+
सीबीआई कोर्ट ने पूर्व बीजेपी सांसद को हत्या का दोषी ठहराया था, गुजरात HC से बरी

सीबीआई कोर्ट ने पूर्व बीजेपी सांसद को हत्या का दोषी ठहराया था, गुजरात HC से बरी

आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी को बहुत बड़ी राहत मिली है। जानिए, छह साल पहले सीबीआई कोर्ट ने किन आरोपों में दोषी माना था।

गुजरात उच्च न्यायालय ने बीजेपी के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी और छह अन्य को आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में बरी कर दिया। अदालत ने उन्हें आरोपों से मुक्त करते हुए कहा कि 'शुरुआत से ही जांच एक दिखावा लगती है'। जुलाई 2010 में आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या की गई थी और इस मामले में इनपर आरोप लगा था। इस मामले की सुनवाई पहले विशेष सीबीआई अदालत में चली थी। 

यह मामला है 20 जुलाई 2010 का। गुजरात उच्च न्यायालय के सामने बार काउंसिल भवन के बाहर दो लोगों ने आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी थी। अमित जेठवा को गोली मारने के बाद हमलावर हत्या के लिए इस्तेमाल की गई एक देशी रिवॉल्वर के साथ-साथ अपनी बजाज डिस्कवर मोटरसाइकिल छोड़कर मौक़े से भाग गए थे। 

इस मामले की जाँच अहमदाबाद की अपराध शाखा ने शुरू की थी। हत्या के दो साल बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने मृतक के पिता की याचिका के बाद सीबीआई को जाँच सौंपी। सीबीआई ने 2013 में दीनू के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया और उन्हें मुख्य साजिशकर्ता के रूप में नामित किया।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2019 में अहमदाबाद की एक विशेष सीबीआई अदालत ने अमित जेठवा हत्या मामले में आरोपियों- दीनू सोलंकी, उनके भतीजे शिवा सोलंकी, संजय चौहान, शैलेश पंड्या, पचन देसाई, उदाजी ठाकोर, और गिर-गढ़दा पुलिस स्टेशन के तत्कालीन पुलिस कांस्टेबल बहादुरसिंह वाडेर को दोषी पाया था। उनको भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या, 201 यानी अपराध के सबूतों को गायब करना और 120 बी यानी अपराध करने की आपराधिक साजिश के तहत दोषी ठहराया गया था।

लेकिन सोमवार को गुजरात हाईकोर्ट का फ़ैसला अलग आया। अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार खुली अदालत में फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति विमल के व्यास की खंडपीठ ने कहा कि मौजूदा केस 'सत्यमेव जयते' के विपरीत के रूप में याद किया जाएगा। इसने कहा कि यह उतना ही भयावह और आश्चर्यजनक था कि हमलावरों को पकड़ा नहीं गया और वे हत्या के बाद अहमदाबाद शहर की सीमा से भाग गए। पीठ ने आगे कहा, 'यह देखते हुए कि जांच शुरू से ही दिखावा लगती है। सच्चाई को हमेशा के लिए दफन करने की पूरी कोशिश की गई है। अपराधी ऐसा करने में सफल हो गए हैं।'

अदालत ने कहा, 'अपराध की शुरुआत से ही पूरी जांच लापरवाही और पूर्वाग्रह से ग्रस्त लगती है। अभियोजन पक्ष गवाहों का विश्वास जीतने में विफल रहा।' इसने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने दोषसिद्धि की पूर्व निर्धारित धारणा के आधार पर सबूतों का विश्लेषण किया है। ट्रायल कोर्ट कानून को लिखित रूप में लागू करने के लिए बाध्य था, न कि अपनी धारणा के अनुसार। नतीजतन, जिस फैसले में आरोपियों को दोषी ठहराया गया था, उसे रद्द किया जाता है और इसे खारिज किया जाता है।'

अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार फैसले में नानी ए पालखीवाला को उद्धृत करते हुए पीठ ने कहा, 'हमारे लोकतंत्र का अस्तित्व और राष्ट्र की एकता व अखंडता इस अहसास पर निर्भर करती है कि संवैधानिक नैतिकता संवैधानिक वैधता से कम ज़रूरी नहीं है। धर्म जनता के हृदय में जिंदा रहता है; जब यह वहीं मर जाएगा तो कोई संविधान, कोई कानून, कोई संशोधन इसे बचा नहीं सकता।'

मुक़दमे के दौरान अभियोजन पक्ष के 195 गवाहों ने गवाही दी थी, लेकिन 105 मुकर गए। मुकरने वालों में गोलीबारी के आठ प्रत्यक्षदर्शी भी शामिल थे। अमित जेठवा के पिता भीकाभाई ने फिर से सुनवाई की मांग करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसके बाद न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की अदालत ने 26 गवाहों की नए सिरे से सुनवाई का निर्देश दिया था।

इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने उन 38 गवाहों के खिलाफ कार्यवाही का निर्देश दिया था जो मुक़दमे के दौरान मुकर गए थे। हालाँकि, गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को ऐसी कार्यवाही का दायरा केवल आठ गवाहों तक सीमित कर दिया।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें