हाथरस: पीएफ़आई से जुड़े होने के आरोपियों को केस डायरी क्यों नहीं दे रही पुलिस?
अपने दामाद अतीक़ुर्रहमान के बारे में बात करते हुए छतारी (बुलंदशहर) के रहने वाले सख़ावत ख़ान बताते हैं कि "अतीक़ ‘नेशनल कनफ़ेडरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स’ से जुड़ा हुआ है। वह मानवाधिकार की बातें करता है।'’ 'सत्य हिंदी' से बात करते हुए अतीक़ की पत्नी संजीदा कहती हैं, “मेरे पति मेरठ यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं। वह हृदय रोगी हैं। गुरुवार (1 अक्टूबर) को वह रूटीन चेक अप के लिए 'एम्स' गए थे। फिर वह दोस्तों के साथ ही दिल्ली में रुके रहे या मेरठ आ गए, पता नहीं। सोमवार को मांट पुलिस का हमारे यहाँ मुज़फ़्फ़रनगर में फ़ोन गया तो हमें उनकी गिरफ्तारी की जानकारी हुई।" संजीदा का विवाह 12 साल पहले हुआ था। उनके 2 बेटे हैं।
अतीक़ुर्रहमान अपने 3 अन्य साथियों के साथ देशद्रोहिता के आरोप में मथुरा जेल में बंद हैं। हाथरस काण्ड के दौरान हाथरस जाते समय मांट पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार किया था। पुलिस ने उन पर 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया' से सम्बद्ध होने का आरोप तो लगाया ही है साथ में षड्यंत्र, देशद्रोह सहित दूसरे कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं। उनके अधिवक्ता मथुरा के मधुसूदन दत्त चतुर्वेदी बताते हैं कि कोविड-19 की जाँच के चलते उनके चारों अभियुक्तों को अभी अस्थाई जेल में रखा गया है लिहाज़ा उनसे मिलने नहीं दिया गया है। वह जाँच रिपोर्ट आने का इंतज़ार कर रहे हैं। उनकी यह भी शिकायत है कि तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें 'केस डायरी’ नहीं देखने दी जा रही है जिसके वह हक़दार हैं। उन्हें उम्मीद है कि सोमवार को जब वह बेल दाखिल करेंगे तब उन्हें 'डायरी' देखने को मिल सके।
मुख्य घटनाक्रम
5 अक्टूबर की शाम 'यमुना एक्सप्रेसवे' की मांट (मथुरा) पुलिस चौकी पर पुलिस हाथरस जाने वाले वाहनों की जाँच कर रही थी। उसने दिल्ली से आने वाली कैब 'स्विफ्ट डिज़ायर' (डीएलसी 1203) को रोका। 'कैब' में ड्राइवर के अलावा 3 और लोग भी थे। मांट पुलिस उन्हें रोक कर उनके गंतव्य के बारे में पूछताछ करती है। वे बताते हैं कि वे लोग हाथरस जा रहे हैं। पुलिस उन्हें वहाँ जाने से रोक देती है। उनमें से एक जो मलयाली मूल का है, स्वयं को पत्रकार बताता है, वहाँ जाने से रोकने पर बहस करता है। पुलिस उन्हें गाड़ी से नीचे उतार लेती है।
थाना मांट में किये गए चालान में दर्ज़ है कि "उपरोक्त लोग [अतीक़ुर्रहमान, आलम (निवासी ज़िला रामपुर ), सिद्दीक़ (नि. ज़िला मालापुआराम-केरल) और मसूद (नि. ज़िला बहराइच)] कहने लगे कि हम मृतका मनीषा बहन को न्याय दिलाने उनके घर हाथरस जा रहे हैं और बहन मनीषा को न्याय दिलाकर ही वापस लौटेंगे। इस बात को लेकर हम पुलिस वालों ने उन्हें काफ़ी समझाया-बुझाया नहीं माने बल्कि उत्तेजित हो कर कहने लगे कि चाहे हमें हाथरस जाकर मरना या मारना ही पड़े हम नहीं मानेंगे। इनके तेवर देखकर यह प्रतीत हो रहा था कि ये लोग आवश्यक रूप से हाथरस में शांति व्यवस्था भंग करेंगे...।” (मांट पुलिस ने इस शिकायत को आधार बनाकर उन चारों का सीआरपीसी की धारा 151, 153 107 116 के अंतर्गत चालान करके गिरफ्तार किया। गिरफ़्तारी प्रपत्र में समय- 4 बजकर 50 मिनट दर्ज़ है। एडवोकेट चतुर्वेदी के अनुसार "आलम तो कैब का ड्राइवर है जो यूँ ही फँस गया है। दो दिन पहले उसके घरवालों ने मुझसे संपर्क किया और उसका 'स्टेटस' बताया।"
