कोरोना ने कैसे बदल दी हमारी मानसिकता, आख़िर हर चीज से डर या आशंका क्यों?

07:15 am Apr 24, 2020 | डॉ. सरबजीत कौर सरन - सत्य हिन्दी

किसी भी संकट की स्थिति में व्यक्ति-विशेष की विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ होती हैं। कुछ व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएँ तुरंत ही आनी शुरू हो जाती हैं, तो कुछ लोगों में यह देर से। प्रतिक्रियाएँ भी अलग-अलग रूप में आती हैं। यदि संक्रामक महामारी की स्थिति हो तो उस समय व्यक्तियों में यह भय उत्पन्न हो जाता है कि कहीं उन्हें या उनके परिवार के सदस्यों में यह संक्रमण न हो जाए।

वर्तमान समय में ‘कोरोना’ संक्रमण से एक भय का वातावरण बना हुआ है। जब व्यक्ति लगातार इस प्रकार के संक्रमण के भय में रहता है तब एक तनाव की स्थिति बनी रहती है और वह कई तरह की सावधानियाँ बरतता है। जैसे अनावश्यक रूप से बाहर न जाना, किसी अपरिचित के संपर्क में न आना, स्वच्छता का अधिक ध्यान रखना इत्यादि। ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति ख़ुद या उनके सम्बन्धी ज़रूरी काम के लिए घर से बाहर निकलते हैं, तब एक तनाव का वातावरण बन जाता है और वापस आने के बाद व्यक्ति के मस्तिष्क में एक भय व असमंजस की स्थिति बनी हुई होती है कि उसने/सम्बन्धी ने बाहर जाने के दौरान और वापस आने के बाद ज़रूरी और पर्याप्त सावधानियाँ बरती हैं कि नहीं।

एक ऐसी स्थिति बन चुकी है कि व्यक्ति अपने भविष्य की अनिश्चितताओं के बारे में आशंकित है। जो लोग अपने घरों से दूर व अकेले रह रहे हैं, उन्हें ख़ुद की और अपने लोगों की चिंता होती रहती है। इस संक्रामक बीमारी के समय में उन्हें यह भी चिंता सताती है कि उनके व्यवसाय या नौकरी का क्या होगा कहीं नौकरी चली तो नहीं जाएगी क्या होगा यदि उनका व्यवसाय या नौकरी पर संकट आ जाए उनके व उनके परिवार के जीविका का निर्वहन कैसे होगा देश और विश्व की अर्थव्यवस्था पर इस संक्रामक महामारी का क्या प्रभाव होगा महामारी के बाद उन्हें कोई काम, व्यवसाय या नौकरी मिलेगी या नहीं 

ऐसी कई अनिश्चितताओं से व्यक्ति की मानसिक स्थिति अशांत रहने लगती है और यह मानसिक तनाव व्यक्ति के रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। आख़िर में व्यक्ति शारीरिक रूप से भी कमज़ोर होने लगता है।

समस्या से लड़ने के लिए मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य ठीक होना और उनके बीच सामंजस्य होना अति-आवश्यक है।

इस कोरोना संक्रमण के कारण बहुत से विद्यार्थी भी परेशान हैं। उनके सामने भी अनिश्चितता का वातावरण बन चुका है कि उनकी पढ़ाई का क्या होगा आगे प्रवेश कहाँ लें, उनके सत्र परीक्षाओं का क्या होगा, बिना परीक्षा के वो अगले सत्र में कैसे प्रवेश पा सकेंगे, इत्यादि उन विद्यार्थियों को, जो देश से बाहर पढ़ाई के लिए जाना चाहते थे, अपना भविष्य अन्धकारमय प्रतीत हो रहा है।

एक बहुत ही बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव लोगों में देखने को मिलता है कि लोग अनावश्यक रूप से दैनिक उपयोग की वस्तुओं का संकलन करने लग जाते हैं। उनमें होड़-सी लग जाती है कि जितना ज़्यादा सामान वो घर में इकट्ठा कर सकते हैं उतना ख़रीद लें, किन्तु इसके दुष्परिणाम भी भयावह हो सकते हैं। मिसाल के तौर पर, दुकानदार सामान का मूल्य बढ़ा देते हैं, जमाखोरी शुरू हो जाती है, बाज़ार में आवश्यक चीजों की कमी हो सकती है, और खरीदारी के लिए भीड़ लगाने से संक्रमण का ख़तरा भी बढ़ सकता है। फ़िलहाल लोगों का ऐसा व्यवहार भी देखने को मिल रहा है।

दिनचर्या में उथल-पुथल 

एक अन्य प्रकार का विकार जो कोरोना संक्रमण के दौरान दिख रहा है वह है कई लोगों में अनिद्रा या अति-निद्रा की स्थिति। चौबीसों घंटे घर में ही रहने की वजह से लोगों की दिनचर्या में बहुत उथल-पुथल मच गई है। इससे एक तरफ़ जहाँ कुछ लोग रात में नींद न आने की समस्या से परेशान हैं तो दूसरी ओर कुछ लोगों को अत्यधिक नींद आती है। दोनों ही प्रकार की समस्याएँ लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

