दिल्ली, मुंबई में बीबीसी दफ्तर पर आईटी सर्वे, रात भर चलेगा!
प्रधानमंत्री मोदी और गुजरात दंगों को लेकर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री के लिए चर्चा में रहे बीबीसी के दिल्ली और मुंबई कार्यालय पर आयकर विभाग ने सर्वे किया। एक रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण कम से कम कल तक जारी रहेगा और अधिकारियों के कार्यालयों में पूरी रात तलाशी लेने की संभावना है। आयकर विभाग ने कहा है कि यह सर्वे इसलिए किया गया कि कुछ नियमों का उल्लंघन किया गया है और ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों के तहत अनुपालन नहीं किया गया। पहले मीडिया रिपोर्टों में इनकम टैक्स के सूत्रों के हवाले से भी कहा गया, 'हमारे अधिकारी अकाउंट बुक चेक करने गए हैं, ये तलाशी नहीं है।' सूत्रों से जानकारी मिली थी कि कार्यालय के कर्मचारियों के फोन बाहर जमा करवा लिए गए, सिस्टम कब्जे में ले लिए गए हैं और ऑफिस से किसी को बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई। कार्रवाई पर बीबीसी ने एक बयान में कहा, 'आयकर अधिकारी इस समय नई दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों में हैं और हम पूरा सहयोग कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि यह स्थिति जल्द से जल्द सुलझ जाएगी।'
विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री से जोड़ा है। कांग्रेस ने कहा है कि 'पहले बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री आई, उसे बैन किया गया और अब बीबीसी पर आईटी का छापा पड़ गया है।' कांग्रेस ने इसे 'अघोषित आपातकाल' क़रार दिया है।
पहले BBC की डॉक्यूमेंट्री आई, उसे बैन किया गया।
— Congress (@INCIndia) February 14, 2023
अब BBC पर IT का छापा पड़ गया है।
अघोषित आपातकाल
बता दें कि बीबीसी की 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नामक दो-भाग की श्रृंखला में डॉक्यूमेंट्री आयी है। बीबीसी ने इस सीरीज के डिस्क्रिप्शन में कहा है कि 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक के बीच तनाव को देखते हुए 2002 के दंगों में उनकी भूमिका के बारे में दावों की जांच कर रहा है, जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे।'
जब इस डॉक्यूमेंट्री की ख़बर मीडिया में आई तो भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया। सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी श्रृंखला की कड़ी निंदा की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि 'झूठे नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए प्रोपेगेंडा डिजाइन किया गया'। केंद्र सरकार ने भारत में इसे झूठा और प्रोपेगेंडा कहकर प्रतिबंधित कर दिया है।
20 जनवरी को केंद्र ने यूट्यूब और ट्विटर को डॉक्यूमेंट्री शेयर करने वाले लिंक को हटाने का आदेश दिया था। आदेश में कहा गया था कि यह भारत की संप्रभुता और अखंडता को कमजोर करने वाला पाया गया, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और देश के भीतर सार्वजनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है।
तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा ने भी आयकर विभाग की इस कार्रवाई को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि बीबीसी कार्यालय पर छापे और 'अडानी के लिए फरसान सेवा जब उनकी सेबी चेयरमैन कार्यालय के साथ बातचीत सामने आती है।
Reports of Income Tax raid at BBC's Delhi office
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) February 14, 2023
Wow, really? How unexpected.
Meanwhile farsaan seva for Adani when he drops in for a chat with Chairman @SEBI_India office.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि'। उन्होंने कहा है कि 'यहाँ हम अडानी के मामले में जेपीसी की मांग कर रहे हैं और वहाँ सरकार बीबीसी के पीछे पड़ी हुई है।'
यहां हम अडानी के मामले में JPC की मांग कर रहे हैं और वहां सरकार BBC के पीछे पड़ी हुई है।
— Congress (@INCIndia) February 14, 2023
'विनाशकाले विपरीत बुद्धि'
: @Jairam_Ramesh जी pic.twitter.com/PvQ57tMTVP
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस कार्रवाई को 'वैचारिक आपातकाल की घोषणा' क़रार दिया है।
BBC पर छापे की ख़बर ‘वैचारिक आपातकाल’ की घोषणा है। @BBCIndia
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 14, 2023
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के लिंक को ट्विटर और यूट्यूब से हटाने के फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने दस दिन पहले ही केंद्र को नोटिस जारी किया है। अदालत इस मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
डॉक्यूमेंट्री पर कथित प्रतिबंध लगाए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएँ लगाई गई हैं। इसमें डॉक्यूमेंट्री को रोकने और सोशल मीडिया से लिंक हटाने के लिए आपातकालीन शक्तियों के उपयोग को चुनौती दी गई। वकील एमएल शर्मा की एक याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने कभी भी ब्लॉकिंग आदेश को औपचारिक रूप से प्रचारित नहीं किया। दूसरी याचिका पत्रकार एन राम, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर की थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदर की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत तब तक अंतरिम निर्देश पारित नहीं कर सकती जब तक वह यह नहीं सुनती कि इस पर केंद्र का क्या कहना है। मामले की अगली सुनवाई अप्रैल में होगी।
शीर्ष अदालत ने केंद्र को यह भी निर्देश दिया कि वह डॉक्यूमेंट्री को हटाने के अपने आदेश से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश करे। पीठ ने कहा, 'हम नोटिस जारी कर रहे हैं। तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर किया जाना है। उसके बाद दो सप्ताह के भीतर जवाब दें।'