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कश्मीर में विधानसभा चुनाव की गुंजाइश नहीं, बन रहे हैं ज़िला परिषद

कश्मीर में विधानसभा चुनाव की गुंजाइश नहीं, बन रहे हैं ज़िला परिषद

जम्मू-कश्मीर में ज़िला विकास परिषद की स्थापना की जा रही है, जिसके प्रतिनिधि सीधे जनता के बीच से चुने जाएंगे। इससे यह साफ है कि फिलहाल राज्य विधानसभा चुनाव की कोई संभावना नहीं है। 

अब जबकि जम्मू-कश्मीर में लॉकडाउन ख़त्म हो चुका है, ज़्यादातर नेता रिहा हो चुके हैं, सुरक्षा बलों की तैनाती में कटौती की जा चुकी है और लगता है कि केंद्र किसी पहल की कोशिश में है, सवाल उठता है कि राज्य में विधानसभा चुनाव कब होंगे। 

ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में ज़िला विकास परिषद की स्थापना की जा रही है, जिसके प्रतिनिधि सीधे जनता के बीच से चुने जाएंगे। इससे यह साफ है कि फिलहाल राज्य विधानसभा चुनाव की कोई संभावना नहीं है। इसे हम ऐसे भी कह सकते है कि कश्मीर, लद्दाख और जम्मू के केंद्र-शासित क्षेत्र अभी बने रहेंगे। यानी, केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य का गठन तो नहीं ही करने जा रही है। 

ज़िला विकास परिषद

नई व्यवस्था के तहत हर ज़िले में 14 चुनाव क्षेत्र होंगे, जिनके प्रतिनिधि उसी क्षेत्र से चुने जाएंगे। पहले ज़िला विकास बोर्ड होता था, जिसकी अध्यक्षता एक कैबिनेट मंत्री करता था। इस बोर्ड में विधायक, एमएलसी और सांसद होते थे। 

ज़िला बोर्ड के पास विकास की योजना बनाने और उसे लागू करने के अधिकार होते थे। उसे पैसे राज्य सरकार या केंद्रीय स्कीम से मिलते थे। ज़िला परिषद स्वयं योजना बनाएगा और पैसे खर्च करेगा। म्युनिसपल इलाक़ों को छोड़ पूरा ज़िला उसके अधिकार क्षेत्र में होगा।

तीसरे स्तर का निकाय

इंडियन एक्सप्रेस ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा है कि इसका मक़सद स्थानीय स्तर पर राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करना है। इससे तीसरे स्तर के स्थानीय निकायों को मजबूती मिलेगी। पर इससे दूसरे स्तर के निकाय यानी राज्य या केंद्र-शासित क्षेत्र का महत्व कम होगा।  

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया है। पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नईम अख़्तर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 

'इसका मक़सद पूरी व्यवस्था को अराजनीतिक बना देना है ताकि कोई भी सामूहिक स्वर नहीं बचा रहे। कोशिश यह है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की कोई राजनीतिक आवाज़ न बचे। इस व्यवस्था में सबकुछ अंत में अफ़सरशाही के हाथों में रहेगा।'


नईम अख़्तर, नेता, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी

विधायकों का महत्व कम 

नैशनल कॉन्फ्रेंस के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि 'इसका दूरगामी असर होगा, विधायकों की भूमिका कम हो जाएगी, उनके अधिकार व महत्व भी कम हो जाएंगे।'

इस योजना को लागू करने के लिए ज़िला परिसीमन किया जाएगा और नए 14 निवार्चन क्षेत्र बनाए जाएंगे। इसमें पंचायत राज एक्ट के अनुसार अनूसुचित जाति-जनजाति व महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी होगी। 

5 साल का कार्यकाल

इस प्रणाली में पाँच साल की योजना ग्राम पंचायत, ब्लॉक विकास परिषद और ज़िला विकास परिषद बनाएंगे।  ब्लॉक विकास परिषद विकास योजना बना कर ज़िला योजना कमेटी को भेजेंगे। 

डीडीसी का चुनाव 5 साल के लिए होगा। इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी अतिरिक्त ज़िला विकास आयुक्त होंगे। हर डीडीसी में 5 स्थायी समितियाँ होंगी-वित्त, विकास, लोक निर्माण, स्वास्थ्य व शिक्षा और कल्याण। 

उल्टा कर रही है सरकार

फ़िलहाल पंच व सरपंच के 13 हज़ार पद खाली पड़े हैं। आतंकवादियों के डर से और स्थानीय जनता के दबाव की वजह से कई पंचों-सरपंचों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। ऐसे में सरकार को सबसे पहले इन खाली पदों पर उपचुनाव कराना होगा। उसके बाद ही ज़िला विकास परिषद का चुनाव कराया जा सकता है। 

सवाल यह उठता है कि ऐसे समय जब राज्य में 6 मुख्य दलों ने पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुप्कर डेक्लेरेशन का गठन किया है और 5 अगस्त 2019 के पहले की स्थिति को बहाल करने का संघर्ष शुरू करने वाले हैं, सरकार का यह फ़ैसला बहुत ही ग़लत संकेत दे रहा है।

जम्मू-कश्मीर की सभी बड़ी पार्टियाँ राज्य की बहाली चाहती हैं, विशेष दर्जा फिर से चाहती हैं और सरकार ज़िला परिषद की बात कर रही है, वह पूरी प्रक्रिया को ही अराजनीतिक बना देना चाहती है। असली सवाल यह है। 

यह इसलिए भी अहम है कि पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुप्कर डेक्लेरशन का एलान करते हुए नैशनल कॉन्फ्रेंस के फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने ज़ोर देकर कहा था कि मौजूदा स्थिति किसी सूरत में स्वीकार्य नहीं है और इसे हर हाल में उलटना होगा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कश्मीर समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार को इससे जुड़े सभी पक्षों से बात करनी चाहिए। 

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