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उपचुनाव के नतीजे से आहत क्या हरियाणा में रणनीति बदलेगी बीजेपी?

उपचुनाव के नतीजे से आहत क्या हरियाणा में रणनीति बदलेगी बीजेपी?

सात राज्यों में 13 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों में बीजेपी को झटका लगा है तो क्या जल्द ही हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी है? जानें हरियाणा में क्या हालात हैं।

सात राज्यों में 13 विधानसभा सीटों में से इंडिया गठबंधन को 10 और एनडीए को 2 सीटें मिलीं तो क्या हरियाणा के विधानसभा चुनाव एनडीए की गठबंधन सरकार के लिए लोकसभा चुनाव के बाद एक बड़ी राजनीतिक परीक्षा नहीं होगी? लगभग 10 साल की सत्ता पर हरियाणा के मतदाता अपना फैसला देंगे। लोकसभा चुनाव में कुछ झलक मतदाता की मनोदशा की ज़रूर मिली है। लेकिन पूरा फैसला अब विधानसभा चुनाव में आएगा क्योंकि मतदाताओं के लिए प्रदेश के स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण होंगे। प्रदेश में सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां भी प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करेंगी।

10 साल की भाजपा के कार्यकाल से आमजन कितना संतुष्ट है या नाराजगी कहीं सतह के नीचे गंभीर है, इस सवाल को लेकर भारतीय जनता पार्टी अपनी चुनावी रणनीति मजबूत करने में लगी है। अब तुलना मतदाताओं में ये भी होने लगी है कि भाजपा जिन मुद्दों पर पूर्व की कांग्रेस सरकार को घेरती रही, अब डबल इंजन की सरकार उनके कितने स्थाई समाधान अपने कार्यकाल में कर पायी। पिछले विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा को प्रदेश में पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया था और जजपा से समर्थन के बाद ही अपनी सरकार प्रदेश में बना पाई थी। विपक्ष अब भाजपा को मुद्दों पर घेरने में जोरशोर से जुट गया है। 

हरियाणा में विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही केंद्रित रहेगा। सरकार की ओर से डिलीवर क्या हुआ, इसको प्रदेश का मतदाता अपनी कसौटी पर नाप रहा है। प्रदेश में कई बड़े मुद्दे हैं जिन पर वर्तमान सरकार कोई ठोस समाधान करने में असफल ही रही है।  सबसे बड़ा मुदा है बेरोजगारी, जो दिनोंदिन विकराल होता जा रहा है।  देश में सबसे अधिक बेरोजगारी लगभग 42% प्रदेश में है। लम्बे इंतजार के बाद अब बेरोजगार युवाओं का धैर्य भी जवाब देने लगा है।  2 लाख नियमित पद सरकारी नौकरियों में खाली पड़े हैं। लघु और मध्यम उद्योग संकट से गुजर रहे हैं। विदेशी निवेश के बड़े बड़े दावों के बावजूद कई बड़े उद्योग व परियोजनाएँ प्रदेश में स्थापित नहीं हुए जो रोजगार की समस्या को कोई राहत दे पाते। 2014 में भाजपा की सरकार ने गुरुग्राम में एक बड़ा आयोजन विदेशी व्यापारिक संस्थानों के लिए किया था जिसमें कहा गया था कि 2 लाख करोड़ के एमओयू किये गए हैं जिससे प्रदेश के युवाओं को नौकरियों के अवसर मिलेंगे लेकिन धरातल पर उसके कोई परिणाम देखने को नहीं मिलते। इसके विपरीत प्रदेश के युवाओं को रोजगार के लिए विदेशों की सेनाओं में भर्ती होने की विवशता हो गयी है। हरियाणा कौशल विकास निगम के द्वारा भी सरकार कोई खास समाधान युवाओं के लिए नौकरी के अवसर बढ़ाने में दे नहीं पायी। 

