'नेतृत्व करे हार को स्वीकार', कहने के बाद गडकरी मुकरे
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। अब उनके इस बयान की चर्चा है, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि नेतृत्व को हार की ज़िम्मेदारी भी स्वीकार करनी चाहिए। मी़डिया में उनका यह कथन रिपोर्ट किया गया था।उनके बयान को लेकर मीडिया में यह भी रिपोर्ट किया गया था कि अगर कोई उम्मीदवार हारता है तो इसका अर्थ यह है कि निश्चित रूप से उसकी पार्टी कमज़ोर हो गई होती है या वह लोगों का विश्वास जीतने में नाकाम रहा होता है।
गडकरी के इस बयान का आमतौर पर यही अर्थ निकाला गया कि उन्होंने पाँच राज्यों में बीजेपी की हार के लिए इशारों-इशारों में नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस पर बवाल बढ़ते देख गडकरी ने फ़ौरन सफ़ाई दे डाली कि उनकी कही बातों का बिलकुल ग़लत अर्थ निकाला गया। उन्होंने सारा दोष मीडिया पर डाल दिया और कहा कि उनके और पार्टी नेतृत्व के बीच दरार डालने का कुत्सित अभियान चल रहा है। गडकरी ने ट्वीट कर कहा, 'मैंने पिछले कुछ दिनों में लक्ष्य किया है कि कुछ विपक्षी दल और मीडिया का एक हिस्सा मेरे बयानों को तोड़-मरोड़ कर और संदर्भ से काट कर पेश करता है, ताकि मेरी और मेरी पार्टी की छवि ख़राब की जा सके।' उन्होंने एक के बाद एक तीन ट्वीट किए।
In the last few days, I have noticed a sinister campaign by some opposition parties and a section of the media to twist my statements and use them out of context and draw politically motivated inferences to malign me and my party.
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) December 23, 2018
उन्होंने यह भी कहा, 'मैंने पहले भी इस तरह के झूठे प्रचार का कड़े शब्दों में विरोध किया था। मैं एक बार फिर अपने बयानों को संदर्भ से काट कर पेश करने की कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूं।'
I have time and again strongly refuted such insinuations and once again condemn all these malafide and mischievous out of context reports attributed to me.
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) December 23, 2018
गडकरी ने इसी विषय पर अपने तीसरे ट्वीट में कहा, 'मैं यह बिल्कुल साफ़ कर दूं कि मेरे और बीजेपी नतृत्व के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी। मैं अलग-अलग मंचों से अपनी बात कहता आया हूं और विरोधियों की घिनौनी कोशिशों का भंडाफोड़ करता रहूँगा।'
Let me make it clear once and for all that conspiracies to create a wedge between me and the BJP leadership will never succeed.
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) December 23, 2018
I have been clarifying my position at various forums and shall continue to do so and expose these nefarious designs of our detractors.
गडकरी की सफ़ाई अपनी जगह है, लेकिन पिछले कुछ समय से गडकरी को लेकर लगातार तरह-तरह की चर्चाएँ चलती रही हैं। इन चर्चाओं को गडकरी के पिछले कुछ बयानों से जोड़ कर देखा जाता रहा है। गडकरी ने आज के अपने तीन ट्वीट में शायद अपने ताज़ा कथित बयान और पिछले बयानों का सन्दर्भ भी लिया है। लेकिन पाँच राज्यों में बीजेपी की हार के बाद महाराष्ट्र से संघ के एक बड़े नेता किशोर तिवारी की चिट्ठी के कारण इन चर्चाओं ने और हवा पकड़ी। गडकरी के लगातार ऐसे बयान क्यों आ रहे हैं? अभी इसी हफ़्ते लिखी गई किशोर तिवारी की चिट्ठी के निहितार्थ क्या हैं? और उसके बाद गडकरी का ताज़ा कथित बयान, जिसे वह 'तोड़-मरोड़ कर और सन्दर्भ से काट कर छापा गया' बता रहे हैं। क्या ये सब संयोग है? क्या मीडिया वाक़ई लगातार उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर ही पेश कर रहा है? या फिर संघ और बीजेपी में भीतर ही भीतर कुछ खदबदा रहा है?
