हिमाचल प्रदेश: चुनाव प्रचार के दौरान कौन से बड़े मुद्दे छाए रहे

07:57 am Nov 12, 2022 | सत्य ब्यूरो

हिमाचल प्रदेश में प्रचार के दौरान तमाम मुद्दे और वादे चुनाव में छाए रहे। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही जनता से कई वादे भी किए। इस खबर में हम बात करेंगे कि 68 सीटों वाले इस छोटे से प्रदेश में चुनाव के दौरान कौन से बड़े मुद्दे गूंजते रहे और बीजेपी और कांग्रेस ने कौन से बड़े वादे किए। 

बेरोजगारी 

बेरोजगारी का मुद्दा हिमाचल प्रदेश के चुनाव में बेहद अहम रहा। इस साल अक्टूबर में राज्य में बेरोजगारी दर 9.2 फीसद रही। इंडिया टुडे ने एक अध्ययन के हवाले से दावा किया है कि हिमाचल प्रदेश में 15 लाख बेरोजगार हैं और इसमें से 8.77 लाख बेरोजगारों ने रोजगार दफ्तरों में अपना नाम पंजीकृत कराया था। निश्चित रूप से बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवा जिसका भी साथ देंगे, उस दल की सरकार हिमाचल प्रदेश में बन सकती है। 

ओल्ड पेंशन स्कीम

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस की बहाली एक बड़ा मुद्दा रहा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस की सरकार बनने पर तुरंत ओपीएस को बहाल करने का वादा किया है। 

ओपीएस को साल 2003 में खत्म कर दिया गया था। इस चुनावी साल में सरकारी कर्मचारियों ने ओपीएस की बहाली के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। आम आदमी पार्टी ने भी कहा कि वह ओपीएस के मुद्दे पर सरकारी कर्मचारियों के साथ है। पंजाब में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार ने ओपीएस को लागू कर दिया है। इसके अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारों ने भी अपने-अपने राज्यों में ओपीएस को लागू किया है। 

हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ ने बीजेपी सरकार को चेतावनी दी थी कि वह ओपीएस को लागू करे वरना चुनाव में खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे। कर्मचारियों के लगातार प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एलान किया था कि उनकी सरकार इस मामले में एक कमेटी बनाएगी। लेकिन यह बीजेपी के उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान लिए गए स्टैंड के बिलकुल विपरीत है। उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान बीजेपी ने कहा था कि ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करना संभव नहीं है 

सेब किसानों का दर्द

हिमाचल प्रदेश का सेब उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है। सेब बागान के किसान बढ़ती लागत से परेशान हैं। लागत बढ़ने के पीछे उर्वरक का महंगा होना, ईंधन का महंगा होना आदि वजहें हैं। इसके अलावा सेब के कार्टन पर जीएसटी को 12 फीसद से बढ़ाकर 18 फीसद किए जाने की वजह से भी सेब किसान परेशान हैं। हिमाचल प्रदेश में सेब की खरीद के लिए कोई न्यूनतम खरीद दर भी तय नहीं की गई है और इसकी वजह से अच्छे फलों का एक बड़ा हिस्सा कम दामों पर चला जाता है और किसानों को सेब की सही कीमत नहीं मिल पाती।

एक सेब किसान ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा कि सेब के व्यवसाय में लगे किसान हिमाचल प्रदेश में लाखों लोगों को रोजगार देते हैं लेकिन सरकार उनकी इंडस्ट्रियल वैल्यू को समझने में फेल रही है। उन्होंने कहा कि सेब उत्पादकों को बहुत मुश्किल से लागत मिल रही है, मुनाफा मिलना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में सेब का व्यवसाय करने वाले किसान चुनाव में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। 

सड़क का मुद्दा

हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों तक सड़क ना होना एक बड़ा मुद्दा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस बात को स्वीकार किया था कि राज्य के 17882 गांवों में से 10899 गांवों में ही सड़क की सुविधा है। इसका मतलब बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं जहां पर अभी तक सड़क नहीं पहुंच पाई है। सड़क न होने की वजह से दूर के इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में इन गांवों के मतदाता चुनाव में अपनी नाराजगी का इजहार कर सकते हैं। 