थाने की जीडी (सामान्य दैनिकी विवरण) को पढ़ पाना और उनके भाव को समझ पाना एक अत्यंत जटिल प्रक्रिया है। जिस ऊटपटांग और टूटे-फूटे तरीक़े से ये हिंदी या अंग्रेज़ी में लिखी जाती हैं, देश के सामान्य नागरिक के भीतर आतंक का भाव पैदा कर देती हैं। थाने की इस लिखा-पढ़ी को किसी साहित्यिक भाषा की दरकार नहीं, इन्स्पेक्टर रैंक का अधिकारी यदि आम आदमी की साधारण बोल चाल की भाषा की अभिव्यक्ति से भी अपरिचित है तो उसके सुख-दुःख को कैसे समझेगा इतना ही नहीं, यह उसके अल्पतम अंग्रेजी भाषा के ज्ञान की भी कलई खोल कर रख देता है।
एसएचओ, जिसके हस्ताक्षरों से ये जारी होती हैं, उसकी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता स्नातक डिग्री है। उसकी लिखी जीडी या एफ़आईआर सम्बद्ध शिकायतकर्ता या अभियुक्त को अपना भावार्थ ही समझने में असमर्थ हो तो न्यायिक अभिव्यक्ति के धड़ाम से लुढ़क पड़ने से कौन रोक सकता है
मिसाल के तौर पर जीडी में लिखित तथ्यों के अनुसार- आरोपियों से प्राप्त अंग्रेजी पेम्फलेट का विवरण- जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम (हाथरस पीड़ित के लिए न्याय-अनुवाद : 'सत्य हिंदी' द्वारा) के साथ-साथ लड़की के घायल होने से लेकर सफदरजंग में दाखिल होकर मृत्यु हो जाने, पुलिस द्वारा घरवालों को घर में बंद करके पीड़ित को देर रात जला दिए जाने तक का 3-4 लाइनों में अंग्रेज़ी में वृतांत है। इसी तरह बिना किसी कॉमा- फुल स्टॉप के टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में लिखा है- “हाथरस रेप पीड़िता 2020 के लिए लिंक हाथरस गैंग रेप पीड़िता के लिए न्याय हाथरस गैंग रेप पीड़िता के लिए न्याय प्रधानमंत्री ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की शुरुआत की पीड़िता के परिवार के लिए फंड एकत्र पेज नम्बर टू ईमेल (उल्लेख नहीं है लेकिन यहाँ आशय शायद उस लेप टॉप के विवरण से है जो आरोपियों के पास से बरामद दिखाया गया है) तुम ख़ुद को शिक्षित करने के लिए पेश हो सकते हो विरोध प्रदर्शनों की सूची पेज नम्बर 3 कोलकाता फौजी अभियान पेज नंम्बर 4 अहमदाबाद सूरत पेज नम्बर 5 सूरत चेन्नई में विरोध प्रदर्शन पेज नम्बर 6 क्या मैं भारत की बेटी नहीं हूँ आम विरोध प्रदर्शन मदद करते हैं भारत बचे हुओं के स्रोत पेज नम्बर 7 आम विरोध प्रदर्शन नियम आंसू गैस अपने फोन को बचाओ”।
सहायक घटनाक्रम
इस तरह की भाषा में थाने का रोज़नामचा लिख कर अगले दिन यानी 6 अक्टूबर को उन्हें एसडीएम मांट के समक्ष पेश करके जेल भेज दिया गया।
मुख्य घटनाक्रम
इसी दिन उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफ़िडेविट दायर करके कहा कि उसकी पुलिस ने आवश्यकता के अनुरूप तत्काल अपराध पंजीकृत किया। विशेष परिस्थितियों और ज़िले में व्यापक हिंसा की आशंका के होने के चलते उसे पीड़ित का अंतिम संस्कार, परिजनों की उपस्थिति में बीच रात में करना पड़ा। इन आशंकाओं में स्थानीय जातीय उन्माद के साथ-साथ अगले दिन बाबरी मसजिद के ढहाए जाने के आरोप में चलने वाले मुक़दमे के अंतिम फ़ैसले से उपजने वाला संभावित तनाव भी शामिल है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना को स्तब्ध करने वाली और असाधारण बताया और राज्य सरकार को अगले सप्ताह सारी तैयारियों और जानकारियों के साथ पेश होने का आदेश दिया।
