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गुजरात में दलित से बर्बरता; निर्वस्त्र कर पीटा व गांव क्यों घुमाया?

गुजरात में दलित से बर्बरता; निर्वस्त्र कर पीटा व गांव क्यों घुमाया?

गुजरात में एक दलित व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ, उसे निर्वस्त्र कर पीटा और पूरे गांव में घुमाया गया। ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं, प्रशासन का क्या रुख है, और न्याय की क्या उम्मीद है?

जिस गुजरात को अक्सर विकास और आर्थिक प्रगति के मॉडल के रूप में पेश किया जाता है, वहाँ दलित समुदाय की स्थिति लंबे समय से चर्चा और विवाद का विषय रही है। संवैधानिक अधिकारों और कानूनी सुरक्षा के बावजूद, राज्य में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं। गुजरात के साबरकांठा जिले के वडोल गांव में 11 मार्च को एक दलित व्यक्ति के साथ हुई बर्बर घटना ने एक बार फिर जातिगत हिंसा और सामाजिक असमानता के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। इस घटना में कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों ने दलित व्यक्ति को निर्वस्त्र कर पीटा और गांव में घुमाया। यह सब कथित रूप से एक महिला के साथ उसके विवाहेतर संबंधों के चलते हुआ। यह घटना 13 मार्च को तब पुलिस के संज्ञान में आई, जब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

पुलिस के मुताबिक़, 32 वर्षीय पीड़ित निर्माण श्रमिकों को उनके कार्यस्थल तक पहुंचाने का काम करता है और इसी दौरान उसकी मुलाकात उस महिला से हुई थी। वह खुद भी शादीशुदा है और उसके दो बच्चे हैं। 11 मार्च की रात को वह आलू छांटने के काम के बाद कोल्ड स्टोरेज गोदाम से बाहर चाय बनाने के लिए निकला था। उसी समय संजय और उसके साथियों ने उसका नाम पुकारते हुए उस पर हमला बोल दिया। पीड़ित ने एफआईआर में बताया कि वह डर के मारे भागा, लेकिन हमलावरों ने उसे पकड़ लिया, गाली-गलौज की और बुरी तरह पीटा। इसके बाद उसे एक मंदिर के पास ले जाकर उसकी और संजय की पत्नी की कथित तस्वीर दिखाई गई। फिर उसे निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया और एक सुनसान जगह पर ले जाकर धमकी दी गई कि वह दोबारा गांव में कदम न रखे। अंत में उसे एक कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, जिसके बाद उसे छोड़ा गया।

पीड़ित किसी तरह अपने गांव लौटा, जहां उसके दोस्तों और परिवार ने उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया। साबरकांठा के पुलिस अधीक्षक विजय पटेल के अनुसार, पीड़ित को इतनी बुरी तरह पीटा गया था कि उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, लेकिन डर के कारण उसने शुरू में डॉक्टरों से कहा कि वह सीढ़ियों से गिर गया था, जिसके चलते कोई मेडिको-लीगल केस दर्ज नहीं हुआ। वायरल वीडियो के बाद पुलिस ने पीड़ित से संपर्क किया और उसे शिकायत दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित किया।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इडर पुलिस इंस्पेक्टर चेतन राठौड़ ने बताया कि इस मामले में 15 लोगों के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें से नौ को गुरुवार शाम तक हिरासत में ले लिया गया। पुलिस अन्य संदिग्धों की तलाश में जुटी है।

यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत विवाद का नतीजा है, बल्कि भारत में गहरे पैठे जातिवाद और सामाजिक असमानता का प्रतीक भी है। पीड़ित का दलित होना और हमलावरों का कथित ऊंची जाति से होना इस बात की ओर इशारा करता है कि यह सिर्फ एक प्रेम प्रसंग का मसला नहीं था, बल्कि जातिगत वर्चस्व को बनाए रखने की कोशिश भी थी। मंदिर के पास तस्वीर दिखाना और गांव में निर्वस्त्र घुमाना न सिर्फ शारीरिक हिंसा, बल्कि सामाजिक अपमान भी था। यह दलित समुदाय को दबाने की पुरानी प्रथा को दिखाता है।

पीड़ित का डर और शुरू में सच छिपाना यह दिखाता है कि समाज में अभी भी ऐसी घटनाओं के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटाना कितना मुश्किल है। यह भी सवाल उठाता है कि क्या कानूनी ढांचा और सामाजिक सुरक्षा तंत्र वास्तव में दलितों को न्याय और सुरक्षा दे पा रहे हैं?

अत्याचार निवारण अधिनियम जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन उनकी प्रभावी क्रियान्वयन में कमी साफ दिखती है।

पुलिस का वायरल वीडियो के बाद ही सक्रिय होना यह संकेत देता है कि अगर यह घटना सोशल मीडिया पर न आई होती, तो शायद यह मामला दब जाता। यह पुलिस की निष्क्रियता और पीड़ितों तक पहुंचने में देरी पर सवाल उठाता है। वहीं, समाज का मौन भी चिंताजनक है। गांव में ऐसी घटना होने के बावजूद कोई भी आगे नहीं आया, जो सामाजिक दबाव और डर को दिखाता है।

गुजरात में दलितों की स्थिति 

गुजरात में दलित आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 7% है, लेकिन उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति अभी भी कई मायनों में कमजोर बनी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी और विभिन्न आरटीआई से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि गुजरात में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले अन्य राज्यों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से अधिक हैं। 2013 से 2017 के बीच अनुसूचित जातियों के ख़िलाफ़ अपराधों में 32% और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ 55% की वृद्धि दर्ज की गई थी। एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार 2022 में गुजरात में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 1,425 मामले दर्ज हुए, यानी औसतन हर दिन क़रीब चार मामले। इनमें हत्या, बलात्कार, शारीरिक हमले और सामाजिक बहिष्कार जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं।

गुजरात में दलितों के उत्पीड़न के मामले कई रूपों में सामने आते हैं, जो जातिगत वर्चस्व और सामाजिक भेदभाव की गहरी जड़ों को उजागर करते हैं-

शारीरिक हिंसा और अपमान: साबरकांठा की घटना की तरह, दलितों को पीटना, निर्वस्त्र करना और सार्वजनिक रूप से अपमानित करना आम है। 2016 में ऊना में चार दलित युवकों को मरी गाय की खाल उतारने के लिए गोरक्षकों ने बेरहमी से पीटा था, जिसके बाद राज्यव्यापी प्रदर्शन हुए थे। 2023 में मोरबी में एक दलित युवक को वेतन मांगने पर मुंह से सैंडल उठाने के लिए मजबूर किया गया।

सामाजिक बहिष्कार: मेहसाणा जिले के ल्हौर गांव में 2019 में एक दलित दूल्हे की घुड़चढ़ी के बाद गांव वालों ने दलित परिवारों को राशन-पानी देना बंद कर दिया था। ऐसे मामले दिखाते हैं कि परंपरागत रीति-रिवाजों को चुनौती देने पर दलितों को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया जाता है।

बलात्कार और यौन हिंसा: आरटीआई के ज़रिए बीबीसी ने दस साल में गुजरात में दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामले की जानकारी मांगी थी। 2021 में पता चला कि हर चार दिन में एक दलित महिला के साथ बलात्कार होता है।

हत्या और हिंसक हमले: 2001 से 2014 तक 257 दलितों की हत्या के मामले दर्ज हुए। 2023 में सुरेंद्रनगर में भूमि विवाद में दो दलितों की हत्या कर दी गई। ये घटनाएं संपत्ति और सामाजिक स्थिति को लेकर तनाव को उजागर करती हैं।

बहरहाल, साबरकांठा की यह घटना एक बार फिर याद दिलाती है कि संवैधानिक अधिकारों और कानूनी सुरक्षा के बावजूद दलित समुदाय के खिलाफ हिंसा और भेदभाव खत्म नहीं हुआ है। यह सिर्फ कानून का मसला नहीं, बल्कि सामाजिक सोच बदलने की जरूरत का भी सवाल है। जब तक जातिगत श्रेष्ठता की मानसिकता खत्म नहीं होगी, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। यह समाज और सरकार दोनों के लिए एक चेतावनी है कि सिर्फ कानूनी कार्रवाई काफी नहीं, बल्कि जागरूकता और समानता की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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