हरियाणा में सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी में आपसी गुटबाज़ी चरम पर है। राज्य की विधानसभा में जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थक विधायकों का दबदबा है, वहीं कांग्रेसियों के बीच में भी हुड्डा ख़ासे लोकप्रिय हैं। राज्य की विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी हैं, तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर अशोक तंवर हैं। दोनों ही नेताओं का ज़मीनी स्तर पर कोई ख़ास जनाधार नहीं है। इसके विपरीत हुड्डा का विधानसभा के अंदर व बाहर अच्छा जनाधार माना जाता है। लेकिन आलाकमान ने उन्हें लगातार हाशिये पर रखा है।
यही वजह है कि लोकसभा चुनावों में मिली क़रारी हार के बाद अब हुड्डा आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं। उन्होंने नौ जून को दिल्ली में पार्टी में अपने क़रीबी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है। बैठक में हुड्डा समर्थक विधायकों के भी शामिल होने की संभावना जताई जा रही है।
हुड्डा लोकसभा चुनाव में हार से आहत हैं और अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं और इसकी रणनीति तैयार करने के लिए उन्होंने बैठक बुलाई है। बैठक में हरियाणा कांग्रेस की कमान अपने हाथ में लेने पर चर्चा होगी और इस पर आर-पार का फ़ैसला हो सकता है।
बैठक के बहाने एक बार फिर से आलाकमान पर इसके लिए दबाव बनाया जाएगा कि जब अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव में पुराने चेहरों पर भरोसा कर कांग्रेस चुनाव जीत सकती है तो हरियाणा में क्यों नहीं।बैठक को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि हुड्डा के बेटे और पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने नौ जून को रोहतक लोकसभा सीट के कार्यकर्ताओं की दिल्ली में बैठक बुलाई थी। इस बैठक में रोहतक में हुई हार के कारणों की समीक्षा होनी थी। लेकिन अब यह बैठक 16 जून को रोहतक में ही होगी। बताया जा रहा है कि अगर कांग्रेस आलाकमान हुड्डा की बात नहीं मानता है तो हुड्डा समर्थक कांग्रेसी बग़ावत का ऐलान कर देंगे।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का कारण मोदी लहर और राष्ट्रवाद का प्रचार करने में सफल रही भारतीय जनता पार्टी है, लेकिन विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होगा। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अलग मुद्दे होंगे, उन्होंने साफ़ तौर पर चुनावों से पहले पार्टी की कमान उन्हें देने की बात कही है।
हरियाणा में अशोक तंवर और हुड्डा ख़ेमे की आपसी खींचतान आम है। हुड्डा और उनके समर्थक विधायक पिछले काफ़ी समय से आलाकमान पर यह दबाव बना रहे हैं कि हरियाणा की कमान उनके नेता के हाथ में हो, लेकिन आलाकमान के सामने किसी की नहीं चल रही है। अब नौ जून को होने वाली बैठक में क्या फ़ैसला होगा, इस पर सबकी नज़र होगी।
पिछले दिनों लोकसभा चुनाव में हरियाणा में हुई कांग्रेस की हार की समीक्षा और पार्टी मंथन के लिए हरियाणा प्रभारी ग़ुलाम नबी आजाद ने दिल्ली में बैठक बुलाई थी। इस बैठक में भी कांग्रेस में बग़ावती सुर और गुटबाज़ी देखने को मिली थी।
बैठक के दौरान विधायक रघुवीर कादियान ने खुलकर हुड्डा परिवार को पार्टी की कमान सौंपने की वकालत करते की थी। कादियान ने कहा था कि अगर ऐसा नहीं होता है, तो लोकसभा चुनावों की तरह ही नतीजे आते रहेंगे। करनाल सीट से उम्मीदवार रहे कुलदीप शर्मा ने भी अशोक तंवर का विरोध किया था। विधायक गीता भुक्कल ने किरण चौधरी पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि वह विधायकों की राय नहीं लेतीं।
विधायकों की बातें सुनने के बाद प्रभारी ग़ुलाम नबी आज़ाद को आख़िर में यह कहना पड़ा कि सितंबर में जो ज़िंदा रहेगा, अब उसी से बात करेंगे। दरअसल, हरियाणा के प्रभारी समेत बाक़ी सभी महासचिवों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपनी रिपोर्ट किसको सौंपे क्योंकि राहुल गाँधी कह चुके हैं कि वह अब पार्टी के अध्यक्ष नहीं रहना चाहते। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में मिली क़रारी हार के बाद कांग्रेस अगर विधानसभा चुनाव के लिए ख़ुद को एकजुट नहीं करती है तो उसकी स्थिति काफ़ी कमजोर हो जाएगी।