सहायक घटनाक्रम
इसी दिन यूपी सरकार की ओर से प्रदेश के 7 ज़िलों में 21 एफ़आईआर दर्ज हुईं। इन एफ़आईआर में कहा गया है कि कुछ राजनीतिक समूह और दूसरे संगठन जातीय हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने कहा कि राज्य सरकार ने एक वेबसाइट द्वारा प्रदेश में जातीय उन्माद भड़काने के षड्यंत्र की जाँच के आदेश दिए हैं। संवाददाताओं से उन्होंने कहा कि अभियुक्तों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय द्वारा की जाने वाली इस जाँच का फोकस 'जस्टिस फॉर हाथरस विक्टम डॉट कार्ड डॉट को’ वेबसाइट के पीछे काम करने वाले व्यक्ति और समूह होंगे जिनके पास पिछले सप्ताह पूरे भारत में फैले विरोध-प्रदर्शनों की तारीख़, समय और लोकेशन की जानकारी के साथ-साथ गिरफ़्तारी से बच कर प्रदर्शनों और हैशटैग को आयोजित करने की योजना थी।
सहायक घटनाक्रम
इसी दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विरोधी दलों और ‘राष्ट्र विरोधी’ तत्वों पर विदेशी फंड की सहायता से राज्य को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाया है।
वापस मांट में दर्ज़ मुक़दमे पर लौटते हैं। 'सत्य हिंदी' ने पुलिस के एक रिटायर्ड डीजी और अपराध मामलों के एक नामचीन अधिवक्ता के साथ पूरे प्रकरण पर विस्तार से चर्चा की। शांति भंग केस का चालान, उसकी जीडी और 2 दिन बाद दायर एफ़आईआर का अध्ययन करने के बाद दोनों ही इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि 'यूएपीए जैसी धाराएँ लगाए जाने से बेशक आरोपियों को निचली अदालतों से राहत मिलने में मुश्किल हो लेकिन जिस अधकचरे तरीक़े से समूचे प्रकरण को रचा गया है, उसके चलते उच्च अदालतों में यह ज़्यादा देर नहीं टिक पायेगा।‘
अपने पक्ष में दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि
“अगर आरोपी इतने ख़तरनाक अपराधी थे और हाथरस में जातीय उन्माद फ़ैलाने जा रहे थे तो क्यों वे बीच रास्ते मांट में पुलिस से उलझते और उसके समक्ष अपना मक़सद और अपनी आइडेंटिटी ज़ाहिर करते अपराध मामलों के विशेषज्ञ वकील की दलील है कि पहले चालान के समय जेल भेजते समय पुलिस जीडी जो विवरण दर्शाती है, वे बड़े सामान्य हैं।”
रिटायर्ड वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है,
“सच्चाई क्या है, पता नहीं लेकिन मान भी लिया जाए कि वे लोग 'पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इण्डिया' के कार्यकर्ता हैं भी तो क्या हुआ जनवरी 2020 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने गृह मंत्रालय के समक्ष 'पीएफ़आई' को प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया था। तब विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था- उत्तर प्रदेश में “सीएए विरोधी आंदोलनों में 'पीएफ़एफ़' का हाथ होने की बात पता चली है। गृह मंत्रालय जल्द इस बारे में फैसला लेगा।” केंद्र ने लेकिन अभी तक प्रतिबंधित कहाँ किया है। लिहाज़ा चाहे वे हाथरस जाएँ या बनारस, धरना-प्रदर्शन करने के उसके सारे लोकतांत्रिक अधिकार महफूज़ है, उन्हें आप षड्यंत्रों की दृषिट से कैसे देखेंगे...”
