सत्येंद्र पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश-दुनिया के मुद्दों पर ब्लॉग के माध्यम से भी अपनी राय रखते रहे हैं।
लाल बहादुर शास्त्री से कुलदीप नैयर ने पूछा, "आपके विचार से नेहरू के दिमाग में उनका उत्तराधिकारी कौन है"
शास्त्री ने कहा, "उनके ज़हन में उनकी बेटी का नाम है। लेकिन यह उतना आसान नहीं होगा"
नैयर ने कहा, "आम धारणा यही है कि आप नेहरू के परम भक्त हैं और उनकी मृत्यु के बाद आप ख़ुद इंदिरा गाँधी के नाम का प्रस्ताव रखेंगे।"
शास्त्री ने जवाब दिया, "मैं उतना साधु भी नहीं हूँ, जितना आप मेरे बारे में कल्पना करते हैं।"
जवाहरलाल नेहरू गुसलखाने में गिर पड़े। 27 मई 1964 की सुबह चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। नेहरू की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में दो दावेदार उभरे। एक मोरारजी देसाई और एक लाल बहादुर शास्त्री।
वामपंथी उस समय शास्त्री की तुलना में देसाई को ज़्यादा प्रोग्रेसिव समझते थे और उनके समर्थन में थे। वहीं कांग्रेस का बड़ा धड़ा भी देसाई के साथ था।
तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज ने यह घोषणा की कि नेहरू चाहते थे कि लाल बहादुर शास्त्री उनके उत्तराधिकारी बनें। उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री को विजयी बढ़त मिल गई।
- उन दिनों सिंडिकेट इंदिरा गाँधी को सबसे ताक़तवर उत्तराधिकारी समझता था, जिन्हें वह गूंगी गुड़िया कहता था। इंदिरा गाँधी को इतना परेशान किया गया कि उन्होंने अपनी शेष ज़िंदगी लंदन में बिताने का मन बना लिया। उनको भरोसा था कि पिता की लिखी किताबों की रायल्टी से उनकी ज़िंदगी कट जाएगी। शास्त्री ने उन्हें लंदन भेजने का पूरा प्रबंध भी कर दिया था।
भारत-पाक युद्ध के बाद ताशकंद समझौता हुआ। समझौते के बाद शास्त्री ने दिल्ली में अपने घर पर फ़ोन किया। पहले उन्होंने अपने छोटे दामाद बीएन सिंह से बात की। फिर शास्त्री की सबसे बड़ी और प्रिय बिटिया कुसुम ने फ़ोन लिया। शास्त्री ने ताशकंद समझौते के बारे में उससे हिंदी में पूछा, "तुझे कैसा लगा"
उसने जवाब दिया, "बाबूजी हमें अच्छा नहीं लगा।"
उन्होंने फिर अपनी पत्नी के बारे में पूछा, "और अम्मा को"
कुसुम ने कहा कि उन्हें भी अच्छा नहीं लगा।
शास्त्री ने तब अपनी बेटी से कहा कि वह फ़ोन श्रीमती शास्त्री को दें। कुसुम ने उत्तर दिया कि अम्मा बात नहीं करना चाहतीं क्योंकि वह इस बात से नाराज़ हैं कि हाजी पीर और तिथवाल इस्लामाबाद को वापस कर दिए गए। इसकी भारत में व्यापक रूप से आलोचना हो रही थी। शास्त्री के निजी सहायक सहाय ने बताया कि वह बहुत बेचैन थे और सिर्फ़ उन्होंने यह कहा कि सुबह दिल्ली से आने वाले वायुसेना के विमान से वहाँ के अखबार मँगा दिए जाएँ। वह बेचैन होकर कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। उनके एक और निजी सहायक रामनाथ ने वहीं कमरे में फ़र्श पर सो जाने की बात कही, लेकिन शास्त्री ने उसे ऊपर अपने कमरे में जाने को कहा।
दो बार पहले भी दिल का दौरा झेल चुके शास्त्री को उस रात तीसरी बार दिल का दौरा पड़ा। इसके पहले कि डॉक्टर कुछ कर पाते, 11 जनवरी 1966 को शास्त्री की मौत हो गई।
शास्त्री की मौत के बाद फिर उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हुआ। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनने की फ़िराक़ में जुट गए। इस बार के कामराज ने इंदिरा गाँधी को उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया। कांग्रेस सिंडिकेट देसाई पर भरोसा नहीं करता था और इंदिरा को गूंगी गुड़िया समझता था। वहीं वामपंथी रुझान की वजह से कम्युनिस्ट चाहते थे कि इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनें।
कांग्रेस के संसदीय इतिहास में पहली बार उत्तराधिकार की लड़ाई हुई। मतदान हुआ। इंदिरा को 365 वोट मिले और मोरारजी देसाई उनके आधे से कम, 169 मत पाकर फिर कुर्सी की जंग हार गए।
एक और बात...
नेहरू के कैबिनेट मंत्री तिरुवल्लुवर थाटाई कृष्णामाचारी, टीटीके के नाम से जाने जाते थे। टीटीके, जो शास्त्री के प्रधानमंत्री रहते भारत के वित्त मंत्री थे, ने कुलदीप नैयर को बताया था कि नेहरू ने एक बार उनसे शास्त्री के बारे में कहा था, "देखने में छोटा-सा लगने वाला वह व्यक्ति इतना धूर्त है, जो कभी भी आपकी पीठ में छुरा भोंक सकता है।"
लाल बहादुर शास्त्री को उनकी पुण्य तिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि।
(सत्येंद्र पी. सिंह के ब्लॉग से साभार)