मामला क्या है, हम आपको सिलसिलेवार ढंग से बताते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुुताबिक़, गडकरी ने पुणे के एक सहकारी बैंक के कार्यक्रम में गडकरी ने कहा, 'नेतृ्त्व को हार और नाकामियों की ज़िम्मेदारी भी लेनी चाहिए।'
मीडिया रिपोर्टों के मुुताबिक़, नितिन गडकरी ने कहा, 'सफलता के कई पिता होते हैं, पर असफलता अनाथ होती है। कामयाब होने पर उसका श्रेय लेने के लिए कई लोग दौड़े चले आते हैं, पर नाकाम होने पर लोग एक दूसरे पर अंगुलियां उठाते हैं।'
मीडिया रिपोर्टो्ं के मुुताबिक़, गडकरी ने कहा, 'राजनीति में नाकामी पर एक कमिटि गठित कर दी जाती है, पर कामयाब होने पर कई आपसे पूछने नहीं आता है।' हालाँकि गडकरी ने बीजेपी या नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया। पर वे सफलता या नाकामी के किसी व्याख्यानमाल में भी नहीं बोल रहे थे। वे एक राजनेता हैं और उनके बयान के राजनीतिक अर्थ होने चाहिए। यह तब बढ़ जाता है जब पार्टी तीन राज्यों में सत्ता से बाहर हो चुकी हो, मंत्री समेत उसके कई उम्मीदवार हारे हों। गडकरी के कहे की अहमियत तब और बढ़ जाती है जब वे इसके पहले भी कई बार विवादास्पद बयान देकर पार्टी को मुसीबत में डाल चुके हों। वे इसके पहले प्रधानमंत्री पर कई बार तंज़ कर चुके हैं।
गडकरी का यह बयान विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी के किसी नेता का पहला बयान है जिसमें हार के लिए किसी को ज़िम्मेदारी लेने की बात कही गई है। इससे यह संकेत भी मिलता है कि बीजीपे बाहर से चाहे जो कहे, अंदर ही अंदर कुछ पक रहा है और लोग अब मोदी के नेतृत्व पर सवाल करने लगे हैं।
गडकरी का यह बयान इसलिए भी अहम है कि कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र के बड़े किसान नेता किशोर तिवारी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को लिखी एक चिट्ठी में कहा था कि मोदी और अमित शाह के तानाशाही रवैये की वजह से ही देश में दहशत का माहौल है। अब देश को गडकरी जैसे एक नरमदिल और सर्वस्वीकार्य नेता की ज़रूरत है, जो सब तरह के विचारों और मित्र दलों को साथ लेकर चल सके, आम राय बना सके और लोगों के मन से भय निकाल सके। गडकरी उस नागपुर के हैं, जहाँ आरएसएस का मुख्यालय है। उनके संघ से नज़दीकी रिश्ते भी हैं। इसलिए यह सवाल उठता है कि कहीं आरएसएस मोदी को दरकिनार कर गडकरी पर तो दाँव खेलना नहीं चाहता। गडकरी का यह बयान इस शक को पुख़्ता ही करता है।
गडकरी पार्टी नेतृत्व को असुविधा में डालने वाले बयान पहले भी दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि नौकरी के मौके ही नहीं बन रहे हैं तो आरक्षण की माँग करने का कोई मतलब नहीं है। यानी, केंद्रीय मंत्री ने यह माना था कि मोदी सरकार नौकरी के नए मौके बनाने में नाकाम रही है। नोटबंदी के समय भी गडकरी ने यह माना था इससे छोटे और मझोले उद्योगों को दिक्क़त होगी। नितिन गडकरी विवादों के केंद्र मे तो रहे हैं, पर इस बार उन्होंने मानो दुखती रग पर हाथ रख दिया है। गडकरी नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते रहते है। उन्होंने एक बार कह दिया था, 'चुनाव के पहले तो वायदे किए ही जाते हैं। हमें 2014 यह उम्मीद नहीं थी कि हम जीत ही जाएंगे, इसलिए हमने बढ़ चढ़ कर ढेर सारे वादे कर दिए थे।' वे एक तरह से मोदी पर ही तंज कर रहे थे।
नेतृत्व कोे हार की ज़िम्मेदारी लेने की बात गडकरी ऐसे समय कह रहे हैं जब बीजेपी तीन राज्यों में चुनाव हार चुकी है और यह कहा जा रहा है कि आरएसएस नए विकल्प की तलाश में है।
विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और मंत्रियों ने कहा था कि ये नतीजे मोदी सरकार के कामकाज पर हुआ जनमत संग्रह नहीं है। मीडिया रिपोर्टो्ं के मुुताबिक़, गडकरी ने कहा, 'नेतृत्व की यह प्रवृत्ति होनी चाहिए कि वह हार और नाकामी की जिम्मा भी ले। जब तक वह ऐसा नहीं करता, संगठन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता साबित नहीं हो सकती।'
मीडिया रिपोर्टो्ं के मुुताबिक़, गडकरी ने कहा कि यदि कोई उम्मीदवार हारता है तो इसका अर्थ यह है कि या तो वहां पार्टी कमज़ोर है या वह उम्मीदवार लोगों का भरोसा जीतने में नाकाम रहा है। ऐसा कह कर गडकरी एक तरह से नेतृत्व को यह कहना चाहते हैं कि इन जगहों पर पार्टी लोगों का भरोसा नहीं जीत सकी है।
गडकरी का यह बयान ऐसे समय आया है जब बीजेपी के उम्मीदवार उन जगहों पर हारे हैं जहां पार्टी की सरकार चल रही थी। उनके कई मंत्री हार गए, छत्तीसगढ़ में तो उनके सबसे ज़्यादा मंत्री हारे जबकि वहां पार्टी जीत की उम्मीद लगाए बैठी थी।
मीडिया रिपोर्टो्ं के मुुताबिक़, गडकरी ने कहा, 'कोई उम्मीदवार हारने के बाद तरह-तरह के बहाने बनाता है, कहता है कि उसे समय पर पोस्टर नहीं मिले, वगैरह वगैरह। पर मैंने तो एक बार एक हारे हुए उम्मीदवार से कह दिया, तुम इसलिए हार गए कि तुममें या तुम्हारी पार्टी मे कोई कमी रही होगी'। तो क्या गडकरी पार्टी नेतृत्व से यह कहना चाहते हैं कि बहाने मत बनाओ, हार की बात मान लो? इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।