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गुजरात हादसाः जयसुख पटेल को क्या 'सत्ता सुख' बचा रहा है 

गुजरात हादसाः जयसुख पटेल को क्या 'सत्ता सुख' बचा रहा है 

गुजरात के मोरबी में हुए हादसे में ओरेवा ग्रुप के चेयरमैन जयसुख पटेल को आरोपी बताया गया है। यह कारोबारी सत्ता के कैसे नजदीक है, इसी तथ्य की पड़ताल इस रिपोर्ट में की गई है। इसके अलावा कुछ सवाल भी उठाए गए हैं। पढ़िएः

गुजरात के मोरबी हादसे में झूलतो पुल के रखरखाव का ठेका ओरेवा ग्रुप के पास था। पुलिस ने इस मामले में जो एफआईआर दर्ज की, उसमें आरोपी ओरेवा ग्रुप ठेकेदार है। ओरेवा ग्रुप का मुखिया मोरबी का बड़ा कारोबारी जयसुख पटेल है। एफआईआर में जयसुख पटेल का नाम नहीं है। पुलिस ने हादसे के लिए ओरेवा ग्रुप के 9 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया। अहमदाबाद और मोरबी में ओरेवा ग्रुप के दफ्तरों पर ताले लटक रहे हैं। पुलिस का कहना है कि ठेकेदार फरार है। पुलिस ठेकेदार का नाम लेने से बच रही है। सीपीएम, कांग्रेस आदि ने जयसुख पटेल का नाम लेकर बीजेपी पर हमले किए हैं।

जयसुख पटेल कौन है। क्या बीजेपी में उसके उच्च स्तर पर संबंधों के कारण उसे बचाया जा रहा है। भारतीय टीवी चैनल जयसुख पटेल के बारे में कुछ नहीं बता रहे हैं। मोरबी में जयसुख पटेल जाना-माना नाम है। 2020 में नवनक्षत्र सम्मान बिजनेस अवॉर्ड आयोजित किया गया था। जिसमें गुजरात के पूर्व सीएम विजय रुपाणी चीफ गेस्ट थे, उस समारोह में जयसुख पटेल को बीजेपी सांसद से सम्मानित कराया गया था।

जयसुख पटेल सत्ता के नजदीक है। इसलिए आरोपी के रूप में उसे बचाया जा रहा है। जयसुख पटेल की पहुंच बीजेपी नेताओं और पीएमओ तक कैसे थी। उसका पता टाइम्स ऑफ इंडिया की 25 जुलाई 2019 की एक रिपोर्ट से चलता है। उस रिपोर्ट में बताया गया है कि कच्छ के छोटे रण (एलआरके) को जिन्दा करने के लिए जयसुख पटेल ने एक योजना पेश की थी। इसके जरिए इस रण सरोवर को मीठे पानी की झील में बदला जाना था। जयसुख पटेल की इस योजना को गुजरात सरकार ने अपनी योजना कहकर प्रचारित करना शुरू कर दिया। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की उस रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2019 में केंद्रीय जल आयोग ने एलआरके योजना को लेकर बैठक बुलाई। इस बैठक में 18 विभागों की एक कमेटी बनाई गई, जिसे इस प्रोजेक्ट की फिजिबिल्टी रिपोर्ट देना थी। इस बैठक में पीएमओ के आला अधिकारी और जल मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि यह ओरेवा ग्रुप के मालिक और कारोबारी जयसुख पटेल का आइडिया है, जिन्हें भारत के घड़ी उद्योग को बदलने का श्रेय जाता है।

जयसुख पटेल के बारे में गुजरात की सत्तारूढ़ पार्टी के लोग यही जानते हैं कि इसकी पीएमओ तक पहुंच है। एचडब्ल्यू न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि जयसुख पटेल की 200 करोड़ के एलआरके योजना को गृह मंत्री अमित शाह का समर्थन भी प्राप्त था। उस रिपोर्ट में बताया गया है कि 7 अक्टूबर 2021 में अमित शाह और जयसुख पटेल के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर बैठक हुई थी।

