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मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम करने में जुटा!

मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम करने में जुटा!

दुष्कर्म करने वाली अधिकांश भारतीय मीडिया का हालिया रिकॉर्ड देखकर उनको जनता का दुश्मन क़रार देना कुछ ग़लत न होगा। किसान आंदोलन में कैसी रही इसकी भूमिका?

डोनल्ड ट्रम्प ने भले ही अमेरिकी मीडिया को जनता का दुश्मन कहकर सही बात न कहा हो, लेकिन झूठ बोलना, फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाना, सांप्रदायिक घृणा को उकसाना, बेशर्म चाटुकारिता, बड़े पैमाने पर बिकी हुई, दुष्कर्म करने वाली अधिकांश भारतीय मीडिया का हालिया रिकॉर्ड देखकर उनको जनता का दुश्मन क़रार देना कुछ ग़लत न होगा।

इसके झूठा प्रचार, स्पिन और विरूपण का नवीनतम उदाहरण गणतंत्र दिवस पर आंदोलनकारी किसानों द्वारा लाल क़िले पर सिख ध्वज फहराने को लेकर था। इस तथाकथित 'राष्ट्रविरोधी' कृत्य और हमारे राष्ट्रीय ध्वज का 'अपमान' करने के लिए ऐसा उपद्रव, होहल्ला और  बात का बतंगड़ बनाया गया कि कोई सोचता होगा अब तक आकाश क्यों नहीं गिर पड़ा?

मैंने पहले ही अपने लेख में इस बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं कि झंडा फहराना महज़ एक छोटी सी घटना थी और कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि इससे किसी को कोई नुक़सान नहीं पहुँचता। यह दशकों से चलते आ रहे हमारे राजनीतिक नेताओं द्वारा किए गए भीषण दुष्कर्मों, जिसने देश को आपदा और बर्बादी के कगार पर ला दिया है, जिसपर हमारा गोदी मीडिया बड़े पैमाने पर आँखें मूंदे हुए है, महत्वहीन हैI वास्तव में देश का अपमान इन नेताओं ने किया हैI

मेरे उपरोक्त लेख में एक बात जो रह गयी थी, और जो मुझे बाद में पता चली, वह यह थी कि किसानों द्वारा लाल क़िले पर फहराया गया झंडा खालिस्तानी झंडा नहीं था, बल्कि निशान साहब, जो सिख ध्वज है जो हर गुरुद्वारे में पाया जाता है। साथ ही, राष्ट्रीय ध्वज को नहीं हटाया गया था, लेकिन लाल क़िले पर एक और मस्तूल पर निशान साहब को फहराया गया था।

हमारे 'गोदी' मीडिया द्वारा इन तथ्यों को जानबूझकर दबाया गया/ विकृत किया गया, किसानों के आंदोलन को शर्मनाक तरीक़े से बदनाम किया गया, और इसे देश विरोधी और आतंकवादियों के नेतृत्व हेतु किया गया कृत्य चित्रित किया गया।

हालाँकि, भारत में सभी किसान इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, सच्चाई यह है कि नेतृत्व वास्तव में हमारे बहादुर सिखों द्वारा दिया जा रहा है, जो सभी बाधाओं के बावजूद, अपने दृढ़ संकल्प के कारण उनके ख़िलाफ़ हो रहे सभी गोएबेलसियन प्रचार से बेपरवाह हैं, जिसने उन्हें खालिस्तानियों, पाकिस्तानियों, माओवादियों और देशद्रोहियों के रूप में दर्शायाI उन्हें दो महीनों से अधिक समय से ठंड के मौसम और अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, फिर भी वे बिना किसी शिकायत सभी कष्टों का सामना करते रहेI तो इसमें ग़लत ही क्या है कि निशान साहब फहराया गया?

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