सरकार ने आज संसद को बताया है कि पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील पर चीनी पुल अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्र में बनाया जा रहा है। इसके साथ ही इसने यह भी कहा है कि वह अन्य देशों से भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की अपेक्षा करता है।
सरकार ने एक लिखित जवाब में संसद को बताया, 'सरकार ने चीन द्वारा पैंगोंग झील पर बनाए जा रहे एक पुल पर ध्यान दिया है। यह पुल उन क्षेत्रों में बनाया जा रहा है जो 1962 से चीन के अवैध कब्जे में हैं।'
इसने आगे कहा, 'भारत सरकार ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। सरकार ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश भारत का अभिन्न अंग हैं और हम उम्मीद करते हैं कि अन्य देश भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे।'
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, पुल पैंगोंग के उत्तरी तट पर एक चीनी सेना के मैदान के ठीक दक्षिण में स्थित है। रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध के दौरान चीनी क्षेत्र के अस्पतालों और सैनिकों के आवास देखे गए थे।
2020 के बाद से ख़ासकर गलवान नदी क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद दोनों पक्षों के 50,000 से अधिक सैनिकों को पूर्वी लद्दाख में तैनात किया गया है। ये सैनिक देपसांग के मैदानों से उत्तर की ओर आगे दक्षिण में डेमचोक क्षेत्र तक तैनात किए गए हैं।
हालाँकि दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प और भारी तादाद में सैनिकों की तैनाती के बाद से भारत और चीन डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया को लेकर बातचीत कर रहे हैं। भारत और चीन के वरिष्ठ कमांडरों के बीच अंतिम दौर की वार्ता 12 जनवरी को हुई थी। वे इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बहाल करते हुए शेष मुद्दों के समाधान के लिए जल्द से जल्द काम करेंगे।
भारत ने भी कहा है, 'इन वार्ताओं में हमारा दृष्टिकोण तीन प्रमुख सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया गया है- दोनों पक्षों को एलएसी का कड़ाई से सम्मान और पालन करना चाहिए; किसी भी पक्ष को एकतरफा यथास्थिति को बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए; और दोनों पक्षों के बीच सभी समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।'
लेकिन इसी बीच चीनी पुल निर्माण की ख़बर आई है जो दोनों देशों के बीच रिश्ते बहाली के विश्वास को तोड़ने वाले लगते हैं। हाल में ख़बर आई थी कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कई स्थानों का नाम बदले हैं। इस पर भारत सरकार ने दोहराया था कि पूर्वोत्तर राज्य भारत का अभिन्न अंग है।