जम्मू-कश्मीर के 6 राजनीतिक दलों के समूह का राज्य की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा और वे दल केंद्र पर कितना दबाव डाल पायेंगे, यह अभी निश्चित रूप से कहना मुश्किल है। पर यह साफ़ है कि उन्होंने एक साथ चलने और अहम मुद्दों पर सामूहिक निर्णय लेने का मन बना लिया है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा है कि भविष्य में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में उनका दल भाग लेना या नहीं, इसका फ़ैसला सामूहिक रूप से ही किया जाएगा।
'गुपकार समूह!'
नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, कांग्रेस, पीपल्स कॉन्फ़्रेंस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी और जम्मू-कश्मीर आवामी नैशनल कॉन्फ्रेंस ने बीते दिनों फ़ारूक अब्दुल्ला के श्रीनगर स्थित गुपकार रोड पर बने घर पर एक बैठक की। इस बैठक में इस अनौपचारिक गुट का गठन हुआ।इन्हीं पार्टियों ने 4 अगस्त, 2019 को गुपकार रोड के उसी घर पर एक बैठक की थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर के संविधान, राज्य का विशेष दर्जा और पहचान बरक़रार रखने पर फ़ैसला लिया गया। इसके अगले ही दिन राज्य का विषेश दर्जा ख़त्म कर दिया गया और तमाम बड़े नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया या गिरफ़्तार कर लिया गया।
इस बैठक के बाद जारी हुए साझा घोषणापत्र को गुपकार घोषणापत्र कहा गया।
फ़ारूक़ अब्दुल्ला का यह कहना कि चुनाव में भाग लेने के मुद्दे पर सामूहिक फ़ैसला किया जाएगा, इस मामले में अहम है कि यह उनके बेटे उमर अब्दुल्ला के बयान से हट कर है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बीते दिनों यह कह कर सबको चौंका दिया था कि जब तक जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा नहीं मिलता, वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। फ़ारूक अब्दुल्ला ने 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से कहा,
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'मैं अकेला फ़ैसला नहीं ले सकता, फिर गुपकार घोषणा का मतलब क्या रह जाएगा?'
फ़ारूक अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर
आक्रामक रवैया
इसके ज़रिए फ़ारूक़ यह भी कहना चाहते हैं कि चुनाव हुआ तो उसमें भाग लेने के मुद्दे पर उनकी पार्टी को अभी अंतिम फ़ैसला लेना है, यह न माना जाए कि पार्टी भाग नहीं लेगी। अब्दुल्ला ने कहा कि वे ख़ुद मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक नहीं हैं, पर यह ज़रूर चाहते हैं कि राज्य के लोगों का और उन लोगों का आत्मसम्मान बचा रहे, जिन्होंने जम्मू-कशमीर को फिर से राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।
राज्य के विशेष दर्जा को लेकर शुरू में बरती चुप्पी को नैशनल कॉन्फ़्रेंस पहले ही तोड़ चुकी है, अब फ़ारूक यह साफ़ कर देना चाहते हैं कि इस मुद्दे पर वह आक्रामक रवैया अपनाएंगे।
उन्होंने 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से कहा, 'केंद्र ने हमारी बेइज्ज़ती की, अब यदि वह चाहता है कि हम राष्ट्र का हिस्सा बने रहें तो पहले हमारा सम्मान वापस करे।' उन्होंने 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से कहा,
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'केंद्र ने हमारी बेइज्ज़ती की, अब यदि वह चाहता है कि हम राष्ट्र का हिस्सा बने रहें तो पहले हमारा सम्मान वापस करे। हो सकता है कि मैं तब तक जीवित न रहूं, पर इसका अर्थ यह नहीं कि संघर्ष ख़त्म हो जाएगा।'
फ़ारूक अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर
इसके पहले जेल से छूटने के कुछ समय बाद तक फ़ारूक ने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए पर कुछ नहीं कहा। उनकी चुप्पी लोगों को अचरज में डाल रही थी। लेकिन उसी समय उनके बेटे और पार्टी के नेता उमर ने कह दिया कि वे तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक जम्मू-कश्मीर राज्य नहीं बन जाता। इस पर लोग सवाल करने लगे कि उमर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर क्यों चुप हैं, वह स्वायत्तता पर क्यों नही बोलते।
समझा जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला का यह कहना उस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश है। साथ ही वे यह संकेत भी दे रहे हैं कि उनकी पार्टी चुनाव लड़ सकती है।