मजीठिया प्रकरण: शिरोमणि अकाली दल के लिए बड़ा संकट
शिरोमणि अकाली दल के बड़े नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर ड्रग मामले में हुई एफआईआर और लुकआउट नोटिस ने फौरी तौर पर पार्टी को बुरी तरह से बैकफुट पर ला दिया है। इसलिए भी कि सूबे के माझा इलाके की 25 विधानसभा सीटों पर शिरोमणि अकाली दल को मजीठिया पर भरोसा था। हालाँकि दोआबा में भी वह काफी सक्रिय थे। दोनों इलाकों में मजीठिया शिरोमणि अकाली दल का 'स्टार चेहरा' रहे हैं।
एक ही दिन में आलम बदल गया। पूरे पंजाब में पूछा जा रहा है कि बिक्रमजीत सिंह मजीठिया अगर बेगुनाह हैं तो एफआईआर दर्ज होते ही राज्य पुलिस की सुरक्षा छोड़कर इस मानिंद गायब अथवा लापता क्यों हो गए?
माना जा रहा है कि मजीठिया पर हाथ डालने का मतलब बादल परिवार पर हाथ डालना है। इसीलिए सबसे पहले बड़े बादल प्रकाश सिंह बादल ने आवाज बुलंद की।
मजीठिया शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं। सक्रिय राजनीति में वह 2007 में आए और आते ही माझा के सेवा सिंह सेखवां (अब दिवंगत), रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला, सुच्चा सिंह लंगाह, विरसा सिंह वल्टोहा और कैरों परिवार को किनारे लगा दिया। जो भी उनके रास्ते में आया उसे किनारे लगा दिया गया।
2012 में मजीठिया ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को लगभग 47 हजार वोटों से मात दी। प्रकाश सिंह बादल सरकार में वह कैबिनेट मंत्री बने और माझा के 'जरनैल' भी।
ड्रग्स कारोबार से जुड़ा नाम
तभी से विवादों का उनके साथ गहरा रिश्ता कायम हो गया जो पंजाब के छह हजार करोड़ के ड्रग्स कारोबार से सीधा जुड़ा। उसी की बुनियाद पर आज उन्हें बकायदा आरोपी बनाया गया है। अब अपने जरनैल के कानूनी शिकंजे में फंसने के बाद शिरोमणि अकाली दल गहरे संकट में है।
पंजाब की कांग्रेस सरकार किसी भी सूरत में बिक्रमजीत सिंह मजीठिया की गिरफ्तारी के लिए तत्पर है। हर सुराग खंगाला जा रहा है और व्यापक पैमाने पर प्रचार किया जा रहा है कि एक 'दोषी' 'फरार' हो गया।
दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के दौर में ही बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर कार्रवाई की मांग होती रही लेकिन तमाम कवायद और आयोगों के गठन के बावजूद कुछ नहीं हुआ। प्रमाण भी दिए गए।
अब अकालियों के अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह ही मजीठिया के हक में सामने आए हैं। जाहिर है कि उनको भी इस पर कई सवालों का जवाब देना होगा। मजीठिया पर एफआईआर का पूरा श्रेय पंजाब प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ले रहे हैं। सिद्धू ने मजीठिया की वजह से ही बीजेपी को अलविदा कहा था। सिद्धू डीजीपी के मामले पर भी इसलिए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से नाराज हो गये थे।
मौजूदा राज्य सरकार में तीन डीजीपी रहे और उनमें से दो ने बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के खिलाफ कोई कदम उठाने से इनकार कर दिया और नतीजतन उन्हें दरकिनार कर दिया गया।
नवजोत सिंह सिद्धू ने इसे बड़ा सवाल बना लिया और उपमुख्यमंत्री तथा गृह विभाग के मुखिया सुखजिंदर सिंह रंधावा भी (जो माझा से वाबस्ता हैं) चाहते थे कि बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को विधानसभा चुनावों से पहले जेल भेजा जाए।
बिगड़ा सियासी गणित
मजीठिया पर हुई कार्रवाई ने शिरोमणि अकाली दल का पूरा सियासी गणित बिगाड़ दिया है। मजीठिया पिछले साढ़े चार साल से माझा और दोआबा में शिरोमणि अकाली दल को फिर से सत्ता में लाने के लिए रात-दिन एक किए हुए थे।
पंजाब में इसे मजीठिया का 'पलायन' माना जा रहा है। हालांकि शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल और अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल लगातार कह रहे हैं कि यह रंजिश के तहत की गई कार्रवाई है और अकाली दल इसे चुनौती के बतौर कुबूल करता है। लेकिन इस चुनौती की जमीनी हकीकत फिलहाल तो बहुत भुरभुरी है!