ज्ञानवापी मसजिद केस सुनने वाले जज को धमकी के बाद FIR
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मसजिद परिसर के फिल्मांकन का आदेश देने वाले न्यायाधीश को धमकी दिए जाने को लेकर एफ़आईआर दर्ज की गई है। पुलिस ने वाराणसी के सिविल जज रवि कुमार दिवाकर के एक आदेश की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया है। पुलिस अब इस मामले की जाँच कर रही है। पुलिस के अनुसार उनकी सुरक्षा पहले से ही बढ़ा दी गई है।
सिविल जज ने मंगलवार को वाराणसी प्रशासन को कहा था कि उन्हें कथित तौर पर काशिफ अहमद सिद्दीकी द्वारा इसलामिक आगाज मूवमेंट नाम के एक संगठन से एक 'धमकी वाला पत्र' मिला है। न्यायाधीश दिवाकर ने अपनी जान को ख़तरा बताते हुए उत्तर प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों- अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और वाराणसी पुलिस आयुक्तालय को पत्र लिखकर उचित कार्रवाई की मांग की थी।
पत्र में उस मसजिद के फिल्मांकन का ज़िक्र है जिसका आदेश न्यायाधीश दिवाकर ने 26 अप्रैल को दिया था। न्यायाधीश का यह आदेश उस मांग पर आई थी जिसमें पांच महिला याचिकाकर्ताओं ने मसजिद के पीछे एक मंदिर में पूरे साल पूजा करने की अनुमति देने की मांग की थी। महिलाओं का यह भी दावा है कि मसजिद परिसर के अंदर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
वाराणसी के पुलिस आयुक्त ने इंडिया टुडे से कहा था रवि दिवाकर को पहले ही सुरक्षा मुहैया कराई जा चुकी है। जज और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए नौ पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। पुलिस के अनुसार ज्ञानवापी मामले से जुड़े सभी याचिकाकर्ताओं और अधिवक्ताओं को भी सुरक्षा दी गई है।
पुलिस ने पहले कहा था कि कथित 'धमकी वाला पत्र' 4 जून को पोस्ट किया गया था और एक लेटरहेड पर लिखा गया था जिसमें दिल्ली का पता लिखा था। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उस पत्र में कहा गया है, 'आपने बयान दिया है कि ज्ञानवापी मसजिद परिसर का निरीक्षण एक सामान्य प्रक्रिया है। आप एक मूर्तिपूजक हैं, आप मसजिद को एक मंदिर घोषित करेंगे। कोई भी मुसलमान 'काफिर, मूर्तिपूजक' हिंदू न्यायाधीश से सही निर्णय की उम्मीद नहीं कर सकता।'
बता दें कि 19 मई को न्यायाधीश दिवाकर को सौंपी गई फिल्मांकन रिपोर्ट में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दावा किया था कि मसजिद में एक 'शिवलिंग' है। लेकिन इस दावे पर विवाद हो गया। मसजिद समिति के सदस्यों ने कहा था कि संरचना वज़ूखाना में एक फव्वारे का हिस्सा थी जिसका उपयोग भक्तों द्वारा नमाज़ अदा करने से पहले अनुष्ठान करने के लिए किया जाता था।
सुप्रीम कोर्ट ने केस की जटिलताओं और संवेदनशीलता को देखते हुए इस मामले को 20 मई को सिविल जज रवि कुमार दिवाकर से जिला जज एके विश्वेश को स्थानांतरित कर दिया था।