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हरियाणा में चुनाव से पहले भाजपा का एसटी कार्ड, 20 जातियों की पहचान 

हरियाणा में चुनाव से पहले भाजपा का एसटी कार्ड, 20 जातियों की पहचान 

भाजपा शासित हरियाणा में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में हैं। लेकिन भाजपा चुनाव जीतने के लिए हर पैंतरे का इस्तेमाल कर रही है। हरियाणा में जाट लॉबी काफी मजबूत है। जाट लॉबी के मुकाबले में नायब सिंह सैनी को पिछले दिनों राज्य का मुख्यमंत्री भाजपा आलाकमान (मोदी-शाह) ने नियुक्त किया था। अब सीएम सैनी तमाम ओबीसी जातियों को लुभाने के बाद अनुसूचित जनजातियों को लुभाने में लगे हैं। जानिए पूरी राजनीतिः

हरियाणा सरकार ने लगभग 20 जातियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी के तहत लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब तक, राज्य में कोई भी जाति या समुदाय अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध नहीं है। हरियाणा से भाजपा के राज्यसभा सदस्य राम चंदर जांगड़ा का कहना है कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में अधिसूचित की जाने वाली कुछ जातियों और समुदायों की पहचान कर ली गई है।

हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार का यह कदम पूरी तरह से राजनीति से जुड़ा हुआ है। अभी हाल ही में लोकसभा चुनाव में भाजपा पांच सीटों पर चुनाव हार गई। जाट मतदाताओं के वोट उसे नहीं मिले। जहां मिले, वहां भाजपा के जाट प्रत्याशियों का अपना प्रभाव था। राज्य की पूरी राजनीति जाट नेताओं और मतदाताओं के चारों तरफ घूमती है। जाट राजनीति की काट के लिए करीब साढ़े नौ साल से पंजाबी मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री थे लेकिन वो जाटों को भाजपा के पाले में नहीं ला सके। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले खट्टर को बदल दिया गया और नायब सिंह सैनी को ओबीसी नेता के रूप में भाजपा ने स्थापित किया। भाजपा का राजनीतिक आकलन यह है कि उसके पास पंजाबी वोट बैंक पहले से ही है। अगर उसे ओबीसी जातियों का वोट भारी तादाद में मिल जाए तो जाट राजनीति को परास्त किया जा सकता है। अब भाजपा ने ओबीसी में से ही दायरे को और बढ़ाते हुए इनमें से एसटी समुदायों की पहचान की है। 

भाजपा सांसद जांगड़ा का कहना है कि “हरियाणा में कई जातियाँ जैसे सपेरा, सिकलीगर, सिंघिकाट, गाड़िया लोहार और टपरीवास आदि अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल होने के मानदंडों को पूरा करती हैं। एसटी के रूप में वर्गीकृत किया जाना भी उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग थी। अब, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पहल की है और इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजने के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।” 

इसी के साथ सवाल पूछा जा रहा है कि पिछले 10 वर्षों में इन 20 एसटी जातियों की पहचान क्यों नहीं की गई और क्यों नहीं उन्हें आरक्षण का लाभ दिया गया। चुनाव से तीन महीने पहले एसटी जातियों की याद कैसे आई।

एमडी यूनिवर्सिटी रोहतक में समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र प्रसाद का कहना है कि “मैक्रो-लेवल सर्वेक्षण या जनगणना के बिना हरियाणा में एसटी की पहचान करना राजनीतिक लाभ लेने की एक बेताब कोशिश है। अंततः, यह व्यर्थ की कवायद साबित हो सकती है। राज्य के कुछ हिस्सों में बिखरी हुई बस्तियों में रहने वाले खानाबदोश समूह किसी भी एसटी श्रेणी के अंतर्गत आने के लिए योग्य नहीं हो सकते हैं।'' प्रोफेसर प्रसाद ने कहा कि ऐसे समूहों की पहचान करने के लिए जनगणना सर्वेक्षण करना और फिर उन्हें एसटी के रूप में नामित करना ज्यादा समझदारी होगी। दलित अधिकार कार्यकर्ता डॉ स्वदेश किरार, जो अनुसूचित जाति महापंचायत, हरियाणा के प्रमुख भी हैं, ने कहा कि हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्य में एसटी की पहचान करना बेतुका लगता है।

डॉ किरार ने कहा- “हरियाणा देश का अग्रणी राज्य है और इसका एक बड़ा हिस्सा शहरीकृत है। राज्य में ऐसा कोई विशाल वन क्षेत्र नहीं है जहां एसटी हो सके। इस कदम का उद्देश्य विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाना है।”

हरियाणा में राजनीतिक गतिविधियां तेज होती जा रही हैं। भाजपा हर मोर्चे को साधने के लिए सक्रिय है। पिछले दिनों उसने पूर्व सीएम स्व. बंसीलाल की बहू किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी को पार्टी में शामिल किया है। बंसीलाल परिवार का भिवानी में काफी प्रभाव है। कांग्रेस में लंबे समय से किरण चौधरी थीं, वे विधायक, मंत्री, सांसद तक रहीं लेकिन कांग्रेस में बेटी का भविष्य सुरक्षित कर पाने में असमर्थ होने पर वो परिवारवाद की विरोधी भाजपा में अपनी बेटी के साथ चली गईं। अब उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपने लिए और बेटी के लिए टिकट मांगा है। भाजपा की ओर से उन्हें आश्वासन भी मिल गया है।

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