जिन लोगों को यह लगता है कि घोटाले होते रहते है और अपराधी को सज़ा नहीं होती है, उन्हें याद दिलाना चाहूँगा कि ऐसा नहीं है। आज़ाद भारत में घोटालों की शुरुआत तो जीप घोटाले से 1948 में ही हो गई थी, लेकिन वह घोटाला उतना बड़ा नहीं था, जितना हरिदास मूंदड़ा घोटाला था। जीप घोटाले में 1500 जीप खरीदने का ऑर्डर दिया गया था और 9 महीने बाद भी डिलीवर नहीं हुई थी। रकम भी मामूली ही थी, प्रति जीप 300 ब्रिटिश पाउंड।, लेकिन मूंदड़ा घोटाले में रकम 1 करोड़ 20 लाख थी, जो वर्तमान में 360 करोड़ रुपए से ज्यादा की बैठती है। जब यह घोटाला हुआ, तब 1957 में सोने का दाम 95 रूपए प्रति 10 ग्राम था। आज सोना 30 हजार रूपए से अधिक प्रति 10 ग्राम है।
फ़िरोज़ का सच: क्या राहुल के दादा मुसलमान थे और उन्हें दफ़नाया गया था
6 जनवरी 2018 को कोलकाता में हरिदास मूंदड़ा की मौत हो गई, जो किसी अख़बार में शायद ही कहीं छपी हो। यह वहीं मूंदड़ा थे, जिन्होंने जीवन बीमा निगम के गठन के वक़्त भारी घोटाला किया था और उन घोटालों की गूंज संसद में लगातार सुनाई देती रहीा
जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और उनके दामाद फ़िरोज गांधी ने संसद में यह मामला बेहद तेज़ी से उठाया। फ़िरोज गांधी और जवाहर लाल नेहरू के बीच तनाव अपने चरम पर था। अंत में जवाहर लाल नेहरू को संसद में घोषणा करनी पड़ी कि वह हरिदास मूंदड़ा घोटाले की जांच करवाएंगे।
ससुर की सरकार, दामाद का हमला
विशेष जांच शुरू हुई और केवल 24 दिन में ही इसका फैसला आ गया। हरिदास मूंदड़ा को 22 साल जेल की सजा हुई और तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी, केन्द्रीय वित्त सचिव एच.एम. पटेल और एलआईसी के चेयरमैन को अपने पद से हटना पड़ा था। हरिदास मूंदड़ा के जेल जाने और वित्त मंत्री के इस्तीफ़े से यह बात साफ़ है कि अगर सरकार ठान ले, तो घोटाले करने वाले को जेल भेजने में देरी नहीं लगती।
आज़ादी के बाद जीवन बीमा निगम एक ऐसा संस्थान था, जिसे बाज़ार से शेयर ख़रीदने और बेचने का अधिकार मिला हुआ था। तब ना तो यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया बना था और न ही आईडीबी या आईसीआईसीआई जैसे वित्तीय संस्थान।
तब एलआईसी का महत्व बहुत ज्यादा था। एलआईसी को पूरी तरह स्वायत्त संस्था के रूप में काम करने की छूट थी। उसे निवेश का अधिकार था, निवेश करने का कोई भी फ़ैसला उसकी एक कार्यकारी परिषद करती थी। उसकी निवेश समिति में एलआईसी के चेयरमैन और एमडी के अलावा मुंबई और कोलकत्ता के स्टॉक एक्सचेंज के प्रमुख भी सदस्य होते थे।
कौन था मूंदड़ा
हरिदास मूंदड़ा कानपुर का रहने वाला था और कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज का बहुत बड़ा सटोरिया था। बिड़ला घराने से उसकी पारिवारिक रिश्तेदारी थी। हरिदास मूंदड़ा के दामाद थे माधो प्रसाद बिड़ला। हरिदास साम, दाम, दंड, भेद का उपयोग करते हुए धन कमाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाता था। बिजली के बल्ब बनाने वाली कंपनी में वह सेल्समैन था और बिना किसी ख़ास शिक्षा के ही शेयर बाज़ार में कारोबार करने लगा था।
