पूर्व चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिये मनोनीत किया है। राज्यसभा की कुल सदस्य संख्या 245 है, जिनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। गोगोई से पहले पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस में शामिल हुए थे और सांसद बने थे। एक और पूर्व सीजेआई पी. शतशिवम भी केरल के राज्यपाल बने थे। जस्टिस गोगोई पिछले साल नवंबर में रिटायर हुए थे।
कई अहम फ़ैसले सुनाये
गोगोई ने अपने कार्यकाल में कई अहम फ़ैसले सुनाये। गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने वर्षों से चले आ रहे राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद मामले में फ़ैसला सुनाया था। इसके अलावा लोकसभा चुनाव 2019 में सरकार और विपक्ष के बीच चुनाव का मुद्दा बने रफ़ाल लड़ाकू विमान के सौदे में कथित गड़बड़ी के मामले में भी रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने फ़ैसला सुनाया था।
गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सीजेआई दफ़्तर को आरटीआई यानी सूचना का अधिकार क़ानून के दायरे में लाये जाने का फ़ैसला भी सुनाया था। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि सीजेआई दफ़्तर पब्लिक अथॉरिटी है। इस बेंच में रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एन. वी. रमन्ना, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना भी थे।
यौन उत्पीड़न का लगा था आरोप
रंजन गोगोई पर सीजेआई दफ़्तर में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर चुकी एक महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महिला ने बीते साल 19 अप्रैल को लिखे एक शिकायती पत्र में आरोप लगाया था कि गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो कई बार उसका तबादला किया गया और उसे कई अन्य तरह से परेशान किया गया। महिला के मुताबिक़, 21 दिसंबर, 2018 को उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया था। महिला के पति और देवर को दिल्ली पुलिस की नौकरी से निलंबित कर दिया गया था। हालांकि बाद में उन्हें नौकरी पर बहाल कर दिया गया था।
यौन उत्पीड़न के आरोपों के सामने आने के बाद तत्कालीन सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’ गोगोई ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश क़रार दिया था।