कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन कर रहे किसानों को रोकने और उन्हें परेशान के लिए बीजेपी शासित केंद्र और राज्य सरकारें किस हद तक जा सकती हैं, इसका एक और उदाहरण सामने आया है।
हरियाणा पुलिस ने किसानों को दिल्ली सीमा के पास पहुँचने से रोकने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी की अनुमति के बग़ैर ही उसे बीच में ही खोद डाला, गड्ढे बना डाले। यह ग़ैरक़ानूनी है और नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 के तहत अपराध है। यानी हरियाणा पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए अपराध किया है।
आरटीआई
आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने एनएचएआई को एक चिट्ठी लिख कर पूछा कि क्या हरियाणा पुलिस ने एनएच 44 को खोदने के पहले उससे अनुमति ली थी, क्या सड़क खोदने और उस पर गड्ढे बनाने के काम में एनएचएआई के किसी कर्मचारी की भूमिका रही है, यदि उससे अनुमति नहीं ली गई है तो क्या सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने के लिए हरियाणा पुलिस के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज कराया गया है?
एनएचएआई ने जो जवाब दिया, उसमें कहा गया है कि गड्ढा खोदने की अनुमति लेने से जुड़ी जानकारी उसके पास नहीं है, उसका कोई कर्मचारी इसमें शामिल नहीं था। हरियाणा पुलिस के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराने के सवाल पर एनएचएआई का कहना है कि उसके पास कोई जानकारी नहीं है।
यह तो साफ़ है कि हरियाणा पुलिस ने एनएच 44 खोदने के लिए एनएचएआई से अनुमति नहीं ली, इसमें अथॉरिटी की भूमिका नहीं है और पुलिस ने यह काम मनमर्जी से किया।
फ़ेसबुक
इसी तरह रविवार को किसान आन्दोलन में शामिल किसान एकता मोर्चा के फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट्स को ब्लॉक कर दिया गया था। इस मुद्दे पर काफी होहल्ला मचने के बाद फ़ेसबुक ने उसे फिर से बहाल कर दिया।
मोर्चा के पेज के सब्सक्राइबर्स की संख्या कुछ दिनों में ही सात लाख हो गई थी। इसी दिन मोर्चा ने एक यूट्यूब चैनल शुरू करते हुए एलान किया था कि वह 25 दिसंबर तक अपने सब्सक्राइबर्स की संख्या एक करोड़ से ज़्यादा कर साबित कर देगा कि किसान आन्दोलन कितना लोकप्रिय है उससे कितने लोग जुड़े हैं। इसके पहले कृषि मंत्री ने कहा था कि किसान आन्दोलन ज़्यादा लोकप्रिय नहीं है और एक लाख से अधिक लोगों का समर्थन इसे हासिल नहीं है। किसान एकता मोर्चा ने इसके जवाब में ही यूट्यूब चैनल लॉन्च किया था। इसके तुरन्त बाद ही फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट्स को ब्लॉक किया गया था।
ब्लॉक करने के बाद फ़ेसबुक ने तर्क दिया था कि मोर्चा का पेज स्पैम के नियमों का उल्लंघन करता था। लेकिन सवाल उठता है कि यदि ऐसा ही था तो फिर उसे बहाल क्यों किया गया?
कुछ दिन पहले ही वॉल स्ट्रीट जर्नल ने ख़बर दी थी कि उग्रवादी हिन्दूवादी संगठन बजरंग दल के नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट को फ़ेसबुक ने इसलिए नहीं हटाया कि ऐसा करने से उसके कर्मचारियों को ख़तरा हो सकता था और भारत में उसके निवेश को नुक़सान पहुँच सकता था।
यह सवाल लाज़िमी है कि क्या फ़ेसबुक ने बीजेपी के इशारे पर या उसे खुश करने के लिए किसान एकता मोर्चा के पेज को ब्लॉक किया था।
आईआरसीटसी
इसी तरह इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूअरिज़्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) ने चुनिंदा सिख नेताओं को मेल भेज कर उन्हें विस्तार से बताया था कि प्रधानमंत्री ने सिखों के लिए कितना कुछ किया है। आईआरसीटीसी वह प्लैटफ़ॉर्म है, जिस पर हम-आप रिजर्वेशन कराते हैं। लेकिन रिजर्वेशन के समय दी गई जानकारी गोपनीय होती है और आपराधिक मामलों को छोड़ दूसरे मामलों में उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यह लोगों की निजता और गोपनीयता का उल्लंघन है। सवाल यह है कि क्या आरसीटीसी को लोगों की गोपनीयता व निजता का उल्लंघन करने का हक़ है?
आईआरसीटीसी ने सरकार के कहने पर ऐसा किया? इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का अधिकार संविधान देता है, तो क्या उसके ख़िलाफ़ इस तरह के हथकंडे अपनाए जा सकते हैं और सरकारी एजंसियाँ अपने हाथ में क़ानून लेकर अपराध तक कर सकती है? सरकार प्रदर्शनकारियों की माँगें माने या न माने, यह एक अलग मुद्दा हो सकता है, पर सरकारी एजंसियाँ नियम क़ानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाया, यह कहाँ तक जायज है?