वडगाम से जिग्नेश मेवानी की जीत के क्या हैं मायने

05:03 pm Dec 08, 2022 | सत्य ब्यूरो

गुजरात विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस पूरी तरह पस्त हो गई, ऐसे में वडगाम से कांग्रेस टिकट पर जिग्नेश मेवानी के जीतने के बहुत मायने हैं। मेवानी ने वडगाम सीट करीब 4000 वोटों से जीत ली है। चुनाव आयोग के मुताबिक जिग्नेश मेवानी को 78845 वोट और उनके मुकाबले में आए बीजेपी के मणिभाई जेठाभाई वाघेला को 75005 वोट मिले हैं। मेवानी को करीब 47.89 फीसदी और बीजेपी प्रत्याशी को 45.56 फीसदी वोट मिले हैं।

वडगाम के आंकड़े यह बताने को काफी हैं कि यहां पर जीत कितनी मुश्किल से मिली है लेकिन यह जिग्नेश मेवानी की अपनी जीत है और इस विधानसभा सीट पर दलित-मुस्लिम मतदाताओं का जो गठजोड़ 2017 में बना था, वो कायम है। 2017 में यहां से जिग्नेश मेवानी आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते थे। उन्होंने सत्ता पक्ष की मलाई चाटने की बजाय विपक्षी पार्टी कांग्रेस का साथ दिया।

मेवानी बीजेपी सरकार की नजरों में विलेन बने हुए हैं। गुजरात में उन पर फर्जी मुकदमे बनाए गए। गिरफ्तार किया गया। यहां तक असम की पुलिस भी जिग्नेश मेवानी को गिरफ्तार करने पहुंची। लेकिन अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। कश्मीर फाइल वाले विवेक अग्निहोत्री ने कभी जिग्नेश मेवानी को अर्बन नक्सल कहा था। पेशे से वकील मेवानी ने गुजरात के दलितों और अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाने शुरू किए। गुजरात के ऊना में जब दलित युवकों को नंगा कर पीटा गया तो मेवानी उनके लिए उठ खड़े हुए और एक आंदोलन छेड़ दिया। छात्र आंदोलन के दौरान उन्होंने जेएनयू में पहुंचकर कन्हैया कुमार और उमर खालिद का समर्थन किया। सीएए विरोधी आंदोलन शुरू होने पर जामिया के मंच पर आंदोलनकारियों को समर्थन देने पहुंचे।

इसलिए वडगाम से जिग्नेश मेवानी की जीत को कई संदर्भों में देखा जा सकता है। यह सही मायने उन नागरिक संगठनों की जीत है जिनके अधिकारों के लिए मेवानी लड़ते रहे हैं। ये उस अल्पसंख्यक समुदाय की जीत है, जो उनके हर आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता रहा है।

हालांकि वडगाम से मेवानी को हराने के लिए व्यूह रचना सिर्फ बीजेपी ने ही नहीं की थी, उसका साथ देने के लिए आम आदमी पार्टी और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी मौजूद थी। तमाम नागरिक संगठनों ने आम आदमी पार्टी और ओवैसी से अनुरोध किया था कि वडगाम से वो अपने प्रत्याशी नहीं उतारें और मुकाबला कांग्रेस-बीजेपी के बीच होने दें लेकिन यहां से 11 प्रत्याशी मैदान में उतरे।

वडगाम विधानसभा क्षेत्र बनासकांठा जिले का हिस्सा है और पाटन लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है। यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। यह गुजरात के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है जहां मुसलमानों का एक बड़ा मतदाता वर्ग है। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जिग्नेश मेवानी ने 2017 में 19,696 मतों से वो चुनाव जीता था। इस बार उनका मुकाबला बीजेपी के मणिलाल वाघेला के अलावा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दलपत भाटिया और एआईएमआईएम के उम्मीदवार कल्पेश सुंधिया रमेश भाई से भी था।

वडगाम कांग्रेस और सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए एक पारंपरिक युद्ध का मैदान रहा है। 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार जिग्नेश मेवानी ने बीजेपी के विजयकुमार चक्रवर्ती को हराया था। इस बार बीजेपी ने एक कारोबारी वाघेला को टिकट दिया था ताकि चुनाव लड़ने वाले के पास संसाधनों की कमी न रहे। लेकिन बीजेपी का यह टोटका भी नहीं चला।

2012 में, कांग्रेस के मणिलाल वाघेला विजयी हुए थे, जबकि 2007 में बीजेपी के फकीर वाघेला ने कांग्रेस के दौलतभाई परमार को हराया था। 2022 में मेवानी ने प्रतिकूल हालात में यह सीट निकाली है। आप प्रत्याशी दलपत भाई दया भाई बाटिया को 4194 वोट मिले हैं। यानी अगर आप यहां से खड़ी नहीं होती तो मेवानी की जीत का अंतर और बढ़ जाता। इसी तरह ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी रमेश भाई को 1899 मिले। एक फीसदी से कुछ ज्यादा वोट यह पार्टी खींच ले गई। 

एक निर्दलीय प्रत्याशी भी एक हजार से ज्यादा वोट खींच ले गया। इसलिए जिग्नेश मेवानी की जीत का अंतर इस बार कम रहा। मेवानी के मुकाबले जो प्रत्याशी मैदान में थे, वे बाकायदा चुनाव लड़ते हुए दिखे। यानी मेवानी को हराने के लिए पूरी तैयारी रणनीतिक तरीके से की गई थी लेकिन अंत में बीजेपी जीत नहीं पाई। सत्ता पक्ष को अब मेवानी फिर चुभेंगे। कांग्रेस की ज्यादा सीटें इस बार नहीं आई हैं तो दारोमदार जिग्नेश मेवानी पर ही होगा।