चारा घोटाला: लालू यादव को 5 साल की जेल और 60 लाख का जुर्माना
चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को 5 साल की जेल और 60 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। रांची की सीबीआई कोर्ट ने कुछ दिन पहले डोरंडा कोषागार से निकासी के इस मामले में फैसला सुनाया था। इस बारे में सजा का एलान सोमवार को किया गया। निश्चित रूप से आरजेडी के लिए यह एक बड़ा झटका है।
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि वे कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान करते हैं लेकिन इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
डोरंडा कोषागार से निकासी का मामला 139.35 करोड़ का था। इस मामले में 24 लोगों को दोषमुक्त करार दिया गया था जबकि 35 लोगों को 3 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। इनमें पूर्व सांसद जगदीश शर्मा और पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के तत्कालीन चेयरमैन ध्रुव भगत का नाम भी शामिल है।
लालू यादव को अब तक चारा घोटाले से जुड़े पांच मामलों में दोषी करार दिया जा चुका है। इनमें चाईबासा कोषागार, देवघर कोषागार और दुमका कोषागार से निकासी मामला भी शामिल है।
क्या है चारा घोटाला?
बिहार में चारा घोटाले का मामला 1985 में पहली बार सामने आया जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।लालू प्रसाद के शासनकाल में 1996 में राज्य के वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों और डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया कि अतिरिक्त निकासी की जाँच करें। इसी समय डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा के पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा मारा।
इस छापेमारी में बड़ी मात्रा में दस्तावेज़ मिले, जिसमें अवैध निकासी और अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच साठगांठ का पता चला।
जुलाई, 1997 में सीबीआई की ओर से दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद एवं उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को भी आरोपी बनाया गया।
अनुमानित रूप से चारा घोटाला मामला 900 करोड़ रुपये का माना जाता है। इसमें 64 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 53 याचिकाएं रांची में दायर की गईं। सीबीआई ने 23 जून, 1997 को दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद और 55 अन्य लोगों को आरोपी बनाया और आईपीसी की धाराओं 420 (धोखाधड़ी) और 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13 बी में मुक़दमे दर्ज हुए।
सीबीआई न्यायालय ने 5 अप्रैल, 2000 को लालू प्रसाद के साथ उनकी पत्नी राबड़ी देवी को भी सह अभियुक्त बनाया, जो राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री थीं।