दसॉ से रफ़ाल लड़ाकू जहाज़ ख़रीदने से जुड़ी ख़बर का फ्रांस सरकार की ओर से खंडन करने के बाद यह विवाद और गहरा हो गया है। भारत में फ्रांसीसी राजदूत अलेक्जेंडर जिगलर ने बुधवार को कहा कि नया क़रार पहले से तय रफ़ाल विमानों का नया वर्जन विकसित करने को लेकर है और इसके लिए कंपनी को 2.2 अरब यूरो अलग से देने की बात तय हुई है। क़रार नए विमान ख़रीदने को लेकर नहीं है।
लेकिन इससे विवाद थमने के बजाय और बढ़ गया है। फ्रांस सरकार ने नए वर्जन के लिए पैसे देने की बात तो कह दी, पर उसने यह नहीं बताया कि इसके बाद रफ़ाल की क्या क़ीमत होगी। भारत में रफ़ाल एक ज़बरदस्त राजनीतिक मुद्दा बन चुका है और विपक्षी दलों ने नरेद्र मोदी सरकार पर अनिल अंबानी की कंपनी को ग़लत तरीके से फ़ायदा पहुँचाने के आरोप लगा रखे हैं।
सुरक्षा मामलों की अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट 'डिफेंसन्यूज. कॉम' ने मंगलवार को यह ख़बर दी थी कि फ्रांस की सरकार ने 2.2 अरब यूरो में 28 रफ़ाल एफ-4 ख़रीदने के लिए दसॉ कंपनी से क़रार किया है। इसके बाद भारत में यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। यह ख़बर आग की तरह फ़ैल गई कि नरेंद्र मोदी सरकार ने जितने पैसे में रफ़ाल 3 खरीदने का क़रार किया, उससे कम पैसे में वहां की सरकार ने उससे उन्नत और बेहतर साजो सामान से लैस जहाज़ खरीदने का क़रार कर लिया है। सवाल यह भी उठा कि आख़िर वह पैसा किसकी जेब में जा रहा है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार पर तीखा हमला बोल दिया। पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कहा गया, जहां भारत 36 रफ़ाल विमान के लिए 7.8 अरब डॉलर दे रहा है, फ्रांस ने 28 अपग्रेडेड रफ़ाल के लिए 2.2 अरब यूरो का क़रार किया है। क्या एनटायर पॉलिटिकल साइन्स में एम. ए. करने वाला गणित का सवाल सुलझाएगा' हालांकि प्रधानमंत्री का नाम नहीं लिया गया है, पर यह तंज उन्हीं को लेकर है क्योंकि उन्होंने 'एनटायर पॉलिटिकल साइन्स' में एम. ए. करने की बात कही थी और उस पर विवाद हुआ था।
'मैं सीईओ हूँ, झूठ नहीं बोलता'
भारत के साथ रफ़ाल सौदे के बचाव में फ़्रांस की सरकार पहले भी शामिल होती रही है। जब फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कैमरे पर स्वीकार किया था कि अनिल अंबानी के ऑफ़सेट पार्टनर के रूप में चुनाव के लिए उन पर मोदी सरकार का ज़बरदस्त दबाव था और उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। तब फ़्रांसीसी सरकार से लेकर दसॉ के सीईओ समेत सभी ने इसका बचाव करने के लिए बयान दिए थे। यहाँ तक कि दसॉ कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने व्यक्तिगत गारंटी लेते हुए कहा था, 'मैं सीईओ हूँ और मैं झूठ नहीं बोलता।'
उन्नत विमान, बेहतर उपकरण
ख़बरों में यह कहा गया था कि फ़्रांस जो रफ़ाल ख़रीद रहा है वह तकनीक में एफ़-4 वर्ज़न के क़रीब है। मोदी सरकार ने जो सौदा किया है वह एफ़3-आर यानी पूरी आधी पीढ़ी पीछे है। सवाल है कि एफ़-4 मॉडल में एफ़-3-आर से ज़्यादा क्या-क्या है। एफ़-4 में रडार सेन्सर्स एफ़-3-आर से बहुत आगे के हैं। दुश्मन के रडार सेन्सर को जाम करने की क्षमता वाले हैं, इसमें पायलट के हेलमेट डिस्प्ले में भी क्षमता काफ़ी बढ़ा दी गई है। नये शस्त्र जैसे एमबीडीए, की हवा से हवा में मार करने वाली माइका एनजी मिसाइल और एएएसएम हवा से ज़मीन पर मार करने वाला हथियार है, 1000 किलो मारक क्षमता के साथ और फिर इसमें थेल्स का बनाया बहुउपयोगी ऑपट्रोनिक पॉड भी है।
एफ़-4 मॉडल नयी स्कैल्प मिसाइल्स को ले जाने की क्षमता भी रखता है। आसान भाषा में बोलें तो इन विमानों की क्षमता मोदी के ख़रीदे रफ़ाल एफ-3-आर से सीधे-सीधे दुगुनी है। इन चीज़ों में से रफ़ाल एफ़-3-आर मॉडल में कुछ भी नहीं है।
- क़तर ने यही लड़ाकू विमान ख़रीदा, प्रशिक्षक पायलट और 100 से ज़्यादा मैकेनिक्स के साथ, क़रीब 700 करोड़ प्रति लड़ाकू जहाज़ की दर पर। मिस्र ने ख़रीदा, उसे भी सौदा कुछ उतने में ही पड़ा। भारत जब ख़ुद भारतीय वायु सेना की बताई कम-से-कम ज़रूरत पर 126 जहाज़ ख़रीद रहा था तब भी क़ीमत कुछ इतनी ही पड़ रही थी- वह भी तकनीक स्थानांतरण के साथ, जिसका अर्थ होता रफ़ाल का भारत में बनना।
800 करोड़ प्रति विमान किसकी जेब में
ख़ुद मोदी सरकार के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने 13 अप्रैल 2015 को दूरदर्शन को दी एक इंटरव्यू में कहा था, 'रफ़ाल काफ़ी महँगा है। जैसे-जैसे आप ऊपर जाते हैं, क़ीमत भी ऊपर जाती है। जब आप 126 लड़ाकू जहाजों की बात करते हैं तब यह क़ीमत क़रीब 90,000 करोड़ रुपये हो जाती है।'
इसके बाद कई सवाल उठे थे। तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इंटरव्यू का हवाला देते हुए सवाल उठाए गए थे। कैमरे पर दिए और अब भी यू-ट्यूब से लेकर तमाम जगह मौजूद इस साक्षात्कार के मुताबिक़, तब तकनीक स्थानांतरण और उत्पादन संसाधन दोनों में दसॉ एविएशन के निवेश के बावजूद एक रफ़ाल ज़्यादा से ज़्यादा 714 करोड़ रुपए का पड़ रहा था। आख़िर में मोदी के दिए 1600 करोड़ से आधे से भी कम में। मनोहर पर्रिकर जैसे-जैसे ऊपर जाने की बात का ज़िक्र कर रहे थे उससे यह भी साफ़ है कि वह पूरी तरह से हथियारों से लैस रफ़ाल की बात कर रहे थे- यानी बीजेपी और सरकार के अब के बचाव से उलट। ख़ैर, चुनावी माहौल में रफ़ाल ने एक नया विवाद फिर पैदा कर दिया है।