कल से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और अभी उम्मीदवार भी तय नहीं
देश में पहाड़ों पर बर्फवारी से तापमान गिरकर 20 डिग्री सेल्शियस पर आ गया है लेकिन देश के मैदानी राज्यों में विधानसभा चुनावों की गर्माहट तेज हो गयी है। पारा दिन-ब-दिन बढ़ता दिखाई दे रहा है। राजस्थान में भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे को मना लेने के दावे किये जा रहे हैं, वहीं मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में कहीं बगावत जारी है तो कहीं मान-मनव्वल। उधर मिजोरम जाने के लिए भाजपा को कोई चंद्रयान नहीं मिल रहा है। अभी तक मिजोरम में चुनावी माहौल ठंडा बना हुआ है।
पहाड़ों का मौसम बदलता है तो मैदानों का मौसम अपने आप बदलने लगता है, लेकिन इस बार बर्फवारी के बावजूद मैदानों में चुनावी सरगर्मियां देखने लायक है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीतने के लिए भाजपा हाईकमान को जहाँ रूठों को मनाने में पसीना आ गया वहीं मध्यप्रदेश में अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए भाजपा हाईकमान को एड़ी -चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। कांग्रेस को राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता बचाना है जबकि मध्यप्रदेश और तेलंगाना में सत्ता हासिल करना है।
मिजोरम के बारे में कोई भी दल बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है। मध्यप्रदेश में भाजपा से सत्ता हासिल करने के लिए एक बार फिर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी आखरी दांव लगा रही है। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के लिए एक लंबा-चौड़ा वचन-पत्र जारी किया है। जिसमें 59 मुद्दों पर 1250 वचन दिए गए हैं। कांग्रेस ने इस बार भाजपा सरकार की योजनाओं के नाम बदलने के साथ ही लगभग हर योजना में दी जाने वाली सहायता को बढ़ा दिया है। अगर कांग्रेस अपने वचन-पत्र को मतदाताओं तक पहुंचा पाने में कामयाब रही तो यकीन जानिये कि भाजपा के लिए सत्ता में बने रहना कठिन हो जाएगा। वैसे भी भाजपा खरीदे हुए जनादेश के सहारे प्रदेश की सत्ता में है।
भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि 2003 के प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसी हो गयी है। वे भी अब भाजपा और प्रदेश के लिए बंटाधार साबित हो रहे हैं। प्रदेश में सड़कों और बिजली की दुर्दशा शिवराज सिंह सरकार पर भारी पड़ रही है। शिवराज पिछले विधानसभा चुनाव में कमलनाथ, दिग्विजय और महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया से लड़े थे, इस बार उन्हें कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी के अलावा अपनी ही पार्टी की मोदी-शाह की जोड़ी से भी जूझना पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अभी तक नाराज हैं। उनके जिन समर्थकों के टिकट कटे हैं उन्हें बहन मायावती अपनी पार्टी का टिकट दे रही हैं। समाजवादी पार्टी ने भी चुनाव मैदान में खम ठोक दिए हैं। इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। आम आदमी पार्टी अभी तक अपने लिए कोई जगह नहीं बना पायी है।
मध्यप्रदेश में कल तक चुनावी रण में सबसे ज्यादा मुस्तैद दिखाई दे रही कांग्रेस के दोनों बड़े नेताओं की बदजुबानी बना-बनाया खेल बिगाड़ती दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इस विधानसभा चुनाव के जरिये अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटों को सौंप देने पर आमादा हैं। पुत्र मोह में ये दोनों नेता पार्टी के नेता राहुल गांधी की कोशिशें को भी पलीता लगा दें तो कोई बड़ी बात नहीं है। कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी युगों पहले बदल चुका है किन्तु आज के मध्यप्रदेश में कांग्रेस की पहचान दो बूढ़े बैलों की जोड़ी से ही है।
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह अपने जीवन के अमृतकाल में हैं। इस जोड़ी की सबसे बड़ी बाधा ज्योतिरादित्य सिंधिया तीन साल पहले ही कांग्रेस के खेत-खलिहान छोड़कर भाजपा के साथ हो लिए थे।
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू जनता के सर से उतारने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी ने सरे कस-बल लगा लिए हैं। भाजपा के लिए अशोक गहलोत से बड़ी चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की बगावत थी, लेकिन आखिर-आखिर में हाईकमान उन्हें शांत करने में कामयाब होता दिखाई दे रहा है। राजे की नाराजगी भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती है।
राजस्थान में अशोक गहलोत को यदि किसी के नेतृत्व में हराया जा सकता है तो वे सिर्फ और सिर्फ वसुंधरा राजे ही हैं। राजे को आईना दिखाने के लिए भाजपा हाईकमान ने जयपुर राजघराने की दीया सिंह को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन पासा उलटा पड़ा। राजस्थान में भी मध्यप्रदेश की तरह इस बार अनेक केंद्रीय मंत्री और संसद लड़ रहे हैं। मजा तो तब आता जब भाजपा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी विधानसभा चुनाव में आजमा लेती।
ख़ास बात ये है कि प्रत्याशियों के नामों की घोषणा में कांग्रेस बहुत ज्यादा पिछड़ गयी है। अभी राजस्थान में कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची की ही घोषणा नहीं हुई है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बेफिक्र होकर चुनाव लड़ रही है। यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच पिछले चुनाव में ही जो फासला बना था उसे पाटना भाजपा के लिए आसान नहीं है। कोई जादू ही इस फासले को पाट सकता है।
छत्तीसगढ़ कहने को राजस्थान और मध्यप्रदेश के मुकाबले एक छोटा राज्य है किन्तु इस राज्य में कांग्रेस की सरकार ने जो कर दिखाया है वो एक महत्वपूर्ण बात है। मध्यप्रदेश और राजस्थान से भिन्न है छत्तीसगढ़ का तापमान। सुदूर दक्षिण के तेलंगाना में भी सत्तारूढ़ केसीआर के लिए इस बार अपनी सल्तनत बचाना आसान नहीं दिखाई दे रहा। यहां केसीआर अपने कुनबे को बचाने के फेर में अपनी सरकार गंवाने जा रहे हैं। तेलंगाना में भाजपा के लिए न पहले कोई गुंजाइश थी और न अब दिखाई दे रही है।
मिजोरम को तो फिलहाल जाने ही दीजिये। विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशियों के नामों की घोषणा का काम भाजपा और कांग्रेस अभी तक पूरा नहीं कर पायी हैं जबकि कल से नामांकन भरने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाएगी। मुझे न जाने क्यों लगता है कि कांग्रेस और भाजपा नाम वापसी के दिन तक प्रत्याशियों के नामों का अंतिम फैसला कर पाएंगी। इन विधानसभा चुनावों को लेकर आम मतदाता में अभी अपेक्षित सुगबुगाहट पैदा नहीं हुई है, हालांकि अब शहरों और गांवों में होर्डिंग और बैनर उग आये हैं। प्रत्याशियों ने अपना जन सम्पर्क आरम्भ कर दिया है। राजनीतिक दलों का पैसा बहता नजर आने लगा है।
(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)