I.N.D.I.A में कहां फंसा सीट बंटवारे का मामला, कांग्रेस क्यों देर कर रही है?
विपक्षी खेमे के हालात का जायजा लेना हो तो सोमवार को महाराष्ट्र के प्रमुख दलित नेता के बयान से लिया जा सकता है। महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के नेता प्रकाश अंबेडकर ने लोकसभा चुनाव में कुछ महीने बचे होने के बावजूद सीट-बंटवारे समझौते को अंतिम रूप देने के प्रति "गंभीरता" नहीं दिखाने के लिए कांग्रेस की आलोचना की। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस सीट बंटवारे पर निर्णय लेने में अधिक समय लेती है, तो इससे भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा-
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सिर्फ गठबंधन के बारे में बात करने से काम नहीं चलता। आपको अपने इरादे स्पष्ट करने चाहिए कि आप लड़ना चाहते हैं या नहीं।
- प्रकाश आम्बेडकर, वंचित बहुजन अघाड़ी 1 जनवरी 2024 सोर्सः पीटीआई
प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वीबीए का महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की पार्टी से समझौता है। जबकि वीबीए को भी इंडिया गठबंधन में शामिल किया जाना है। लेकिन इंडिया के नेता अभी तक फैसला नहीं से पा रहे हैं। कांग्रेस का अभी तक उद्धव की पार्टी से समझौता नहीं हुआ है तो इस वजह से वीबीए का मामला भी सीट शेयरिंग में फंसा हुआ है। क्योंकि उद्धव को जितनी सीटें मिलेंगी, उसी में वीबीए का शेयर है। वीबीए इस वजह से कोई तैयारी नहीं कर पा रही है। उद्धव कम से कम 23 सीटें मांग रहे हैं। वहां एनसीपी भी है। बंटने के बावजूद शरद पवार की महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई है। महाराष्ट्र एक उदाहरण है इंडिया गठबंधन के गंभीर नहीं होने का। ऐसे उदाहरण अन्य राज्यों में भी मिल जाएंगे।
प्रकाश आंबेडकर की इस बात में दम है कि "किसी के पास उम्मीदवार हैं या नहीं या किसी के पास वोट शेयर है या नहीं, इसका फैसला एक टेबल पर किया जा सकता है, लेकिन वे आकर इस बारे में बात भी नहीं कर रहे हैं। यह दुखद स्थिति है कि एमवीए गठबंधन के पतन के बाद भी पार्टियां सीट-बंटवारे और गठबंधन पर निर्णय नहीं ले पा रही हैं।"
हालांकि एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने उम्मीद जताई कि अगले 8-10 दिनों में सीट शेयरिंग पर बात हो जाएगी। उन्होंने कहा - "...15 दिनों पहले दिल्ली में सोनिया गांधी, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के बीच एक बैठक हुई थी। उस बैठक में सीट बंटवारे के बारे में कई बातें स्पष्ट की गईं। …अगले 8-10 दिनों में आपको जानकारी भेज दी जाएगी।”
2019 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। 48 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट और एनसीपी को 4 सीटों पर जीत मिली। 2019 का चुनाव भी शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर लड़ा था। बीजेपी ने 23 सीटें और शिवसेना ने 18 सीटें जीतीं।
इंडिया गठबंधन की पिछली दिल्ली बैठक के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि 30 दिसंबर तक सीट बंटवारे का मुद्दा हल हो जाएगा। लेकिन इस सिलसिले में कोई बातचीत आगे नहीं बढ़ी। क्षेत्रीय दलों की हठधर्मिता के सामने कांग्रेस सरेंडर नहीं करना चाहती है। क्योंकि दिल्ली बैठक के बाद से ही क्षेत्रीय दलों के उल्टे सीधे बयान आ रहे हैं।
