूरी तरह से और बिना शर्त के यूक्रेन के क्षेत्र से अपनी सभी सैन्य ताकतों को वापस ले ले और शत्रुता ख़त्म करे। हालाँकि भारत इस प्रस्ताव पर वोटिंग से दूर रहा है, लेकिन इसने यूक्रेन में शांति लाने और मानवीय सहायता की वकालत करता रहा है।
रूस के 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से संयुक्त राष्ट्र - महासभा, सुरक्षा परिषद और मानवाधिकार परिषद के कई प्रस्तावों ने आक्रमण की निंदा की है।
भारत यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से लगातार दूर रहा है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून, राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की ज़रूरत पर बल देता रहा है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल सितंबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि इस संघर्ष में भारत शांति और संवाद और कूटनीति के पक्ष में है।
पिछले साल अक्टूबर में भारत ने यूक्रेन-रूस युद्ध से जुड़े उस निंदा प्रस्ताव से खुद को दूर कर लिया था जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चार यूक्रेनी क्षेत्रों के रूसी कब्जे की निंदा करते हुए पारित किया था। कुल सदस्यों में 143 ने उस निंदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था जबकि पांच ने इसके ख़िलाफ़ मतदान किया था। 35 से अधिक सदस्य देश प्रस्ताव से दूर रहे थे और इसमें भारत भी शामिल था।
उससे पहले सुरक्षा परिषद में इसी तरह के एक प्रस्ताव को वीटो कर दिया गया था जिसमें भारत ने भाग ही नहीं लिया था।
भारत ने यूक्रेन-रूस युद्ध की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव से भी खुद को दूर कर लिया था। फिर मार्च महीने में भारत ने 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव में भाग नहीं लिया था जिसने यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा की। तब संयुक्त राष्ट्र में एक सप्ताह से भी कम समय में यह तीसरी बार था जब भारत ने खुद को अलग कर लिया था।