डबल इंजन की मार से किसान वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुआ जिसमें सबसे पहले स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार फसलों के मूल्य तय करने और पूरी फसल को खरीदने का कोई मजबूत प्रावधान हुआ नहीं। इसके विपरीत तीन कृषि कानूनों के कारण एक बड़े आंदोलन में किसान लगे रहे। अभी तक भी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर किसान आंदोलनरत हैं। फसल बीमा योजना में मुआवजे में देरी, प्राकृतिक आपदाओं के समुचित मुआवजे समय पर नहीं मिलना, बीज खाद के दामों, चुनिंदा कृषि यंत्रों का जीएसटी के दायरे में आना, डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी के कारणों से कृषि उत्पादन की लागत के बढ़ने से किसानों की आय में कमी से पूरा किसान वर्ग असंतुष्ट है। कर्ज माफ़ी के मुद्दे पर कोई गंभीर पहल नहीं हुई जबकि बड़े औद्योगिक संस्थानों के कर्ज को माफ़ करने में सरकार ने खुले दिल का परिचय दिया है। कृषि निर्भर प्रदेश में किसानों की स्थितियों को बदलने के लिए कोई नीतिगत सकारात्मक परिवर्तन हुए नहीं। ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ के तहत डिजिटल पोर्टल के चक्रव्यूह में किसान उलझ कर रह गए। किसानों की समस्याओं को सुनने की बजाय दमनकारी नीति से किसानों से निपटे जाने का मुद्दा प्रदेश के चुनावों को गहरे से प्रभवित करने वाला है।

बेहिसाब महंगाई की मार से प्रदेश की जनता त्रस्त है। डीजल पर वैट को 8.9% बढ़ा कर 17.6% कर दिया गया जिससे यातायात महंगा हुआ तथा किसानों को भी गहरी चोट महंगाई की पड़ी। गैस के सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी से समान्य नागरिकों की रोजमर्रा की ज़िन्दगी दूभर हो रही है। लोग बोलने लगे हैं कि अन्य प्रदेशों में चुनावों में जब सस्ते गैस सिलेंडर देने के वायदे किये जा सकते हैं तो एक नीतिगत फैसला लोगों के हित के लिए प्रदेश में क्यों नहीं लिया जा रहा।

राज्य की प्रशासनिक पद्धति पर भी आम जनता का असंतोष कम नहीं है। कार्यपालिका से लेकर कर्मचारी, पुलिस प्रशासन, पंचायती राज में अधिकारों पर अंकुश कई ऐसे कारक हैं जिनसे लोगों में नाराजगी है।

 

भ्रष्टाचार पर बड़े-बड़े दावे करने वाली भाजपा का कार्यकाल घोटालों से भी अछूता नहीं रहा। कथित फरीदाबाद नगर निगम घोटाला, कोरोना काल में शराब घोटाला, रजिस्ट्री घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला गांव में बनने वाले अमृत सरोवर घोटाला, बार बार प्रतियोगी परीक्षाओं की में हुई विसंगतियां भी प्रदेश की जनता पूरी तरह से जान समझ गयी है। 

पिछड़ा वर्ग सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग को भेदभाव का दंश  झेलना पड़ा है। क़रीब 5000 स्कूलों के बंद होने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बचे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो रहे हैं। क्रीमी लेयर को 8 लाख से घटाकर 6 लाख करना, पेंशन के वायदे को पूरा न करना, परिवार पहचान पत्र की उलझनें भी जनता में नाराजगी के बड़े कारण हैं। महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा में  महिला पहलवान खिलाड़ियों के साथ प्रदर्शन में किये गए बलप्रयोग व कार्रवाई से वर्तमान भाजपा सरकार के प्रति पूरे समाज में भारी आक्रोश व्याप्त है। उच्च शिक्षा पर नए संसथान बनाने की कोई पहल हुई नहीं। 58% पद प्रदेश के कॉलेजों में खली पड़े हैं। 

मुद्दों की फेहरिस्त काफी विस्तृत है, लेकिन मुख्य रूप से बड़े मुद्दे ही सीधे तौर पर चुनावों को प्रभावित करेंगे। भाजपा अब ऐसे हालात से कैसे निपटेगी, यह देखने वाली बात होगी।

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