चिड़चिड़ेपन की समस्या 

कोरोना के भय से लोगों में क्रोध व चिड़चिड़ेपन की समस्या भी आई है। सामान्य तौर पर भारत में पुरुषों को घरों में कार्य करने की आदत नहीं। वर्तमान में उन्हें घरों पर ही रह कर ऑफ़िस का कार्य करना पड़ रहा है और घर के कार्यों में भी सहयोग देना पड़ रहा है। घर एवं ऑफ़िस के कार्यों के बीच संतुलन न बना पाने की वजह से तनाव, क्रोध और चिड़चिड़ेपन की समस्या बढ़ रही है।

कुछ व्यक्तियों में यह जानने की उत्सुकता होती है कि देश में क्या हो रहा है, कोरोना संक्रमण से देश व विदेशों में क्या प्रभाव पड़ रहा है, और इसलिए वो लगातार टेलीविज़न के समक्ष बैठे रहते हैं। 

बार-बार नकारात्मक समाचार सुनने व देखने से मन में नकारात्मक विचार आने शुरू हो जाते हैं और व्यक्ति निराशा व नकारात्मकता का शिकार होने लगता है। इससे उसके व्यक्तित्व पर भी प्रभाव पड़ता है।

बहुत से लोग जो शारीरिक व्यायाम के लिए व्यायामशालाओं में जाया करते थे उनकी स्थिति भी ख़राब है। उनकी दिनचर्या में बदलाव आ रहा है, उनके व्यायाम की आदत छूटती जा रही है। इन सबका प्रभाव सरदर्द, एसिडिटी, अपच इत्यादि के रूप में हो रहा है। व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है, जो वांछनीय नहीं है।

यदि आप चिंता, भय, निराशा से ग्रसित हो रहे हैं, यदि आप ख़ुद को दुखी व असहाय महसूस कर रहे हैं, यदि आप भूख, नींद की कमी व लगातार थकान महसूस कर रहे हैं और अनेक प्रयासों के बावजूद इन सब से नहीं निकल पा रहें, तो आपको शीघ्र ही मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से संपर्क करना चाहिए।

कैसे करें बचाव

ऐसे संकट से ख़ुद को बचाने के लिए कुछ उपाय हैं। सबसे पहले यह सोचिये कि आप अकेले नहीं हैं, पूरा संसार इस समय एकजुट होकर इस समस्या का सामना कर रहा है। दूसरे, इस नए माहौल में एक नई दिनचर्या बनाएँ, जिसमें आपके सोने, उठने और खाने आदि जैसी चीजों के समय में बदलाव करने की ज़रूरत नहीं हो। तीसरे, प्रतिदिन व्यायाम (कम से कम 30 मिनट) करने की आदत डालें, यह आपके मन और शरीर दोनों के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसके लिए आपको कहीं बहार जाने की कोई ज़रूरत नहीं, क्योंकि योग व ध्यान आप घर में ही कर सकते हैं। जब आप गहरी साँस लेते व छोड़ते हैं तब आपके मस्तिस्क को ज़्यादा ऑक्सीजन मिलती है। यही तो प्राणायाम है। प्राणायाम से आपका रक्तचाप, नाड़ी की गति, हृदयगति एवं शरीर के बाक़ी अंगों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। चौथे, यदि आप के घर में आगे खुली जगह है, छत है, या आँगन है तो वहाँ जाइए और खुली व स्वच्छ हवा में साँस लेने की कोशिश कीजिए।

ख़ुद को व्यस्त रखें

दिन में एक बार समाचार भी देखिये जिससे आपको देश व दुनिया की ख़बरें मिलेंगी, लेकिन बार-बार देखने से बचना चाहिए। इसके अलावे आपको उन फ़िल्मों को देखना चाहिए जिन्हें आप देखना चाहते थे लेकिन दैनिक व्यस्तता की वजह से देख न सके थे। इन सबके अलावे कुछ पढ़ना, लिखना, गाने सुनना, गाना गाना, चित्रकारी करना या रोज़ नए तरह के पकवान बनाना जैसे रचनात्मक कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखना चाहिए। कुछ समय अपने घर में उपस्थित प्रियजनों से बातचीत के लिए भी रखना चाहिए या उनके लिए जो दूर हैं और आप उनसे मोबाइल से वीडियो कॉल के माध्यम से बातचीत करें, ऐसा करने से उन्हें भी अच्छा महसूस होगा।

इन तमाम चीजों के साथ-साथ अपने भोजन के प्रकार व समय पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स आदि से पूर्ण भोजन ग्रहण करना चाहिए। हरी साग-सब्जी, फल, दूध, दही, आँवला, नीम्बू जैसे हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए। शुद्ध, हल्का व ताज़ा खाना खाने से आप स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ महसूस करेंगे।

इसीलिए ख़ुश और सुरक्षित रहिये। अपने घर बैठकर परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत कीजिए, जिसका हमें हमेशा इंतज़ार रहता था।

हम सब साथ हैं!