बाहरी मज़दूरोें के पलायन से गुजरात को नुक़सान
बाहरी मज़दूरों के साथ मारपीट की वारदात से ख़ुद गुजरात को नुक़सान हो रहा है। दूसरे राज्यों से आए मज़दूर अपने- अपने घर लौट गए, लेकिन उनकी जगह लेने वाला कोई नहीं है। नतीज़तन, कल कारखानों में काम करने वाले लोग नहीं है और औद्योगिक उत्पादन गिरा है। ऐसा उस समय हो रहा है, जब उत्पादन दिवाली की वज़ह से बढ़ जाता है। इसकी पुष्टि करते हुए गुजरात चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के अध्यक्ष जामिन वास ने कहा है कि उत्पादन में तक़रीबन 15-20 फ़ीसद की गिरावट आई है। सबसे ज़्यादा प्रभावित उत्तरी गुजरात है। इस इलाक़े के साणंद, साबरकांठा, पाटन और अरावली ज़िलों में सौ से ज़्यादा औद्योगिक इकाइयां हैं। ये कपड़ा, सेरामिक, केमिकल और फ़र्टिलाइज़र उद्योगों को अपना माल देते हैं।
उत्तरी गुजरात के साणंद पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है। साणंद औद्योगिक इलाक़े में ढेर छोटी-छोटी इकाइयां हैं, जो मोटर गाड़ी और दवा उद्योगों के लिए कल पुर्जे और छोटे मोटे सामान तैयार करती हैं।
इन कारखानोें में लगभग 20,000 मज़दूर काम करते हैं और उनका आधा यानी 10,000 के आस पास लोग बाहर से आए हुए हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़. तीन हज़ार से ज़्यादा लोग कामकाज छोड़ अपने गांव लौट चुके हैं। सानंद इंडस्ट्रियल एस्टेट के अध्यक्ष अजित शाह ने आशंका जताई है कि सिर्फ़ उनके यहां ही उत्पादन में तक़रीबन 15-20 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई है। साणंद वह जगह है, जहां टाटा मोटर्स ने नैनो का कारखान 2008 में लगाया। यहां बने कल पुर्जे टाटा मोटर्स, होंडा इंडिया और हीरो मोटोकॉर्प को सप्लाई किए जाते हैं। दवा उद्योग से जुड़े कल कारखाने पहले से हैं।
साणंद के अलावा मेहसाणा, साबरकांठा और अहमदाबाद के पास के इलाक़ों से मज़दूर ज़्यादातर कामगार भाग चुके हैं। इसी तरह कच्छ, सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के बाकी इलाक़ों में भी सैकड़ों इकाइयां हैं, जिनमें हज़ारों की तादाद में बाहर से आए मज़दूर काम करते हैं।
गुजरात के औद्योगिक इकाइयों में तक़रीबन एक करोड़ मज़दूर काम करते हैं। इनमें से 60-70 प्रतिशत कामगार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल से आए हुए लोग है।
मोटे तौर पर ये कल कारखानोें में लगे हुए हैं, मज़दूरी करते हैं। ये वे काम हैं, जो मूल गुजराती करना पसंद नहीं करते।