अग्निपथ योजना

केंद्र सरकार के द्वारा सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना का इस बार कई राज्यों में जबरदस्त विरोध हुआ था। पर्वतीय राज्य हिमाचल से भी बड़ी संख्या में युवा फौज में शामिल होते हैं। लेकिन अग्निपथ योजना में 4 साल के बाद 75 फीसद युवाओं को बाहर करने की वजह से इसके विरोध में हिमाचल में भी प्रदर्शन हुआ था। क्योंकि राज्य में बेरोजगारी ज्यादा है ऐसे में यहां भी लोगों ने इस योजना के खिलाफ आवाज उठाई थी। इस योजना से नाराज युवा बीजेपी के खिलाफ मतदान कर सकते हैं। 

बगावत का मुद्दा

इस विधानसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं की बगावत का भी रहा। बीजेपी में मंडी, बिलासपुर सदर, कांगड़ा, धर्मशाला, झंडुता, चंबा, देहरा, कुल्लू, हमीरपुर, नालागढ़, फतेहपुर, किन्नौर, आनी, सुंदरनगर, नाचन और इंदौरा सीट पर बागी चुनाव मैदान में हैं जबकि कांग्रेस में पछड़, आनी, ठियोग, सुलह, चौपाल, आनी, हमीरपुर और अर्की सीटों पर नेता ताल ठोक रहे हैं। साफ है कि बीजेपी में बगावत ज्यादा है। ऐसे में सरकार बनाने या बिगाड़ने में बगावत का भी अहम रोल रहेगा। 

बीजेपी के वादे

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में 8 लाख नौकरियां देने और कॉमन सिविल कोड (यूसीसी) लाने का वादा किया है। बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र में 11 वादे किए गए हैं। 

बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि सत्ता में लौटने पर हिमाचल को पांच नए मेडिकल कॉलेज मिलेंगे। प्राथमिक स्वास्थ्य को और मजबूत करने के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में मोबाइल क्लीनिकों की संख्या दोगुनी की जाएगी ताकि दूर-दराज के लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिल सके। हर मौसम में चलने वाली सड़कें 5,000 करोड़ रुपये के निवेश से सभी गांवों को जोड़ेंगी। कक्षा 6 से 12 तक की छात्राओं को स्कूल जाने के लिए साइकिल दी जाएगी। हर जिले में दो बालिका छात्रावास स्थापित किए जाएंगे। 'शक्ति' कार्यक्रम के तहत, धार्मिक स्थलों और मंदिरों के आसपास बुनियादी ढांचे और परिवहन के विकास के लिए 10 साल की अवधि में 12,000 करोड़ खर्च किए जाएंगे। 

पीएम-किसान निधि योजना के तहत सालाना 3,000 रुपए की अतिरिक्त राशि दी जाएगी और 10 लाख किसानों को इस कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा।

कांग्रेस के वादे

कांग्रेस ने जो बड़े वादे किए हैं उसमें हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली, पहली मंत्रिमंडल बैठक में एक लाख सरकारी नौकरी को मंजूरी, गांव-गांव तक बिजली की आपूर्ति, नोटबंदी और कोरोना से प्रभावित बंद पड़े उद्योगों के लिए विशेष पैकेज आदि अहम हैं। इसके अलावा न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाकर 500 रुपए करने, सभी एचएससी, सीएचसी, पीएचसी में स्टाफ, डॉक्टर और अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ की भर्ती करने का वादा भी कांग्रेस ने किया है। कांग्रेस ने वादा किया है कि सरकार बनने पर मिल्क प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाएंगी और प्रति परिवार 4 गायों तक की खरीद पर सब्सिडी भी दी जाएगी।

पार्टी ने वादा किया है कि अगर वह हिमाचल में सरकार बनाने में सफल रही तो इन सभी वादों को पूरा करेगी।