कोलकाता में चेम्बर ऑफ कॉमर्स जैसी संस्था के कार्यक्रम में केन्द्रीय वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी भाषण देने गए। श्रोता के रूप में हरिदास भी वहां मौजूद था। वित्त मंत्री कोलकाता में थे, तो साथ ही वित्त सचिव एच.एम. पटेल भी थे ही। 21 जून 1957 को हरिदास मूंदड़ा ने केन्द्रित वित्त सचिव से मिलने का समय मांगा।
क्या था मामला
वित्त सचिव ने उन्हें समय दे दिया और मूंदड़ा ने कहा, 'आर्थिक कठिनाइयां आ गई है। मेरी संपत्ति 1 करोड़ 55 लाख की है, लेकिन शेयर दलालों और बैंकों को 5 करोड़ 24 लाख रुपए देने है। मैं अपने शेयर तत्काल प्रभाव से बेचना चाहता हूं, लेकिन अगर वे शेयर मैंने बेचे, तो शेयर बाजार धड़ाम से नीचे आ जाएगा।' मूंदड़ा ने वित्त सचिव से कहा कि 'अगर एलआईसी मेरे 80 लाख रूपए के शेयर सीधे शेयर बाजार से खरीद लें, तो शेयर बाजार पर प्रतिकूल नुकसान नहीं पड़ेगा और मुझे भी राहत मिल जाएगी।' मूंदड़ा ने यह भी कहा कि 'अगर एलआईसी मुझे 1 करोड़ का कर्ज दे दें, तो मैं एलआईसी को बिजनेस दिलाकर उस कर्जे की भरपाई कर दूंगा, क्योंकि बिजनेस में मुझे कमीशन मिलेगा ही। मूंदड़ा ने जिन कंपनियों के शेयर बेचने का प्रस्ताव रखा था, वे कंपनियां थी - एंजेलो ब्रदर्स, ब्रिटिश इंडिया कार्पोरेशन, स्मिथ स्टेन स्ट्रीट एंड कंपनी, जेसप एंड कंपनी, रिचर्डसन एंड क्रूडास और ओसलर लैम्प।एच.एम. पटेल ने मूंदड़ा से कोई वायदा नहीं किया, लेकिन मूंदड़ा से कहा कि वे अपना प्रस्ताव लिखित में दे दें। वित्त सचिव पटेल ने इसकी चर्चा एलआईसी के चेयरमैन जी.आर. कामथ से की और फिर बाद में लिखित प्रस्ताव दिया गया। कुछ दिनों की चिट्ठी-पत्री के बाद मूंदड़ा ने एलआईसी को 1 करोड़ 19 लाख 49 हजार 500 रुपए के विभिन्न कंपनियों के शेयर के दस्तावेज़ एलआईसी को सौंप दिए। शेयर बाज़ार की कीमतों के हिसाब से मूंदड़ा को 1 करोड़ 26 लाख 85 हजार 750 रूपए का भुगतान कर दिया गया। दो दिन पहले जब मूंदड़ा ने लिखित प्रस्ताव रखा था, तब शेयर के भाव 7 लाख रूपए कम थे, लेकिन दो दिन में ही शेयर कीमत 7 लाख रूपए बढ़ गई। उस जमाने में शेयरों की भौतिक डिलिवरी ही की जाती थी, क्योंकि ऑनलाइन ट्रांजेक्शन जैसी कोई चीज थी ही नहीं।
जब शेयर ट्रांसफर करने का वक़्त आया, पाया गया कि शेयर प्रमाण पत्र असली न होकर केवल उनकी प्रतिलिपियाँ हैं और मूल शेयर सर्टिफिकेट मूंदड़ा पहले ही कहीं गिरवी रखकर पैसे ले चुका है। विचित्र बात यह थी कि ये सभी शेयर एलआईसी ने अपनी निवेश समिति की सलाह के बग़ैर खरीदे थे।
मामला समाचार पत्रों तक गया। कांग्रेस के ही संसद सदस्य फ़िरोज़ गांधी ने इस मामले पर संसद में अनेक सवाल किए। तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी उन सवालों का संसद में जवाब नहीं दे पाए। शायद उन्हें यह भ्रम था कि वित्तीय मामलों की समझ तो केवल उन्हें ही है। उन्होंने संसद में कह दिया कि निवेश की बारीकियों को संसद सदस्य शायद नहीं समझते है। वित्तीय मंत्री की यह बात सांसदों को नागवार गुजरी। फ़िरोज़ गांधी ने इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू नहीं चाहते थे कि मामला ज़्यादा तूल पकड़े, लेकिन फिर भी वित्त मंत्री, वित्त सचिव और एलआईसी के चेयरमैन को इस्तीफ़ा देना पड़ा। विशेष जांच आयोग बनाया गया। मूंदड़ा जेल से कब छूटा और उसने कैसा जीवन जिया, उसके बारे में बहुत जानकारियां उपलब्ध नहीं है। पिछले महीने 6 जनवरी 2018 को उसकी मौत हो गई। मूंदड़ा की मौत को भी किसी ने बहुत महत्व नहीं दिया।