पंजाब के कुछ हिस्सों में पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की रोक, कहा- 'सत्ता का दुरुपयोग'
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंचायत चुनावों में नामांकन पत्र दाखिल करने के चरण में राज्य मशीनरी के कथित सत्ता के घोर दुरुपयोग के लिए पंजाब सरकार की आलोचना की। इसने गुरुवार को याचिका में शामिल गांवों के संबंध में आगे की चुनाव कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी है। चुनाव 15 अक्टूबर को होने थे। यानी अब अदालत के अगले आदेश तक चुनावी प्रक्रिया रुकी रहेगी।
अदालत का यह फ़ैसला तब आया है जब पंजाब में पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में उम्मीदवारों के नामांकन खारिज किए जाने के मामले ने तूल पकड़ा है। अदालत 250 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। नामांकन खारिज होने की वजह से कई उम्मीदवारों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया जा रहा है। अदालत ने इसी बात पर आपत्ति जताई है। इसने कहा कि मतदान की तिथि पर जाए बिना कुछ उम्मीदवारों को निर्विरोध घोषित करने से मतदाताओं का अधिकार ख़त्म हो जाता है।
कोर्ट ने कहा कि जिन उम्मीदवारों के नामांकन खारिज किए गए थे, उनके द्वारा दी गई जानकारी पर कथित संदेह के बारे में न तो सुनवाई का कोई अवसर दिया गया और न ही कोई जांच की गई। इसने कहा, '... किसी भी लिपिकीय त्रुटि यानी छोटी-मोटी विसंगतियों को सुधारने का कोई अवसर नहीं दिया गया, जो पंजाब पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 38 और 39 के तहत अयोग्यता का आधार भी नहीं हैं।'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संदीप मौदगिल और जस्टिस दीपक गुप्ता की अवकाश पीठ ने कहा कि चुनाव शुरू होने से पहले ही अन्य उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों को मनमाने ढंग से खारिज करके उम्मीदवारों को 'निर्विरोध' विजेता घोषित कर दिया गया। कुछ मामलों में राज्य में सत्ताधारी पार्टी के अधिकारियों ने नामांकन पत्र फाड़ दिए और दावा किया कि पत्र खो गए हैं। कुछ अन्य मामलों में नामांकन पत्र बिना किसी कारण या झूठे कारणों से खारिज कर दिए गए।
अदालत ने पेश की गई तस्वीरों से पाया कि इस तरह की कार्रवाइयों के बाद घोषित किए गए अधिकांश 'विजेता' सीएम भगवंत सिंह मान या आप विधायकों के साथ जश्न मनाते देखे गए। इसने माना कि किसी भी उम्मीदवार को निर्विरोध विजेता घोषित नहीं किया जा सकता है क्योंकि मतदाताओं के पास 'नोटा' का विकल्प होता है।
कोर्ट ने कहा, 'यह असंवैधानिक है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जैसा कि इस न्यायालय द्वारा प्रथम दृष्टया माना जा सकता है, विशेष रूप से इस तथ्य के संदर्भ में कि मतदाताओं को मतदान का अवसर दिया जाना चाहिए, जिसमें वे या तो प्रतियोगिता में छूटे हुए उम्मीदवार को या नोटा को वोट देने का विकल्प चुन सकते हैं... हालाँकि, वोट देने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है, न ही संवैधानिक अधिकार है, बल्कि एक वैधानिक अधिकार है, जिसे नोटा के पक्ष में भी नहीं छीना जा सकता है।' कोर्ट ने आगे कहा, 'हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है, जिसमें स्वतंत्र इच्छा से चुनाव करने का अधिकार है और इस तरह के चुनाव को केवल वोट देने के इस वैधानिक अधिकार का उपयोग करके ही व्यक्त किया जा सकता है। पंजाब सरकार की कार्रवाई ने न केवल मतदाताओं और निर्वाचकों के ऐसे अधिकार पर प्रतिबंध लगाया है, बल्कि यह हमारे संविधान के मूल ढांचे यानी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को नष्ट करने का भी प्रयास है, जो अनिवार्य रूप से इसके दायरे में एक मतदाता को दबाव या जबरदस्ती के डर के बिना इसका उपयोग करने का अधिकार देता है।'
हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप का यह मतलब नहीं होगा कि वह 'चुनाव पर सवाल उठा रहा है'।
अदालत ने कहा कि स्थानीय स्तर पर चुनाव लोकतांत्रिक ढांचे में और इसे एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के रूप में सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
अगली तारीख तक याचिका में चुनौती दी गई जगहों के चुनावों पर रोक लगाते हुए कोर्ट ने कहा, 'प्रतिनिधि लोकतंत्र की वैधता और विश्वास को बनाए रखना ज़रूरी है, जिसके लिए अंतरिम आदेश जारी करने की ज़रूरत है...। इस प्रकार अगली सुनवाई तक रोक लगाई जाती है।' मामला आगे के विचार के लिए 16 अक्टूबर को सूचीबद्ध किया गया है।