डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख सारस्वत के बदले सुर
डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख विजय कुमार सारस्वत के सुर अब पूरी तरह बदले हुए हैं। डिफ़ेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन यानी (डीआरडीओ) के तत्कालीन प्रमुख विजय कुमार सारस्वत ने 2012 में इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में इस बात को स्वीकार किया था कि भारत के पास ऑर्बिट में किसी सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता है। सारस्वत वर्तमान में नीति आयोग के सदस्य हैं।
तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख ने कहा था कि एंटी सैटेलाइट सिस्टम को लेकर जो तैयारियाँ होनी चाहिए, वे पूरी हैं। सारस्वत ने कहा था कि भारत के एंटी सैटेलाइट सिस्टम को ‘फ़ाइन ट्यून’ किए जाने की ज़रूरत है लेकिन वह इसके लिए टेस्ट का रास्ता नहीं चुनना चाहते क्योंकि टेस्ट में तबाह हुई सैटेलाइट के टुकड़ों से दूसरे सैटेलाइट्स को ख़तरा पैदा हो सकता है।
लेकिन अब पूर्व डीआरडीओ प्रमुख के सुर पूरी तरह बदल गए हैं। अब सारस्वत ने कहा है, ‘हमने यूपीए सरकार के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को देने के लिए एक प्रस्ताव बनाया था, उस दौरान इस बारे में बातचीत चल रही थी और उन्होंने हमारी सभी बातों को सुना। लेकिन हमें यूपीए सरकार से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली, इसलिए हम इस मामले में आगे नहीं बढ़ पाए थे।’
Former DRDO Chief Dr VK Saraswat on #MissionShakti: We made presentations to National Security Adviser&National Security Council, when such discussions were held, they were heard by all concerned, unfortunately, we didn't get positive response (from UPA), so we didn't go ahead. pic.twitter.com/qJDMtc3Kf2
— ANI (@ANI) March 27, 2019
सारस्वत ने यह भी कहा कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने साहस दिखाते हुए इसके लिए अनुमति दी थी और उसके बाद ही इस प्रस्ताव पर आगे काम शुरू हो सका था।
ग़ौरतलब है कि सारस्वत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 2018 के विजयदशमी कार्यक्रम में उसके नागपुर स्थित मुख्यालय गए थे। उसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें नीति आयोग का सदस्य बना दिया गया।
सारस्वत के मुताबिक़, जब डॉ. सतीश रेड्डी और एनएसए अजीत डोवाल ने प्रधानमंत्री मोदी के सामने यह प्रस्ताव रखा था तो उन्होंने इस मिशन को पूरा करने की हिम्मत दिखाई। सारस्वत ने यह भी कहा कि अगर साल 2012-13 में ही हमें इस बारे में अनुमति मिल जाती तो वह पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यह 2014-15 में ही लाँच हो जाता।
इस पूरे मामले पर विवाद तब शुरू हुआ जब कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया कि 1962 में पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित किए गए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम और इंदिरा गाँधी के द्वारा स्थापित किए गए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने हमेशा अपनी उपलब्धियों से भारत को गौरवान्वित किया है। केंद्र सरकार को लगा कि कांग्रेस इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है। इस पर केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जोरदार पलटवार किया।
जेटली ने कहा, बहुत समय से हमारे वैज्ञानिकों की ऐसा करने की इच्छा थी लेकिन उनका कहना था कि भारत सरकार उन्हें इसकी अनुमति नहीं देती। जेटली के मुताबिक़, 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी अनुमति दी और तब जाकर इस दिशा में काम शुरू हुआ।
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी के इस बारे में राष्ट्र को संदेश देने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने उन पर तीख़ा तंज कसा था। राहुल गाँधी ने सवाल पूछते हुए कहा था कि संबोधन के दौरान क्या आपने प्रधानमंत्री का चेहरा देखा। राहुल ने कहा था कि प्रधानमंत्री को पता चल गया है कि कांग्रेस अब लोगों को ‘न्याय’ देने जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष ने ने कहा था कि प्रधानमंत्री इस बात से डरे हुए हैं कि उनका समय जा चुका है। इससे पहले राहुल ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए उन्हें विश्व रंगमंच दिवस की शुभकामनाएँ दीं थीं। राहुल ने साथ ही डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से कहा था कि हमें आप पर गर्व है।
इसके बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती, एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पर वैज्ञानिकों की आड़ में राजनीति करने का आरोप लगाया था।
बता दें कि भारत ने अंतरिक्ष में बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए लो अर्थ ऑर्बिट में एक सैटेलाइट को मार गिराया है। अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइट को निशाना बनाकर उसे ध्वस्त करने की क्षमता रखने वाला भारत चौथा देश बन गया है। इस अभियान को 'मिशन शक्ति' नाम दिया गया था। अब भारत उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जिसके पास एंटी-सैटेलाइट हथियार है।