कांग्रेस ने बंगाल में ममता बनर्जी पर सीट शेयरिंग का खेल खराब करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने मुर्शिदाबाद में कहा- “मुख्यमंत्री खुद पश्चिम बंगाल में गठबंधन नहीं चाहतीं क्योंकि उन्हें समस्याएं होंगी। उन्होंने ही गठबंधन की संभावना को बर्बाद कर दिया। यदि आप उनके भाषणों को सुनेंगे तो आप देखेंगे कि वह खुद ऐसा नहीं चाहती हैं।''
दरअसल, अधीर रंजन का बयान तभी आया जब इस मसले पर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कई दिनों पहले बयान दिया था। ममता ने कहा था- “टीएमसी पश्चिम बंगाल में भाजपा से लड़ेगी जबकि इंडिया गठबंधन देश के बाकी हिस्सों में रहेगा। केवल टीएमसी ही पश्चिम बंगाल में भाजपा को सबक सिखा सकती है और देश भर में दूसरों के लिए एक मॉडल स्थापित कर सकती है। कोई अन्य पार्टी ऐसा नहीं कर सकती।'' ममता के इस बयान से साफ हो गया कि वो बंगाल में कांग्रेस या वाम दलों से कोई समझौता नहीं करेंगी।
बहरहाल, अधीर रंजन के बयान से यह भी साफ हो गया कि कांग्रेस अब सीट शेयरिंग को लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। अधीर की इन लाइनों को गौर से पढ़िए- “हम अपनी तैयारी के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन हमारे साथ आ रहा है या हमें छोड़कर जा रहा है। हमने मुर्शिदाबाद में टीएमसी और बीजेपी को कई बार हराया है। हम इसे दोबारा करेंगे।'' हालांकि उन्होंने कहा कि “ममता बनर्जी कांग्रेस के लिए दो सीटें - मालदा दक्षिण और बरहामपुर - छोड़ रही हैं। हम और जगहें तलाश रहे हैं। उम्मीद है कि गठबंधन में कोई समस्या नहीं होगी।''
हालांकि अधीर के बयान के बाद टीएमसी फिर से विपक्षी एकता की बातें करने लगी है। टीएमसी सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने सोमवार को कहा- "एनडीए सरकार को हटाने और इंडिया गठबंधन को सत्ता में लाने के लिए हमें सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए। टीएमसी चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 सीटें जीतने के लिए सभी कदम उठाएगी।" उन्होंने कहा- "सीटों का बंटवारा जल्द से जल्द हो तो अच्छा रहेगा। 400 सीटों पर सीट बंटवारा हो जाना चाहिए। अगर 400 सीटों पर 1:1 की लड़ाई होगी तो बीजेपी की सीटें कम हो जाएंगी।"
बता दें कि पश्चिम बंगाल में, कांग्रेस ने 2019 का लोकसभा अकेले चुनाव लड़ा, तब अधिकांश कांग्रेस नेताओं ने सीपीएम के साथ सीट साझा करने की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। 42 सीटों में से कांग्रेस ने केवल 2 सीटें जीतीं जबकि टीएमसी ने 22 सीटें जीतीं।
चंद वर्षों पहले अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी भी पंजाब को लेकर स्थिति साफ नहीं कर रही है। कभी वो समझौते की बात कहती है तो कभी वो अकेले लड़ने की बात कहती है। राज्य के नेताओं ने पहले सार्वजनिक रूप से कहा है कि वे चाहते हैं कि पार्टी पंजाब में अकेले चुनाव लड़े।
हालांकि पंजाब कांग्रेस के नेता भी राज्य में कांग्रेस के अकेले लड़ने की सलाह आलाकमान को दे रहे हैं। 26 दिसंबर को पंजाब के शीर्ष पार्टी नेताओं के साथ कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की बैठक में भी यही भावना साझा की गई थी। कांग्रेस राजनीतिक मामलों की समिति के 30 से अधिक सदस्यों की बैठक के बाद, जिसमें सीट-बंटवारे की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई, कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनकी राय सुना गया और पार्टी के हितों की रक्षा की जाएगी। दरअसल, पंजाब में सीट शेयरिंग का सीधे दिल्ली से जुड़ा हुआ है। अगर कांग्रेस ने दिल्ली में आप से समझौता किया तो ही वो पंजाब में कांग्रेस से करेगी।
