कोरोना वायरस पर सीरो सर्वे की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार, मई महीने तक जब देश में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या क़रीब 2 लाख थी तभी 64 लाख लोग संक्रमित हो चुके होंगे। सरकारी संस्था भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने 11 मई से 4 जून तक यह सीरो सर्वे कराया था। लेकिन इसकी रिपोर्ट अब इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यस्क आबादी के 0.73 फ़ीसदी लोग कोरोना के संपर्क में आए होंगे। यह पहला सीरो सर्वे है जो पूरे देश में किया गया। इसके तहत 21 राज्यों में 28 हज़ार से लोगों के ख़ून के नमूने लिए गए।
सर्वे के आधार पर 0.73 फ़ीसदी के हिसाब से पूरी आबादी पर संक्रमितों का आकलन किया जाए तो यह संख्या क़रीब 64 लाख तक बैठती है। यानी 4 जून तक भारत में क़रीब इतने लोग संक्रमित हो गए होंगे। तो सवाल उठता है कि फिर 4 जून तक संक्रमितों का आँकड़ा क़रीब सवा दो लाख ही क्यों रिकॉर्ड किया गया
दरअसल, यह इसलिए हुआ कि जितने लोगों की कोरोना जाँच की गई और उसमें जितने लोग भी संक्रमित पाए गए उनकी संक्रमित लोगों में गिनती की गई। लेकिन बहुत बड़ी आबादी ऐसी रही जिनको पता ही नहीं चला होगा कि उनको कोरोना संक्रमण हुआ होगा और वे ठीक भी हो गए। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कोरोना संक्रमित होने वाले 80 फ़ीसदी लोगों को अस्पताल जाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती है और वे बिना इलाज के भी ठीक हो जाते हैं।
तो सवाल यह भी है कि जब ठीक हो गए तो पता कैसे चला कि वे संक्रमित हैं यह पता करने के लिए एक विशेष तरह की जाँच है जिसे सीरॉलॉजिकल टेस्ट कहा जाता है। यह कोरोना-संदिग्धों पर करवाए जा रहे RT-PCR या दूसरे टेस्टों से अलग होता है।
सीरॉलॉजिकल टेस्ट में लोगों के ख़ून की जाँच होती है और जबकि कोरोना-संदिग्धों के मामले में नासिका द्रव, बलग़म आदि की जाँच होती है। सीरॉलॉजिकल टेस्ट भी दो तरह के होते हैं। एक, जिसमें यह पता किया जाता है कि जाँच किए गए व्यक्ति में फ़िलहाल कोई संक्रमण है या नहीं। दूसरे में यह मालूम किया जाता है कि अतीत में कभी इसपर संक्रमण हुआ है या नहीं।
जो कोरोना संक्रमित होते हैं उससे लड़ने के लिए शरीर में एंटी-बॉडी बनती है और कोरोना वायरस के ख़त्म होने के बाद भी वह एंटी-बॉडी लंबे समय तक शरीर में मौजूद होती है। सीरॉलॉजिकल टेस्ट में उसी एंटी-बॉडी के पाए जाने का मतलब होता है कि वह व्यक्ति कभी न कभी कोरोना से संक्रमित हुआ था।
इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, मई तक हर संक्रमित व्यक्ति की पुष्टि हुई तो 82-130 संक्रमित लोगों में इसकी पुष्टि हो ही नहीं पाई होगी क्योंकि उनकी जाँच ही नहीं हो पाई होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'हमारे सर्वेक्षण के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि भारत में समग्र सीरो-प्रसार कम था। मई -2020 के मध्य तक कोरोना के संपर्क में आने वाली वयस्क आबादी का एक प्रतिशत से भी कम। अधिकांश ज़िलों में कमतर प्रसार से संकेत मिलता है कि भारत महामारी के शुरुआती दौर में है और अधिकांश भारतीय आबादी अभी भी कोरोना वायरस संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील है।'
सीरो पॉजिटिविटी दर सबसे ज़्यादा व्यस्कों में भी 18-45 वर्ष की उम्र के लोगों में (43.3 फ़ीसदी) थी। इसके बाद 46 से लेकर 60 वर्ष तक की आयु में 39.5 फ़ीसदी और 60 से ज़्यादा उम्र के लोगों में यह 17.6 फ़ीसदी रही।
सर्वे में यह भी पता चला कि मई और जून के आसपास ही संक्रमण गाँवों तक फैल गया। भारत के शहरों से छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों तक इस संक्रमण का फैलना बड़ी चिंता की बात है। यह सर्वे अधिकतर गाँवों में किया गया। गाँवों में सीरो पॉजिटिविटी रेट यानी संक्रमित पाए जाने वालों की दर 69.4 फ़ीसदी थी जबकि शहरी क्षेत्रों में यह सिर्फ़ 15.9 फ़ीसदी थी।
सीरो सर्वे के दौरान संक्रमितों का जो आँकड़ा क़रीब सवा दो लाख था वह अब तीन महीने बाद अब 45 लाख 62 हज़ार से ज़्यादा हो गया है। इस हिसाब से यदि सीरो सर्वे अब किया जाए तो संक्रमितों की यह संख्या काफ़ी ज़्यादा हो चुकी होगी।
बता दें कि अब तो हर रोज़ कोरोना संक्रमण के मामले क़रीब 90-97 हज़ार के बीच आ रहे हैं। शुक्रवार को ही देश में 24 घंटे में 96 लाख 551 पॉजिटिव केस आए और 1209 मरीज़ों की मौत हुई। अब तक 76 हज़ार 271 मौत हो चुकी है। 35 लाख 42 हज़ार से ज़्यादा मरीज़ ठीक हो चुके हैं, फ़िलहाल क़रीब 9 लाख 43 हज़ार संक्रमित हैं। देश में सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र है और वहाँ 9 लाख 90 हज़ार 795 पॉजिटिव केस आ चुके हैं और 28 हज़ार 282 लोगों की मौत हो चुकी है।