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हरियाणाः क्या अभय इनैलो को और दुष्यंत चौटाला जेजेपी को जिन्दा कर पाएंगे

हरियाणाः क्या अभय इनैलो को और दुष्यंत चौटाला जेजेपी को जिन्दा कर पाएंगे

हरियाणा में राजनीतिक दलों की गतिविधियां तेज हो रही हैं। इनैलो के अभय चौटाला और जेजेपी के दुष्यंत चौटाला अपनी-अपनी पार्टियों में दमखम भरने में लगे हुए हैं लेकिन दोनों पार्टियों के पिछले इतिहास को देखते हुए किसी चमत्कार की उम्मीद कम लग रही है। क्योंकि दोनों की पहचान चौधरी देवीलाल से है लेकिन आपस में ताकत बंटने से दोनों ही दल किसी महत्व के नहीं रहे। जानिए इन दोनों दलों के राजनीतिक हालातः

हरियाणा की राजनीति में किसी समय चौधरी देवीलाल और उनके परिवार की तूती बोलती थी। लेकिन भ्रष्टाचार, आपसी कलह, भाईभतीजावाद ने परिवार को राजनीति के दो छोर पर धकेल दिया। देवीलाल के पोतों यानी ओम प्रकाश चौटाला के बेटों अजय और अभय की महत्वाकांक्षाओं ने देवीलाल की इनैलो को कमजोर दर दिया। अजय चौटाला ने अलग होकर जननायक जनता पार्टी बनाई और उसकी कमान अपने बेटे दुष्यंत चौटाला को सौंप दी। अभय चौटाला अपने पिता के साथ रहे और इनैलो का परचम पकड़े रहे लेकिन राजनीतिक रूप से बहुत कमजोर साबित हुए। 

हरियाणा में 2019 विधानसभा चुनाव के बाद जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) नेता दुष्यंत चौटाला किंगमेकर बनकर उभरे थे। तब मौजूदा भाजपा ने 90 में से 40 सीटें जीती थीं, और सरकार बनाने के लिए 46 सीटें चाहिए थीं। जेजेपी, जिसने 10 सीटें जीती थीं, ने भाजपा को समर्थन दिया और मनोहर लाल खट्टर सरकार फिर से सत्ता में आ गई। बदले में, दुष्यंत को उपमुख्यमंत्री पद और दो मंत्री पद मिले।

भाजपा और जेजेपी के बीच दोस्ती केवल साढ़े चार साल तक ही चली। इसी साल मार्च में भाजपा ने अचानक जेजेपी से नाता तोड़ लिया। भाजपा नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव से पहले मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया। खट्टर को करनाल से भाजपा सांसद और फिर केंद्र में मंत्री बन गए।

दुष्यंत और उनकी पार्टी अनिश्चित स्थिति में है। तब से, जेजेपी कई मोर्चों पर चुनौतियों से जूझ रही है। दुष्‍यंत के विधायक उनके खिलाफ मुखर रहे हैं, खुलेआम उनकी और उनकी नीतियों की आलोचना कर रहे हैं। जेजेपी के तीन विधायकों ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी है कि वे भाजपा की कार्यप्रणाली, दूरदर्शिता और भविष्य की नीतियों से प्रभावित हैं। इस साल अप्रैल में जेजेपी नेतृत्व को एक और झटका देते हुए, पार्टी की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष निशान सिंह ने भी कांग्रेस में शामिल होने के लिए इस्तीफा दे दिया।

फिर लोकसभा चुनाव आये। जेजेपी ने हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। हालाँकि, उसे बमुश्किल 0.87% वोट ही मिल सके और पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। जेजेपी के नेता अब पूरे हरियाणा का दौरा करके जनता के मूड को भांपने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन दिक्कत यही है कि जेजेपी पूरी तरह खुद दुष्यन्त, उनके पिता और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला, मां नैना चौटाला और छोटे भाई दिग्विजय चौटाला पर निर्भर है। उनके पास दूसरी और तीसरी लाइन के नेता ही नहीं हैं। ऐसे में पार्टी अक्टूबर तक चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो पाएगी, इसमें संदेह है। 

अभय चौटाला की पॉलिटिक्स क्या हैः हरियाणा में कभी इनैलो बुलंदियों पर थी। लेकिन भ्रष्टाचार और पारिवारिक कलह की वजह से पार्टी गर्त में चली गई। इस आंकड़े से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इनैलो की स्थिति इस समय क्या है। आम चुनाव 2024 में हरियाणा में इनेलो का वोट शेयर 1.74 फीसदी था। अभय चौटाला बस इसी बात से संतोष कर सकते हैं कि उनके भाई की पार्टी जेजेपी के मुकाबले यह वोट शेयर ज्यादा है। जेजेपी को 0.87 फीसदी वोट मिले थे। अभय चौटाला की हिम्मत की दाद देनी होगी कि बंदे ने हार नहीं मानी है और अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरने को तैयार हैं।

यही वजह है कि अभय चौटाला अब बहुजन समाज पार्टी से हरियाणा में गठबंधन कर रहे हैं। इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला ने पिछले शनिवार को गठबंधन पर चर्चा के लिए मायावती से उनके नई दिल्ली स्थित आवास पर मुलाकात की। गठबंधन की औपचारिक घोषणा 11 जुलाई को हो सकती है। दोनों पार्टियां पहले भी गठबंधन कर चुकी हैं। आम चुनाव 2024 में बसपा को हरियाणा में 1.28 फीसदी वोट मिला था, जो अभय की पार्टी इनैलो को मिले 1.74 फीसदी से बहरहाल कम है। दोनों ने लोकसभा चुनाव 2024 अलग-अलग लड़ा था। 

अभय को यह प्रयोग यानी बसपा से गठबंधन लोकसभा चुनाव में ही कर लेना चाहिए था। कम से कम एक आंकड़ा तो मिल ही जाता है कि अगर दोनों एक होकर लड़ते हैं तो कितना वोट पा सकते हैं। हरियाणा में बसपा का कोई व्यवस्थित संगठन नहीं है। बसपा को वोट उसके दलित वोट बैंक से मिलता है। बसपा चाहती भी यही है कि दलित वोट कहीं न जाएं, बल्कि उसकी झोली में आएं। 

अभय चौटाला का कहना है कि “विधानसभा चुनाव संसदीय चुनावों से अलग होते हैं। लोकसभा चुनाव में मतदाता उन लोगों के बीच बंटे हुए थे जो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे और जो चाहते थे कि उन्हें हटाया जाए। जो लोग उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे, उन्होंने भाजपा को वोट दिया और जो लोग मोदी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते थे, उन्होंने इंडिया गठबंधन को वोट दिया क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर वही एकमात्र विकल्प था। उनका कहना है कि हरियाणा में इनैलो कुछ अन्य ताकतों के साथ भी चुनावी तालमेल करेगा। लेकिन उन्होंने नाम नहीं बताए। बहरहाल, राजनीतिक रूप से कभी कोई नेता या दल खारिज नहीं होता है लेकिन हरियाणा में अभय चौटाला की इनैलो, दुष्यंत चौटाला की जेजेपी और मायावती की बसपा को कोई चमत्कार ही उनके दम पर खड़ा कर सकता है। चौटाला परिवार अगर एक हो जाए तो शायद वे प्रदेश की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं।

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