17 दिसंबर को आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के बठिंडा में रैली की थी। केजरीवाल ने लोगों से 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 13 सीटों पर सत्तारूढ़ आप को वोट देने की अपील की थी। उनके इसी बयान से संकेत मिला था कि पंजाब में कांग्रेस और आप के बीच कोई तालमेल नहीं होने जा रहा है। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों में, 13 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने आठ सीटें जीतीं और AAP केवल एक सीट हासिल करने में सफल रही।
कांग्रेस को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे अन्य राज्यों में भी सीट-बंटवारे की इसी तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
यूपी में अखिलेश यादव एक तरफ तो पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का राग अलाप रहे हैं तो दूसरी तरफ लोकसभा की साठ सीटों पर चुनाव लड़ने का सपना देख रहे हैं। कांग्रेस उन्हें 20 से ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती और बसपा को भी साथ लेना चाहती है। अखिलेश की ज्यादा सीटों की महत्वाकांक्षा तो है ही लेकिन वो बसपा से किसी भी गठबंधन के खिलाफ हैं। इस तरह यूपी में मामला जितना ऊपर साफ नजर आ रहा है, उतना है नहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा-सपा गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तब बसपा की दस और सपा की पांच सीटें आई थीं। कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी। लेकिन 2019 के चुनाव में यह बात भी साफ हुई कि सपा का वोट बसपा को मिला लेकिन मायावती बसपा का वोट सपा को नहीं दिली पाईं। उसके बाद 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव हुआ तो बसपा साफ हो गई, उसका परंपरागत मतदाता भाजपा में चला गया। यानी दलितों ने भाजपा को वोट दिया। इसी तरह अखिलेश सिर्फ मुस्लिम वोटों की वजह से इज्जत बचा पाई, क्योंकि काफी यादव वोट भाजपा में खिसकर गए थे।
यूपी में मतदाताओं का संकेत पकड़ने में विपक्ष यानी तीन प्रमुख दल कांग्रेस, बसपा और सपा नाकाम रहे। लोकसभा में भी वही नाकामी मिलने जा रही है। विपक्ष समर्थक मतदाता कई सर्वे में साफ कर चुके हैं कि जब तक ये तीनों पार्टियां और अन्य ओबीसी दल मिलकर नहीं लड़ते, तब तक भाजपा को यूपी में हरा पाना मुमकिन है। कांग्रेस के पास तो सभी वर्गों और समुदायों का वोट है। लेकिन बसपा और सपा इस मामले में सिर्फ दलित-मुस्लिम या फिर यादव-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे हैं। यूपी में जिस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए भाजपा का वोट तोड़ा जा सकता है, वो हथियार इन पार्टियों के पास नहीं है।
बिहार में आरजेडी और जेडीयू अपने सीट बंटवारे में कांग्रेस को कोई भाव नहीं दे रहे हैं। पिछले दिन आरजेडी के तेजस्वी यादव ने संकेत दिया था कि कांग्रेस को चार-पांच सीटें दी जा सकती हैं। जबकि कांग्रेस की नजर ज्यादा सीटों पर है। क्योंकि राज्य में आरजेडी काफी मजबूत स्थिति में है, वो आरजेडी के वोट बैंक के सहारे अपनी नैया पार लगाना चाहती है लेकिन तेजस्वी ऐसा स्वीकार नहीं कर रहे हैं। हालांकि राहुल गांधी और लालू यादव के बीच अच्छा तालमेल है, दोनों में बात भी होती है। लेकिन सीट शेयरिंग की बात आने पर आरजेडी अपना हित देखती है।