'केजरीवाल आवास हमला' दिल्ली पुलिस की विफलता: हाई कोर्ट
दिल्ली पुलिस की फिर से किरकिरी हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास पर हमला मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के सुरक्षा इंतज़ाम पर सवाल उठाए हैं। इसने कहा है कि यह साफ़ है कि दिल्ली पुलिस की विफलता थी। पुलिस से यह बताने के लिए कहते हुए कि प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स कैसे तोड़े, अदालत ने कहा, 'अगर लोग तीन बैरिकेड्स तोड़ सकते हैं, तो आपको अपनी दक्षता, अपने कामकाज को गंभीरता से देखने की ज़रूरत है'।
हाई कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई है जब कुछ हफ़्ते पहले 30 मार्च को बीजेपी युवा मोर्चा के क़रीब 200 प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर पुलिस बैरिकेड्स तोड़ दिए और मुख्य द्वार पर भी हमला किया था। कार्यकर्ताओं ने गेट पर रंग भी फेंक दिया और एक सीसीटीवी कैमरे को भी तोड़ दिया था।
अदालत आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हमले की स्वतंत्र जांच के लिए एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल यानी एसआईटी के गठन की मांग की गई थी। अदालत ने 31 मार्च को दिल्ली पुलिस को अपने द्वारा की गई जांच पर दो सप्ताह के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। अदालत ने सुनवाई से पहले पुलिस द्वारा दायर एक सीलबंद स्टेटस रिपोर्ट का अध्ययन किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल के आवास के बाहर की गई सुरक्षा व्यवस्था के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर रिपोर्ट पर असंतोष व्यक्त किया। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार खंडपीठ ने कहा, 'एक संवैधानिक पदाधिकारी के आवास पर इस तरह की घटना बहुत परेशान करने वाली स्थिति है। आपके पास किस तरह का बंदोबस्त था? आपको अपने कामकाज पर गौर करने की ज़रूरत है। यह कोई भी, कोई मंत्री, न्यायाधीश हो सकता है।'
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इसने दिल्ली पुलिस के आयुक्त को उस चूक पर गौर करने और जांच करने का निर्देश दिया है, 'सबसे पहले, क्या बंदोबस्त पर्याप्त था; दूसरे, व्यवस्थाओं के विफल होने के कारण बताएँ; और तीसरा, स्वीकृत चूक के लिए जिम्मेदारी तय करें।'
अदालत ने पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट पढ़ने के बाद कहा, 'एक बार सुरक्षा में चूक होने के बाद इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं।'
अदालत ने कहा, 'हम निश्चित रूप से बंदोबस्त के संबंध में आपकी रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं। आपने केवल अपनी असफलताओं को स्वीकार किया है कि बिंदु ए, बिंदु बी और फिर बिंदु सी पर एक उल्लंघन हुआ था। पुलिस को ऐसा कहते हुए कैसे सुना जा सकता है।'
आज अपने आदेश में अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस आयुक्त को जाँच करनी चाहिए कि क्या सुरक्षा इंतज़ाम पर्याप्त थे और उनके विफल होने के कारणों की जाँच की जाए। इसने मामले को 17 मई को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
बता दें कि आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर सुरक्षा घेरा बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार पुलिस अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की मांग की है। याचिका में केजरीवाल के आवास के बाहर उचित सुरक्षा के लिए निर्देश देने की मांग के अलावा, इसके बाहर सड़क को सुरक्षित करने के लिए पहले के अदालती आदेश के अनुपालन के लिए भी प्रार्थना की गई है।
यह तर्क रखते हुए कि हिंसा केजरीवाल और उनके परिवार की ओर निर्देशित थी, भारद्वाज ने तर्क दिया कि हिंसा का उद्देश्य बल के उपयोग से राष्ट्रीय राजधानी के सर्वोच्च निर्वाचित अधिकारी को वश में करना था और इस तरह राष्ट्रीय राजधानी की निर्वाचित सरकार को भी वश में करने का प्रयास था। उन्होंने कहा था, 'यह लोकतंत्र पर सीधा हमला था'।
दिल्ली पुलिस पर पूरी तरह से अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए भारद्वाज ने आरोप लगाया कि 'ऐसा लगता है कि पुलिस गुंडों के साथ मिली हुई थी क्योंकि गुंडे केंद्र सरकार में सत्ताधारी दल के सदस्य हैं' जो पुलिस को नियंत्रित करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व में भी उपमुख्यमंत्री के आवास पर हमला हुआ था और फिर भी पुलिस ने हमलावरों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया था।