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मोदी युग का अमृतकाल- 60 फीसदी आबादी 6 किलो अनाज पर निर्भर 

मोदी युग का अमृतकाल- 60 फीसदी आबादी 6 किलो अनाज पर निर्भर 

मोदी सरकार के विकास के तमाम दावों के बीच 80 करोड़ भारतीय आबादी सरकार से मिलने वाले प्रति माह 6 किलो राशन पर निर्भर है और यही मोदी युग का अमृतकाल है। 

देश का मौजूदा सच तो यही है कि करीब 80 करोड़ जनता यानी 60 फीसदी आबादी राशन के 6 किलो प्रति महीने मिलने वाले अनाज पर निर्भर है। इस सच का दावा मोदी सरकार ही कर रही है। और अगर सच यही है तो इस सरकार को सबसे पहले तो यह घोषणा करनी चाहिए कि देश की हालत नाजुक है ,विकास के सारे दावे झूठे हैं और सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। लेकिन क्या सरकार के पास इतनी आत्मशक्ति है ? जिस देश की 80 करोड़ जनता सरकारी कल्याणकारी योजना राशन के दम पर पेट पालने को अभिशप्त हो उस देश की सरकार के लिये ये शर्म की बात है ! 

यह सच है कि देश में अब किसी की भूख से मौत न के बराबर होती है लेकिन इसका दूसरा पहलू  ये भी है कि भीख के अनाज [सरकारी राशन ] को अगर बंद कर दिया जाए तो मौजूदा समय का जो सच है उसमे बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो सकती है। क्योंकि लोगो के पास खाने के लिए कोई दूसरा जुगाड़ भी नहीं है।  तो ऐसे में इस सरकार से पूछा जाना चाहिए कि पिछले लगभग आठ साल में उसकी उपलब्धि क्या रही है ? 

गायब हुए मुद्दे 

पिछले आठ सालों [ तीन महीने बाद मोदी सरकार आठ साल की होगी ] में इस सरकार के फैसले, इसकी नीतियां और सरकार के दंश को भारत की मीडिया बखूबी खुलासा कर सकती थी लेकिन गुलाम मीडिया में अब ताकत कहा ? विकास के शोर शराबे में विकास कहा है इसे अब कौन ढूंढे ! असली मुद्दों के सामने नकली मुद्दे हावी कर दिए गए। भक्तो की बड़ी टोली तैयार की गई। धर्म, जाति, हिन्दू और मुसलमान -पकिस्तान से जुड़े एजेंडे तैयार किये गए। इन नकली मुद्दों के सामने गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, असुरक्षा, शिक्षा और दवाई जैसे मुद्दों की तिलांजलि दे दी गई। 

विकास के नारे तो खूब लगे लेकिन असली खेल तो मॉब लिन्चिंग, नमाज पर विवाद, गाँव और शहरों के नाम बदलने की कहानी और फिर हिजाब का गन्दा खेल। 28 सितंबर 2015 से 7 जून 2019 तक घटनाओं पर नजर डालिये तो पता चलता है कि इन चार सालों में ही मॉब लिन्चिंग के नाम पर 141 लोगों की जाने चली गई। देश के अलग -अलग इलाकों में इस तरह की घटनाएं घटती गई लेकिन सरकार मौन ही रही।

 - Satya Hindi

मॉब लिन्चिंग     

बता दें कि जिन 141 लोगों की जान मॉब लिन्चिंग में गई थी उनमे  70 मुसलिम तो 71 ग़ैर मुसलिम भी हैं। आंकड़े बताते हैं कि भीड़ ने न हिंदू को छोड़ा और न मुसलिम को। 2018 में सबसे ज्यादा 61 लोगों की हत्या हुई। यह ब्योरा अलीगढ़ के स्टेप्स फाउंडेशन ने जुटाया है। 

भीड़ द्वारा पीटकर हत्या करने का सबसे बड़ा आंकड़ा गुजरात और राजस्थान का है। बेशक इसकी शुरुआत यूपी के दादरी से हुई थी लेकिन भीड़ के हाथों अब तक सबसे ज्यादा 15-15 मौतें गुजरात और राजस्थान में हुई हैं। 

मोदी जी ने तो कहा था कि हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे। ऐसे में अभी तक तो 14 करोड़ युवाओं को रोजगार मिलना चाहिए था। लेकिन इस पर वे कुछ बोलते नहीं।

बेरोजगारी का हाल

पिछले महीने सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने भारत में बेरोजगारी का आंकडा जारी किया। रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोजगारी का आंकड़ा 7.4% था। सितंबर-दिसंबर 2021 के आंकड़ों के मुताब‍िक दूसरे राज्‍यों के मुकाबले हरियाणा में बेरोजगारों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा है। 34.1% बेरोजगारी दर के साथ हरियाणा इस सूची में पहले पायदान पर है। वहीं, इस सूची में दूसरे स्‍थान पर राजस्‍थान है और तीसरे पर झारखंड। दोनों राज्‍यों में बेरोजगारी दर क्रमश: 27.1% और 17.3% है। जबकि बिहार 16% और जम्मू-कश्मीर 15% बेरोजगारी दर के साथ चौथे और पांचवे स्‍थान पर हैं।  

    

इस आंकड़े पर चिंता करें इससे पहले यह भी जान लीजिए कि बेरोजगारी का यह आंकड़ा रोजगार बाजार की सही तस्वीर हमे नहीं दिखाता। खैर सीएमआईई के मुताबिक जहाँ देश में रोजगार की दर 38 फीसदी है वही दुनिया के अन्य देशो का आंकड़ा भारत सरकार को लज्जित नहीं करता। 

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में रोजगार दर का औसत 2020 में 55 फीसद है। कोविड से पहले यह 58 फीसद था। आस-पड़ोस वाले भी इस मामले में बेहतर दिख  हैं।  चीन में इम्प्लॉयमेंट रेट 63 फीसद है। बांग्लादेश में 53 और पाकिस्तान में 48 फीसदी। 

आज की तुलना में जितने भारतीयों के पास रोजगार है, 2013 में उससे पांच करोड़ अधिक भारतीयों के पास रोजगार था। वैसे इस दौरान 12 करोड़ और लोग काम करने लायक हो गए या कार्यबल में शामिल हुए हैं। देश में महामारी का प्रकोप शुरु होने से पहले ही ये नौकरियां गायब हो चुकी थीं। काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले 15 वर्ष या अधिक उम्र के भारतीयों की संख्या अमेरिका, चीन, बांग्लादेश या पाकिस्तान की तुलना में प्रतिशत के रूप में काफी कम हुई है। 2014 के बाद से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में नौकरियां कम हुई हैं, जबकि कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। मनरेगा के मद में होने वाला खर्च 2020 में 2014 के मुकाबले चार गुना तक पहुंच गया और अभी भी इसमें काम की मांग बनी हुई । यानी लोग काम तो करना चाहते हैं लेकिन नौकरी या रोजगार है नहीं।

       

लेकिन सरकार कहती है कि देश में सब जय -जय है और सबसे अमीर पार्टी और सबसे मजबूत संगठन के बाद भी पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह वोट के लिए नाचते फिर रहे हैं। 

80 करोड़ भारतीय आबादी सरकार से मिलने वाले प्रति माह 6 किलो राशन पर निर्भर है और यही मोदी युग का अमृतकाल है। 

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