दिल्ली का एक्यूआई रविवार को 259 था। दिवाली के दिन यह 312 तक पहुँच गया और दिवाली के बाद मंगलवार सुबह कई जगहों पर यह क़रीब 350 के आसपास रहा। एक्यूआई यानी ख़राब हवा मापने का पैमाना। देखा जा सकता है कि दिवाली पर पटाखों के बाद हवा में 'ज़हर' काफ़ी ज़्यादा बढ़ गया। तो सवाल है कि ख़राब हवा की इतनी चिंता क्यों? क्यों पटाखों पर पाबंदी लगाई गई? और जब पाबंदी लगाई गई तो फिर हवा बेहद ख़राब क्यों हो गई?
ख़राब हवा की चिंता है, क्योंकि यह जानलेवा है? ख़राब हवा किस हद तक असर करती है और यह कितने लोगों की जानें लेती है, इस पर चर्चा बाद में, पहले यह जान लें कि पिछले दो दिनों में दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में हुआ क्या है।
राजधानी में पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध होने के बाजवूद दिवाली के मौक़े पर सोमवार रात को जमकर पटाखे फोड़े गए। दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा था कि दिल्ली में अगर किसी ने पटाखे फोड़े तो उसे 6 महीने की जेल की सजा और 200 रुपए का जुर्माना हो सकता है।
दिल्ली पुलिस ने पटाखे जलाने वालों पर कार्रवाई के लिए राजधानी में 210 टीमें बनाई थी जबकि राजस्व विभाग की 165 टीमें और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की 33 टीमें पटाखे जलाने वालों पर नजर रख रही थी। लेकिन पटाखे जलाए गए और हवा ख़राब हुई, लोगों को सांस लेने में दिक्कत हुई। दिल्ली और गुड़गांव में मंगलवार सुबह एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई 342 दर्ज किया गया।
ख़राब हवा से क्या साँस लेने में ही दिक्कत होती है? यदि यह इतनी भर की तकलीफ़ है तो इसको लेकर इतनी चिंता क्यों?
इसको समझने के लिए ख़राब हवा यानी वायु प्रदूषण के असर की द लैंसेट की रिपोर्ट को देखना चाहिए। इसी साल मई में 'द लैंसेट' प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित द लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ ने कहा है कि 2019 में सभी तरह के प्रदूषणों के कारण भारत में 23 लाख से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु हुई। यह दुनिया में सबसे ज़्यादा है। दुनिया भर में ऐसी 90 लाख मौतों में से एक चौथाई से अधिक भारत में हुई हैं।
इसमें भी चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि 2019 में प्रदूषण से भारत में हुई कुल मौतों में से 16.7 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण यानी ख़राब हवा ज़िम्मेदार थी। देश में उस वर्ष सभी मौतों में से 17.8% मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित उस रिपोर्ट के अनुसार किसी भी देश में वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों की यह सबसे बड़ी संख्या है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित 16.7 लाख मौतों में से अधिकांश 9.8 लाख PM2.5 प्रदूषण के कारण हुईं। अन्य 6.1 लाख घरेलू वायु प्रदूषण के कारण मौतें हुईं।
बता दें कि PM2.5 का एक्यूआई से सीधा संबंध है। एक्यूआई यानी हवा गुणवत्ता सूचकांक से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं। लेकिन स्वास्थ्य के लिए ये बेहद ख़तरनाक होते हैं। कई बार तो ये कण जानलेवा भी साबित होते हैं। 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है।
मोटे तौर पर कहें तो दो तरह के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हैं। एक तो पराली जलाने, वाहनों के धुएँ व पटाखे जलाने के धुएँ से निकलने वाली ख़तरनाक गैसें और दूसरी निर्माण कार्यों व सड़कों से उड़ने वाली धूल। इतने बड़े पैमाने पर पटाखे जलाने का मामला साल में एक बार ही आता है, लेकिन वाहनों से धुएँ निकलने या फिर निर्माण कार्यों से धूल उड़ने का मामला पूरे साल बना रहता है। पराली जलाने का मामला भी साल में दो अवसरों पर आता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सूक्ष्म कणों के लगातार संपर्क में रहने से हृदय और सांस से जुड़ी बीमारियों व फेफड़ों के कैंसर का ख़तरा होता है।
द लांसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि हालाँकि इनडोर वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आई है, लेकिन औद्योगिक प्रदूषण, जैसे परिवेशी वायु प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण के कारण मौतों में वृद्धि हुई है।