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गुजरात: पेट्रोल महंगा होने के बाद भी निकाय चुनाव में बीजेपी की जीत

गुजरात: पेट्रोल महंगा होने के बाद भी निकाय चुनाव में बीजेपी की जीत

गुजरात में नगर निगमों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी को जोरदार जीत मिली है। कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है। 

गुजरात में नगर निगमों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी को जोरदार जीत मिली है। कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है जबकि पहली बार गुजरात के किसी चुनावी रण में तलवार भांज रही आम आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम में अच्छा प्रदर्शन किया है। असदउद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम का भी खाता खुला है और उसने अहमदाबाद के जमालपुर में चार सीटें जीत ली हैं। 

देश में महंगे पेट्रोल के कारण जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ शहरों में पेट्रोल बीते कई दिनों से 100 रुपये प्रति लीटर से ज़्यादा महंगा बिक रहा है और डीजल भी बहुत महंगा हो गया है। लेकिन बावजूद इसके गुजरात नगर निगम में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने से सवाल यही खड़ा होता है कि क्या वहां के लोगों के बीच महंगा पेट्रोल चुनाव में कोई मुद्दा नहीं बन पाया। अहमदाबाद और राजकोट में यह 87 रुपये प्रति लीटर से ज़्यादा है। 

गुजरात में नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापारी बेहद परेशान रहे थे। पिछले साल लगे लॉकडाउन के दौरान भी व्यापारियों को ख़ासा नुक़सान हुआ था। इससे अर्थव्यवस्था भी धरातल में चली गई थी लेकिन इस सबके बाद भी बीजेपी को यहां जीत मिली है। 

आत्ममंथन करे कांग्रेस

2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने पार्टी के लिए जमकर पसीना बहाया था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला था। 2012 में कांग्रेस को जहां 61 सीटें मिली थीं, वहीं 2017  में यह आंकड़ा 77 हो गया था, दूसरी ओर बीजेपी 2012 में मिली 115 सीटों के मुक़ाबले 2017 में 99 सीटों पर आ गयी थी। लेकिन उसके बाद कांग्रेस में विधायकों की ऐसी भगदड़ मची कि आज कांग्रेस के पास राज्य में विधायकों की संख्या 65 रह गई है जबकि बीजेपी का आंकड़ा 111 हो गया है। पार्टी को नगर निगम चुनाव में किए गए बेहद ख़राब प्रदर्शन के लिए आत्ममंथन करना चाहिए। 

मोदी-शाह को लगाना पड़ा था जोर

2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान हालात ये थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को गुजरात के ताबड़तोड़ दौरे करने पड़े थे। मोदी-शाह के पूरा जोर लगाने के बाद ही बीजेपी जीत सकी थी। तब गुजरात के शहरी इलाक़ों के साथ ही ग्रामीण इलाक़ों में भी कांग्रेस को समर्थन मिला था। लेकिन इस बार हार्दिक पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के बाद भी उसे फ़ायदा नहीं मिला। 

किसान आंदोलन का असर नहीं

इसके अलावा दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसान आंदोलन का भी असर इस चुनाव में नहीं दिखाई दिया जबकि हरियाणा और पंजाब के निकाय चुनाव में बीजेपी को किसानों की नाराज़गी के कारण नुक़सान हुआ था। गुजरात नगर निगम की जीत को इससे जोड़कर भी देखा जा सकता है कि शहरी इलाक़ों में हिंदू मतदाताओं के बीच बीजेपी का आधार माना जाता रहा है। 

2022 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नगर निगमों के चुनाव के नतीजों को अहम माना जा रहा है। किसान आंदोलन से जूझ रही बीजेपी के लिए यह जीत रेगिस्तान में पानी की बूंदों से मिलने वाली ताज़गी की तरह है। 28 फरवरी को राज्य की 81 नगर पालिका परिषदों, 31 जिला पंचायतों और 231 तालुका पंचायतों में चुनाव होने हैं।

राज्य के छह नगर निगमों के लिए 21 फ़रवरी को मतदान हुआ था और इसमें 46.08 फ़ीसदी मतदान हुआ था। इनमें अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, जामनगर और भावनगर नगर निगम शामिल हैं। 

बीजेपी इन सभी नगर निगमों में सत्ता में है। चुनाव प्रचार के दौरान कांंग्रेस के डेट डेस्टिनेशन विद कैफे, किटी पार्टी हॉल को घोषणापत्र में जगह दिए जाने की काफी चर्चा हुई थी। 

पंजाब में जीती कांग्रेस

कांग्रेस ने पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था जबकि शिरोमणि अकाली दल को करारा झटका लगा। पंजाब में अकाली दल की बैशाखी के सहारे राजनीति करने वाली बीजेपी भी पूरी तरह साफ हो गई है। पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी अपनी ही उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। 

कांग्रेस ने पंजाब के 8 में से 7 नगर निगमों में जीत दर्ज की है। इनमें मोगा, अबोहर, बठिंडा, कपूरथला, होशियारपुर, पठानकोट और बटाला शामिल हैं जबकि मोहाली में कांग्रेस को जीत मिली है। 

पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि कांग्रेस विरोधी दलों पर बहुत भारी पड़ी है और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उसने सियासी बढ़त हासिल कर ली है।

हरियाणा में हारी थी बीजेपी 

दिसंबर, 2020 में हरियाणा में हुए तीन नगर निगमों के चुनाव में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को सिर्फ़ एक निगम में जीत मिली थी। उससे पहले बरोदा सीट पर हुए उपचुनाव में भी इस गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था। माना गया था कि खट्टर सरकार को किसानों की नाराज़गी का खामियाजा उठाना पड़ा है। 

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