गुजरात 2002: नरोदा गाँव में जब 11 लोगों को ज़िन्दा जलाया गया
गुजरात के नरोदा गांव में हुई सांप्रादायिक हिंसा के मामले में विशेष अदालत आज अपना फैसला सुनाएगी। इस मामले गुजरात सरकार में मंत्री रह चुकी बीजेपी नेता माया कोडनानी, बंजरंग दल के बाबू बजरंगी तथा विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप प़टेल मुख्य आरोपी हैं।
मामले के सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। हिंसा के इस मामले में कुल 86 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इन 86 लोगों में से 18 की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई। केस की सुनवाई के दौरान 182 लोगों की गवाहियां ली गई। माया कोडनानी को दंगों की साजिश और 11 लोगों की हत्या का आरोपी बनाया गया है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 2017 की एक सुनवाई में माया कोडनानी के बचाव में अदालत में पेश हो चुके हैं।
नरोदा सहित गुजरात में दंगों की शुरुआत गोधरा में एक ट्रेन में आग लगाने के बाद हुई थी। यह ट्रेन अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन कर लौटे दर्शनार्थियों से भरी हुई थी। इस आगजनी में 58 यात्रियों की मौत हो गई थी। इसके अगले ही दिन 28 फरवरी को गुजरात में सांप्रादायिक हिंसा फैल गई थी। सांप्रादायिक हिंसा की यह आग नरोदा गाँव तक भी पहुंची और इसमें 11 मुसलमानों को मार दिया गया था।
मामले की जांच कर रही एसआईटी ने कोर्ट को बताया था कि ट्रेन में आग लगाए जाने से मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए विधानसभा में शोक सभा का आयोजन किया गया था। शोक सभा के आयोजन के बाद माया कोडनानी नरोदा गांव पहुंची और भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया, उसके बाद से वे वहां से चली गईं। उनके जाते ही वहां हिंसा शुरु हो गई और गांव के ग्यारह लोगों को मार दिया गया।
मामले की सुनवाई कर प्रधान सत्र न्यायाधीश एस के बक्शी की अदालत ने मामले में फैसले की तारीख 20 अप्रैल तय की है। फैसले के दौरान सभी आरोपियों को अदालत मौजूद रहने का निर्देश दिया गया है।
इस मामले में माया कोडनानी को 28 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। दूसरे बहुचर्चित आरोपी बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सात अन्य लोगों को 21 साल के आजीवन कारावास तथा बाकी अन्य लोगों को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था। दोषियों ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। जबकि एसआईटी ने 29 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
माया कोडनानी के अलावा दूसरे आरोपी बाबू बजरंगी के वकील के अनुसार आरोपियों पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी जमावड़ा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर दंगा करना), 129बी (आपराधिक साजिश) के तहत अपराधों के मुकदमे चलाया गया।
इस केस की सुनवाई 2010 में शुरू और और फैसले तक पहुंचते पहुंचते 6 जजों ने इस को सुना। केस की सुनवाई शुरू होते समय जस्टिस एसएच वोरा उस बेंच के अध्यक्ष थे। केस की सुनवाई शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें गुजरात हाईकोर्ट में पदोन्नत कर दिया गया। उनके बाद जस्टिस ज्योत्सना याग्निक, केके भट्ट और पीबी देसाई मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही रिटायर हो गये, जस्टिस एमके दवे का ट्रांसफर कर दिया गया।
मामले की सुनवाई (गवाहों की गवाही) करीब चार साल पहले ही पूरी हो गई थी। अभियोजन पक्ष की दलीलें पूरी हो गईं थीं और बचाव पक्ष अपनी दलीलें दे रहा था उसी समय जस्टिस पीबी देसाई रिटायर हो गये। इसके बाद जस्टिस दवे और उनके बाद आये जस्टिस बख्शी के समक्ष नए सिरे से बहस हुई जो फैसले में देरी का कारण बना।