“...अब रहा सवाल इन धरना प्रदर्शनों में आँसू गैस से ख़ुद की व फ़ोन जैसे अपने उपकरणों की रक्षा करने की बात, यह तो हर नागरिक और प्रदर्शनकारी का अधिकार है और यदि इन तकनीकों को वह अपने संगी साथियों से बताता है तो ऐसा करना कोई षड्यंत्र नहीं हो जाता।”
रिटायर्ड डीजी और अपराध मामलों के विशेषज्ञ-दोनों की दलील है कि न तो पुलिस के पास इन चारों लोगों के आने का कोई पूर्ववर्ती 'इंटेलिजेंस इनपुट' था और न 5 अक्टूबर से लेकर 6 अक्टूबर तक, उनके किसी 'विकराल रूप' का पुलिस को कोई भान था, अन्यथा वे उन्हें इतनी साधारण 'शांति भंग' की धाराओं में जेल न भेजती। आज तक उनमें से किसी के विरुद्ध किसी प्रदेश में किसी आपराधिक कार्रवाई की सूचना नहीं है। सच्चाई यह है कि जब लखनऊ में चिल पौं मचाने की 'फुल एंड फाइनल' रणनीति ज़िलों के लिए तैयार हो गयी तो तीसरे दिन, यानी 7 अक्टूबर को नई और भारी भरकम एफ़आईआर का आगाज़ हुआ।
‘जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम’ जैसी 'ख़तरनाक' वेबसाइट बनाना क्या क़ानूनन अपराध नहीं है’ पूछने पर वरिष्ठ वक़ील का जवाब था,
“तमाम राजनीतिक दल, मीडिया और सारा देश आज हाथरस पीड़ित के लिए न्याय की माँग कर रहे हैं। लड़की के साथ जैसी क्रूरता और अमानवीयता हुई है, मृत्यु के बाद भी पेट्रोल और डीज़ल छिड़क कर पुलिस ने जिस अमानवीय तरह से उसका अंतिम संस्कार किया है, उसकी भर्त्सना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक कर रहे हैं। पीड़ित के साथ हुई इन सारी त्रासदियों के विवरण को लेकर किसी राजनीतिक या सामाजिक समूह का पेम्फलेट छापना या ई मेल से अपने संगठन या समूह में उसका प्रसारण करना यदि अपराध है तब तो सारे टीवी चैनल, अख़बारों और पत्रिकाओं को भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए। इस तरह के तर्क ऊपरी अदालतों में पल भर के लिए भी नहीं टिकेंगे।”
वक़ील साहब मुस्कराते हुए बोलते हैं-
“कलकत्ता, सूरत, अहमदाबाद, कोलकाता में होने वाले प्रदर्शनों का आर्काइव बनाना कहाँ से गैर क़ानूनी हो गया। इनका उल्लेख तो सभी चैनलों और अख़बारों में है। लोकतंत्र में क्या सामाजिक या राजनीतिक संगठनों को इस तरह के विवरण रखने की इजाज़त नहीं है, यह सिर्फ़ यूपी पुलिस ही क्लेम कर सकती है, कोर्ट तो इसे बेतुका ही मानेगा।"
'फंड रेज़िंग' की बाबत पूछने पर पुलिस के रिटायर्ड डीजी कहते हैं-
“ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने अभी बीते शुक्रवार को ही हाथरस में हिंसा के मक़सद से विदेश से 100 करोड़ रुपये मिलने की बात का खंडन करते हुए कहा है कि ऐसी कोई राशि कहीं से बरामद नहीं हुई है।”
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता की टिप्पणी थी,
“अच्छा अगर ईडी का खंडन नहीं भी जारी होता तो ज़रा सोचिये, पीड़िता के परिवार को मुआवज़े के रूप में 25 लाख रुपये, एक घर और परिजन को एक सरकारी नौकरी का वायदा किये हुए मुख्यमंत्री को भले ही 10 दिन बीत गए हों लेकिन सच्चाई यह है कि पीड़िता के लिए वित्तीय सहायता की माँग सारे देश से उठ रही है। कोई संगठन अगर पीड़िता के परिवार के लिए यदि 'फंड' जुटाने की अपील या कोशिश अपने समूह में करता है तो क़ानून की निगाहों में यह निःसंदेह कोई अपराध नहीं करता। थाने की जीडी के मुताबिक़ उन सभी आरोपियों के पास से कुल जमा 4650 रुपये बरामद हुए हैं। फ़िलहाल पुलिस उपलब्ध साक्ष्य से विदेशों से प्राप्त 100 करोड़ या 50 लाख रुपये की मदद का कोई बैंक अकाउंट विवरण नहीं दे पाई है। आगे कितना सॉलिड एविडेंस लाती देखा जाता। ज्यूडीशियल कस्टडी में अभियुक्तों से क़बूल करवाकर लिए गए किसी बयान का कोर्ट में कोई वजूद नहीं। बहरहाल, केंद्र सरकार की 'ईडी' ने ही यूपी गवर्मेंट की हवा निकल दी।”