अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने गुरुवार को 2002 के नरौदा गाम नरसंहार मामले में सभी 69 आरोपियों को बरी कर दिया। जिन्हें बरी किया गया है उनमें बीजेपी की पूर्व विधायक माया कोडनानी, बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी और विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल सहित सभी 69 आरोपी शामिल हैं।
27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने के बाद गुजरात में हुए नौ बड़े दंगों में नरोदा गाम का मामला शामिल था। 28 फरवरी, 2002 को, अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में मुस्लिम महोल्ला, कुंभार वास नामक इलाके में भीड़ द्वारा उनके घरों में आग लगाने के बाद 11 मुसलमानों को जलाकर मार डाला गया था। नरोदा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
इस मामले में तेजी से दिन-प्रतिदिन मुक़दमे की सुनवाई का आदेश दिया गया था। ट्रायल के लिए अदालतें नामित की गई थीं और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निगरानी की गई थी, फिर भी नरोदा गाम मामले को फैसले तक पहुंचने में सालों लग गए।
2002 के गुजरात दंगा मामलों के त्वरित ट्रायल के लिए गठित न्यायाधीश शुभदा कृष्णकांत बक्सी की विशेष रूप से नियुक्त अदालत ने 5 अप्रैल को कार्यवाही समाप्त कर दी थी। मामले के 86 अभियुक्तों में से 17 को मुक़दमे के दौरान हटा दिया गया था, जबकि 69 अभियुक्तों पर ट्रायल चलाया गया था। सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। मामले में करीब 182 गवाहों से पूछताछ की गई थी।
नरोदा सहित गुजरात में दंगों की शुरुआत गोधरा में एक ट्रेन में आग लगाने के बाद हुई थी। यह ट्रेन अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन कर लौटे दर्शनार्थियों से भरी हुई थी। इस आगजनी में 58 यात्रियों की मौत हो गई थी। इसके अगले ही दिन 28 फरवरी को गुजरात में सांप्रादायिक हिंसा फैल गई थी। सांप्रादायिक हिंसा की यह आग नरोदा गाँव तक भी पहुंची और इसमें 11 मुसलमानों को मार दिया गया था।
पहले इस मामले में माया कोडनानी को 28 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। दूसरे बहुचर्चित आरोपी बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सात अन्य लोगों को 21 साल के आजीवन कारावास तथा बाकी अन्य लोगों को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था।
दोषियों ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। जबकि एसआईटी ने 29 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
गृह मंत्री अमित शाह 2017 में कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में अदालत में पेश हुए थे। वह 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार में मंत्री थीं, जब साबरमती के एक कोच को जलाने के बाद दंगे भड़क उठे थे।
बरी किए गए लोगों के वकील ने आज अदालत के बाहर संवाददाताओं से कहा, 'सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है। हम फैसले की प्रति का इंतजार कर रहे हैं।'
कोडनानी को नरोदा पाटिया दंगों के मामले में भी दोषी ठहराया गया था जिसमें 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी और उन्हें 28 साल की सजा सुनाई गई थी। बाद में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था।
बता दें कि गुजरात दंगों की जाँच करने वाले न्यायमूर्ति नानावती आयोग की रिपोर्ट में गवाहों के बयानों पर ध्यान दिया गया कि 'मुसलमानों को कोई पुलिस सहायता नहीं मिली और वे केवल बदमाशों की दया पर निर्भर थे', और यह कि पुलिस मदद शाम को ही पहुँची। हालाँकि, कई पुलिस अधिकारियों ने आयोग के समक्ष गवाही दी कि वे नरोदा गाम नहीं पहुंच सके क्योंकि वे नरोदा पाटिया में अधिक गंभीर स्थिति से निपट रहे थे, जो उसी समय सामने आ रही थी।