ये बैठकें और ये प्रोजेक्ट यह बताने के लिए काफी है कि जयसुख पटेल सत्ता के सुख को उठाने वाला बड़ा कारोबारी है। ओरेवा अजंता ग्रुप 800 करोड़ टर्नओवर की कंपनी है। जिसमें 7000 लोग काम करते हैं। जिनमें 5000 महिलाएं हैं। करीब 45 देशों में ओरेवा अजंता का कोराबार फैला हुआ है। जिसमें क्लॉक मैन्यूफैक्चरिंग प्रमुख हैं। मोरबी ओरेवा अजंता का घर है, यानी घड़ियों का कारोबार यहीं से शुरू हुआ था। मोरबी के पूरे समाज में जयसुख पटेल का दखल है। उसने ओरेवा ट्रस्ट बना रखा है, जिसके जरिए वो सामाजिक गतिविधियों को भी अंजाम देता है। 

मोरबी नगर पालिका ने माछु नदी पर बने झूलतो पुल के रखरखाव का ठेका 15 वर्षों के लिए ओरेवा ग्रुप को दिया था। इस सिलसिले में जो करार दोनों पक्षों के बीच हुआ था, उसमें कहा गया था कि ओरेवा के जिम्मे इसकी मरम्मत भी रहेगी। उस करार में एक बहुत अजीबोगरीब लाइन लिखी गई थी कि इस झूलतो पुल की मरम्मत के काम से गुजरात सरकार का कोई मतलब नहीं होगा। ओरेवा को टिकट के जरिए पुल पर जाने वाले पर्यटकों से पैसा वसूलने का अधिकार होगा।

24 अक्टूबर 2022 को जब झूलतो पुल को फिर से खोला गया तो जयसुख पटेल उस समारोह में खुद आया था। उसकी मीडिया कवेरज, वीडियो आदि सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। उसमें जयसुख पटेल पुल की मरम्मत को लेकर बड़े-बड़े दावे करते दिख रहा है। जिसे आप खुद सुन सकते हैं। उसने कहा था कि यह पुल 8-10 साल चलेगा।

इस सारे मामले में कुछ सवाल उठ रहे हैं, जिनका जवाब गुजरात पुलिस, बीजेपी, मोरबी नगर पालिका नहीं दे पा रही है।

  • -24 अक्टूबर को पुल खोलने का सार्वजनिक कार्यक्रम हुआ, ओरेवा का बोर्ड लगा, क्या डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोरबी नगर पालिका को इसकी सूचना नहीं थी। खासकर तब जब नगरपालिका के अधिकारी ऑन रेकॉर्ड कह रहे हैं कि न तो उसके लिए फिटनेस सर्टिफिकेट लिया गया और न ही अन्य अनुमति।

  • झूलतो पुल पर कभी 100 से भी कम संख्या में लोग भेजे जाते थे। तो आखिर भीड़ का नियंत्रण किसके पास होना चाहिए। यह ओरेवा का ठेकेदार तय करेगा या मोरबी नगर पालिका, जो इस पुल की मालिक है। जाहिर है कि भीड़ मैनेजमेंट मोरबी नगर पालिका की जिम्मेदारी है। ऐसे में ओरेवा ठेकेदार ने रविवार को पुल पर जाने वालों के लिए अंधाधुंध टिकट कैसे बेच दिए। पुलिस ने क्या टिकट बुक का रेकॉर्ड जब्त किया है, क्या पुलिस को जानकारी है कि कितने टिकट रविवार को बेचे गए थे। इस सारे मामले में मोरबी नगरपालिका के अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। उन पर कार्रवाई कब होगी। 

  • मोरबी पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है, उसमें ठेकेदार का नाम क्यों नहीं है। उस ठेकेदार की गिरफ्तारी के बारे में उसका क्या कहना है। पुलिस 140 मौतों का आरोपी किसे मानती है। बेशक इसमें शायद जयसुख पटेल की सीधे जिम्मेदारी नहीं हो लेकिन 24 अक्टूबर को जयसुख पटेल ने जो बड़ी बड़ी बातें पुल की सुरक्षा और रखरखाव के बारे में की थीं, उसके मद्देनजर क्या पुलिस आरोपी से पूछताछ भी नहीं करेगी। 

  • क्या बीजेपी कांग्रेस, सीपीएम, आम आदमी पार्टी के इस आरोप को स्वीकार करेगी की जयसुख पटेल उन्हीं का आदमी है या वो उनकी पार्टी से जुड़ा है। क्या बीजेपी इसके लिए खेद जताएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने मोरबी जाकर पीड़ितों से कहा है कि इस मामले की गहन जांच होगी। आखिर सरकार का गहन जांच से क्या आशय है, खासकर जो आरोपी का नाम एफआईआर से गायब है। 

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