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मुसलमान से हिन्दू लड़की के विवाह का आयोजन रद्द, लव जिहाद का आरोप

मुसलमान से हिन्दू लड़की के विवाह का आयोजन रद्द, लव जिहाद का आरोप

हिन्दू माता-पिता ने अपने समाज में लड़का नहीं मिलने पर अपनी अपाहिज बेटी का विवाह एक मुसलमान लड़के से कराया। लेकिन जब हिन्दू रीति-रिवाज से इस शादी को संपन्न कराने के लिए आयोजन किया गया तो विरोध हुआ। 

लव जिहाद के नाम पर हिन्दू-मुसलमान शादी रोकने के लिए कुछ कट्टरपंथी लोग किस हद तक जा सकते हैं, इसका एक उदाहरण महाराष्ट्र के नासिक शहर में देखने को मिला है।

हिन्दू माता-पिता ने अपने समाज में लड़का नहीं मिलने पर अपनी अपाहिज बेटी का विवाह एक मुसलमान लड़के से कराया।

लेकिन कोर्ट मैरिज के बाद जब हिन्दू रीति-रिवाज से इस शादी को संपन्न कराने के लिए आयोजन किया गया तो उसका विरोध हुआ। हिन्दू लड़की के पिता को दबाव में आकर यह आयोजन रद्द करना पड़ा। 

क्या है मामला?

सुनार की दुकान चलाने वाले प्रसाद अडगाँवकर इस बात से परेशान थे कि उन्हें अपनी 28 साल की अपाहिज बेटी रसिका के लिए कोई योग्य दूल्हा नहीं मिल रहा था। इसकी वजह उसकी अपंगता थी। 

उन्हें खुशी हुई जब रसिका के स्कूल दिनों के सहपाठी आसिफ़ ख़ान ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव दिया। दोनों परिवार काफी दिनों से एक-दूसरे को जानते भी थे। लिहाज़ा, धर्म उनके बीच नहीं आया और दोनों पक्ष इस हिन्दू-मुसलिम विवाह पर राजी हो गए।

नासिक की अदालत में सिविल मैरिज हो गई और रसिका अपने ससुराल भी चली गई। यह तय हुआ कि बाद में रसिका के घर पर हिन्दू रीति-रिवाज से शादी संपन्न कराई जाएगी। 

लेकिन जब रसिका के पिता ने इस हिन्दू-मुसलमान शादी का कार्ड छपवाया और लोगों को भेजा तो लव जिहाद का मुद्दा उठ खड़ा हुआ।

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रसिका के विवाह का कार्ड

हिन्दू-मुसलिम विवाह का विरोध

शादी का कार्ड सोशल मीडिया पर वारयरल हो गया, वॉट्सऐप पर लोग टीका-टिप्पणी करने लगे, कई तरह के दबाव बनाने लगे, मीम बना कर डालने लगे और फब्तियाँ कसने लगे।

और तो और, रसिका के पिता को कुछ अनजान लोगों न फ़ोन कर डराया-धमकाया, इसे लव जिहाद बताया और उन्हें चेतावनी भी दी। 

रसिका के पिता अडगाँवकर को उनके समुदाय के लोगों ने बुलाया, बैठक हुई और इसमें उनसे कहा गया कि वे यह कार्यक्रम आयोजित न करें। उन्हें एक चिट्ठी देनी पड़ी, जिसमें उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है।

आयोजन रद्द

प्रसाद अडगाँवकर ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'समाज के लोगों और दूसरे लोगों से कई तरह के दबाव आने लगे, इसलिए यह फ़ैसला किया गया कि शादी का आयोजन रद्द कर दिया जाए।' 

नासिक के लाड सुवर्णकार संस्था के अध्यक्ष सुनील महलकर ने कहा, 'हमें एक चिट्ठी मिली है, जिसमें यह कहा गया है कि शादी का यह आयोजन रद्द कर दिया गया है।' 

दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में न तो लड़की ने धर्म बदला, न ही वह अपने अभिभावकों की इच्छा के ख़िलाफ़ घर से भाग गई, न ही पुलिस में किसी ने कोई शिकायत लिखवाई है। यह रिश्ता उसके पिता की मर्जी से हुआ।

लव जिहाद!

लेकिन इसे लव जिहाद कह कर इसका विरोध किया गया। 

याद दिला दें कि बीजेपी, विहिप हिन्दू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस हिन्दू लडकियों के मुसलमान लड़कों से शादी को लव जिहाद बता कर उसका विरोध करता है।

उसके लोग इस तरह के विवाह करने वालों को मारते-पीटते हैं, उन्हें झूठे मामलों में फंसाते हैं। ज़्यादातर मामलों में पुलिस भी पीड़ितों का साथ नहीं देती है। ,

यह बात और है कि किसी हिन्दू लड़के के मुसलमान लड़की के साथ विवाह को वे लव जिहाद नहीं कहते, न ही उसका विरोध करते हैं। 

क्या कहना है अदालतों का?

दूसरी ओर, कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि यदि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह में कोई महिला अपना धर्म बदल कर दूसरा धर्म अपना लेती है और उस धर्म को मानने वाले से विवाह कर लेती है तो किसी अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। 

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कलकत्ता हाई कोर्ट

जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस अरिजित बनर्जी के खंडपीठ ने यह फ़ैसला उस मामले की सुनवाई करते हुए दिया जिसमें 19 साल की एक महिला ने अपना धर्म बदल लिया और दूसरे धर्म के युवक से विवाह कर लिया था। 

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला

इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि धर्म की परवाह किए बग़ैर मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार किसी भी नागरिक के जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का ज़रूरी हिस्सा है। संविधान जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। 

जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अगरवाल की बेंच ने एक अहम फ़ैसले में कहा कि पहले के वे दो फ़ैसले ग़लत थे, जिनमें कहा गया था कि सिर्फ विवाह करने के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन प्रतिबंधित है। बेंच ने कहा कि ये दोनों ही फ़ैसले ग़लत थे और 'अच्छे क़ानून' की ज़मीन तैयार नहीं करते हैं। 

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इलाहाबाद हाई कोर्ट

कर्नाटक हाई कोर्ट का निर्णय

इसी तरह एक दूसरे मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी कहा था कि किसी व्यक्ति का मनपसंद व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान देता है। 

जस्टिस एस. सुजाता और सचिन शंकर मगडम ने वजीद ख़ान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला दिया था। वजीद ख़ान ने अपने जीवन साथी सॉफ़्टवेअर इंजीनियर राम्या को बेंगलुरु के महिला दक्षता समिति में ज़बरन रखने का मामला उठाते हुए अदालत में हैबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर की थी। 

केरल हाई कोर्ट का फ़ैसला

केरल हाई कोर्ट ने एक निर्णय में कहा था कि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह को 'लव-जिहाद' नहीं मानना चाहिए, बल्कि इस तरह के विवाहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 

कन्नूर के रहने वाले अनीस अहमद और श्रुति के विवाह से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने दोनों को एक साथ रहने की अनुमति देते हुए कहा था कि यह विवाह पूरी तरह जायज है। 

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