सीबीएसई ने एक खास मकसद के तहत दसवीं क्लास की किताबों से कई चैप्टर हटा दिए। ये चैप्टर भारत की विविधता, उसके संघर्ष के बयान करते थे। कई दशक से पढ़ाए जा रहे प्रसिद्ध उर्दू शायर फैज अहमद की कविताओं के अंश भी इसका शिकार हुए, जिन्हें दसवीं क्लास की किताब से हटाया हैं। लोकतंत्र और विविधता, सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स, शीत युद्ध और गुटनिरपेक्ष सम्मेलन, मैथ्स से जुड़े चैप्टर भी हटाए गए हैं। सीबीएसई ने इन्हें हटाने का कारण नहीं बताया है। लेकिन ये ऐसा यक्ष प्रश्न नहीं है जो किसी को समझ में नहीं आएगा।
केंद्र में बीजेपी की सरकार है। विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी सभी सरकारी संस्थाओं में चीजों को अपनी विचारधारा के अनुसार लागू कर रही है। शिक्षा चूंकि समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए इसमें भी बीजेपी अपनी पंसद और अपनी विचारधारा के हिसाब से हर चीज को पढ़ाना चाहती है। खासकर वो इतिहास को ही बदलना चाहती है।
सीबीएसई के छात्र कई दशक से एनसीईआरटी की कक्षा 10 की किताब में "डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स II" के "धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति - सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्ष राज्य" खंड में फैज़ अहमद फैज़ की उर्दू में दो कविताओं के अनुवादित अंशों को पढ़ा है। लेकिन उस शायरी को सीबीएसई के 2022-23 शैक्षणिक पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है। नया पाठ्यक्रम गुरुवार को जारी किया गया।
सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम के लिए कहा गया है कि धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति खंड पाठ्यक्रम सामग्री का हिस्सा बना रहेगा - लेकिन पेज 46, 48, 49 को छोड़कर। इन्हीं पेज में फैज़ साहब की कविता और पोस्टर हैं। उसमें एक राजनीतिक कार्टून भी है। जो सभी धर्मों को लड़ाकर राज करने वाले राजनीतिक दलों पर कटाक्ष है। फ़ैज़ की कविता के साथ एक पोस्टर एनजीओ अनहद ने जारी किया था, जिसके सह-संस्थापकों में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी और हर्ष मंदर हैं।
साहित्यिक वेब पोर्टल रेख़्ता के अनुसार, जिस कविता से ये छंद लिए गए थे, उसकी रचना फैज़ ने उस समय की थी, जब उन्हें लाहौर की एक जेल से जंजीरों में जकड़ कर एक डेंटिस्ट के दफ्तर में एक तांगे में ले जाया जा रहा था, जो उनसे परिचित थीं। वो मशहूर नज्म है - आज बाजार में पा बा जोला चलो...। दूसरी कविता थी - ढाका से वापसी पर। फ़ैज़ ने यह कविता 1974 में ढाका की अपनी यात्रा के बाद लिखी थी।
जिस कॉर्टून को हटाया गया, वो द टॉइम्स ऑफ इंडिया में छपा अजित नाइन का कॉर्टून था। जिसमें धार्मिक प्रतीकों से सजी एक खाली कुर्सी दिखाई गई है। उस पर कैप्शन दिया गया है: यह कुर्सी मनोनीत मुख्यमंत्री के लिए अपनी धर्मनिरपेक्ष साख साबित करने के लिए है ... बहुत कुछ होगा!सीबीएसई ने पाठ्यक्रम से "लोकतंत्र और विविधता" पर अध्याय भी हटाए हैं। ये चैप्टर छात्रों को भारत सहित दुनिया भर में जाति और जाति की तर्ज पर सामाजिक विभाजन और असमानताओं की अवधारणा से परिचित कराते थे। इन चैप्टरों के नाम थे - लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन, लोकतंत्र के लिए चुनौतियां। ये दोनों चैप्टर लोकतांत्रिक राजनीति में सुधार पर छात्रों की समझ को आगे बढ़ाते थे, उन्हें सोचने के लिए प्रेरित करते थे। जिन चैप्टरों और अन्य सामग्री को सीबीएसई ने हटाया है, उन्हें 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के संशोधन के बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के दिवंगत प्रोफेसर हरि वासुदेवन की अध्यक्षता में एक समिति ने तैयार किया था।
इसके अलावा, 11वीं क्लास के इतिहास पाठ्यक्रम की सामग्री से "सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स" पर एक अध्याय हटाया गया है। यह एफ्रो-एशियाई क्षेत्रों में इस्लामी साम्राज्यों के उदय और अर्थव्यवस्था और समाज के लिए इसके प्रभाव से संबंधित है। इस चैप्टर को नहीं पढ़ने वाले छात्र अब अब यह नहीं जान पाएंगे कि इस्लाम धर्म की स्थापना कैसे और क्यों हुई। पैगंबर कौन थे, उन्होंने क्या किया था, सूफीवादी परंपरा क्या थी।
12वीं कक्षा के राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से "शीत युद्ध युग और गुटनिरपेक्ष आंदोलन" पर अध्याय हटा दिया गया है। दरअसल इस चैप्टर में शीत युद्ध के दौरान भारत का रूस के साथ खड़े होना और इंदिरा गांधी द्वारा अमेरिका के खिलाफ शुरू किए गए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बारे में स्टूडेंट्स को बताता था। यह जवाहर लाल नेहरू के समय से शुरू हुए इतिहास को भी जोड़ता था। मैथ्स तर्कों पर आधारित एक यूनिट को भी कक्षा 11 के पाठ्यक्रम से हटाया गया है। देश के तमाम शिक्षाविदों, एक्टिविस्टों और विपक्षी नेताओं ने सीबीएसई की इस मनमानी पर आपत्ति प्रकट की है।