गुजरात बीजेपी में असंतोष, नई सरकार में एक भी पुराना चेहरा नहीं

01:59 pm Sep 16, 2021 | सत्य ब्यूरो

'पार्टी वद अ डिफरेंस' और 'समर्पित व अनुशासित कार्यकर्ताओं की पार्टी' कही जाने वाली बीजेपी में भारी असंतोष है। यह असंतोष कहीं और नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में है। 

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने इस्तीफ़ा तो दे दिया, नए मुख्यमंत्री का चुनाव भी शांतिपूर्वक हो गया। पर उसके बाद सरकार गठन को लेकर सिर फुटौव्वल इतनी तेज़ हो गई कि मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह टालना पड़ा।

यहीं पेच फँसा हुआ था। नई सरकार का जो फॉर्मूला दिया गया था, उस वजह से ही । यह फ़ॉर्मूला यह था कि विजय रूपाणी सरकार का कोई मंत्री नई सरकार में नहीं होगा, बिल्कुल नहीं सरकार होगी। मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्री नए होंगे, पुराना चेहरा एक नहीं होगा।

सरकार का फ़ॉर्मूला

इस फ़ॉर्मूले की वजह यह बताई जा रही है कि बीजेपी एंटी-इनकम्बेन्सी यानी सरकार विरोधी भावनाओं को पहले से ही भाँप चुकी है और यह समझती है कि राज्य सरकार के ख़िलाफ़ लोगों का गुस्सा चरम पर है। सरकार के कामकाज और ख़ास कर कोरोना महामारी के दौरान उसकी लापरवाही व बदइंतजामी से लोग उबल रहे हैं। 

ऐसे में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यह संकेत देना चाहता है कि बिल्कुल ब्रांड न्यू सरकार, पिछली सरकार के लिए इन्हें ज़िम्मेदार ठहराना ठीक नहीं। पार्टी का मानना है कि इससे लोगों का गुस्सा शांत होगा। 

लेकिन गुजरात बीजेपी के पुराने व अनुभवी ही नहीं, अपेक्षाकृत नए और तेज़-तर्रार नेताओं का राजनीतिक कैरियर दाँव पर लग गया।

जातीय समीकरण गड़बड़

दूसरी दिक्क़त यह है कि इस फ़ार्मूले से जातीय समीकरण गड़बड़ हो सकता है, क्योंकि इस पर चल कर कुछ जातियों का प्रतिनिधित्व सरकार में नहीं हो सकेगा। उन जातियों के नेता विधायक नहीं है या हैं तो बहुत ही जूनियर हैं। ऐसे में जो जाति छूट जाएगी, विपक्ष चुनाव के समय उसी जाति में सेंध लगा सकता है। बीजेपी के लिए घाटे का सौदा होग। 

इन फ़ार्मूले का सबसे मुखर विरोधी पूर्व मुख्यमंत्री रूपाणी कर रहे हैं। उनका तर्क है कि सभी मंत्रियों को हटाने से लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं में ग़लत संकेत जाएगा। 

कांग्रेस छोड़ कर जो लोग बीजेपी में शामिल हुए थे, वे भी परेशान हैं। वे आख़िर राजनीतिक फ़ायदे और पद की उम्मीद में ही तो बीजेपी में शामिल हुए थे। पर उन्हें कुछ न मिला तो उनका विरोध स्वाभाविक है। 

पहले शपथ ग्रहण समारोह 15 सितंबर बुधवार को होना था। इसे टाल कर अगले दिन यानी गुरुवार को कर दिया गया। 

सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि नई सरकार क्या पूरे गुजरात का प्रतिनिधित्व कर पाएगी? क्या सभी जातियों के लोग इसमें होंगे? क्या इससे गुजरात बीजेपी को लेने के देने तो नहीं पड़ जाएंगे?