भीमा कोरेगाँव से जुड़े एल्गार परिषद केस में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा का चश्मा चोरी हो गया है और पोस्ट से भेजे गए चश्मे को जेल अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उनके परिवार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बिना चश्मा के वह क़रीब-क़रीब अंधे हैं और कई दिनों से उन्हें दिक्कत हो रही है। बता दें कि ऐसा ही मामला जेल में बंद समाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को लेकर आया था जब उन्हें स्ट्रॉ और सिपर कप नहीं दिया जा रहा था। स्वामी पार्किंसन नामक बीमारी से जूझ रहे हैं और इसके बिना उन्हें खाने में भी दिक्कतें हो रही हैं।
झारखंड के आदिवासियों के लिए काम करने वाले 83 वर्ष के बुज़ुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को विशेष देखभाल की ज़रूरत है और कुछ छोटी-मोटी सहूलियतों की भी। स्ट्रॉ और सिपर कप भी ऐसी ही चीज़ें हैं। उन्होंने ये दोनों चीज़ें अपनी ज़ब्त की गई चीज़ों में से देने की मामूली सी माँग की थी।
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआईए ने इसके लिए बीस दिनों का समय माँगा था और फिर यह कहते हुए मना कर दिया था कि ज़ब्त सामान में ये चीज़ें थी ही नहीं।
स्वामी के वकील ने इसे ग़लत ठहराते हुए कहा था कि उनके बैग में दोनों चीज़ें थीं। स्टेन स्वामी के मामले में यह रिपोर्ट आने पर कहा गया कि यदि मान लिया जाए कि एनआईए सही बोल रही है तो क्या मानवीय आधार पर वह इन्हें उपलब्ध नहीं करवा सकती थी ये चीज़ें इतनी महँगी नहीं हैं और वैसे भी स्वामी उसके लिए भुगतान करने को तैयार थे। लेकिन एनआईए ने ऐसा नहीं किया।
स्टेन स्वामी के बाद अब ऐसा ही ताज़ा मामला गौतम नवलखा को लेकर आया है। वह तलोजा सेंट्रल जेल में क़रीब आठ महीने से बंद हैं।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, अपने परिवार के साथ हाल ही में बातचीत में नवलखा ने कहा है कि पिछले महीने उनका चश्मा चोरी हो गया था। उन्होंने कहा है कि वह गंभीर दिक्कतों का सामना कर रहे हैं और देखने में असमर्थ हैं। नवलखा 69 साल के होने वाले हैं। उनके साथी सहबा हुसैन ने सोमवार को कहा कि जब उन्होंने चश्मा बनवाकर इसे 3 दिसंबर को जेल के लिए पार्सल से भेजा तो जेल प्रशासन ने पार्सल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
हुसैन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नवलखा का चश्मा 27 नवंबर को चोरी हुआ था। उन्होंने कहा कि बिना चश्मे के उन्हें कुछ भी नहीं दिखता है फिर भी उन्हें घर बात करने के लिए तीन दिनों तक तब तक अनुमति नहीं दी गई जब तक फ़ोन करने के लिए उनकी बारी नहीं आई। बयान में यह भी कहा गया है कि परिवार को जेल के अधिकारियों को यह भी बताया गया था कि पोस्ट से नवलखा के लिए चश्मा भेजा गया है, इसके बावजूद उस पार्सल को स्वीकार नहीं किया गया।
वीडियो में देखिए, स्टेन स्वामी को स्ट्रॉ नहीं देना क्या अमानवीयता
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, जेल अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने हुसैन को सूचित किया था कि कूरियर पार्सल स्वीकार नहीं किए जाएँगे और चश्मा किसी व्यक्ति के माध्यम से भेजा जा सकता है। जेल अधिकारी ने कहा, 'हमने यहाँ बने चश्मे की भी पेशकश की है, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। जेल के अंदर पार्सल की अनुमति देने में जोखिम है। हम उन्हें स्वीकार करेंगे अगर किसी जानकार व्यक्ति द्वारा सौंपा जाए।'
बता दें कि भीमा कोरेगाँव का यह मामला भीम कोरेगाँव युद्ध से जुड़ा है। 2018 में युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी, इस कारण बड़ी संख्या में लोग जुटे थे। इस सम्बन्ध में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे थे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई। लेकिन इस बीच हिंसा भड़काने के आरोप में पहले तो बड़ी संख्या में दलितों को गिरफ़्तार किया गया और बाद में 28 अगस्त, 2018 को सामाजिक कार्यकर्ताओं को। इस मामले में गौमत नवलखा, आनंद तेलतुम्बडे और स्टैन स्वामी जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया है।